कुल्फा या यह कहें कि एक खरपतवार, एक ऐसा पौधा जो आपको अक्सर कई जगहों पर दिख जाएगा। खेतों में, सड़क किनारे, नालियों के किनारे यह पौधे, खरपतवार के रूप में कहीं भी आसानी से उग जाते हैं। पर इन पौधों की यही खूबी इन्हें एक 'सुपर प्लांट' भी बनाती है।
ऐसे में क्या यह एक आम खरपतवार भविष्य में सूखा प्रतिरोधी फसलों की कुंजी बन सकता है, इसपर हाल ही में येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है जोकि जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह खरपतवार एक सुपर प्लांट है जो न केवल गर्मी सूखा बल्कि जलवायु में आते बदलावों का सामना कर सकता है।
‘पोर्टुलाका ओलेरासिया’ जिसे ‘पर्सलेन’ के नाम से भी जाना जाता है, भारत में कुल्फा के रूप में प्रसिद्ध है। इसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पौधा प्रकाश संश्लेषण के लिए दो अलग-अलग चयापचय (मेटाबॉलिक) मार्गों को जोड़ता है, जो इस खरपतवार को अत्यधिक उत्पादक रहते हुए सूखा का सामना करने में सक्षम बनाता है।
इस बारे में येल विश्वविद्यालय और इस शोध से जुड़े प्रोफेसर एरिका एडवर्ड्स का कहना है कि यह लक्षणों का एक बहुत ही दुर्लभ संयोजन है जो इस पौधे को एक प्रकार का 'सुपर प्लांट' बना देता है। गौरतलब है कि प्रकाश संश्लेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी मदद से हरे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से पोषक तत्वों को संश्लेषित करने के लिए सूर्य के प्रकाश का उपयोग करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण की इस प्रक्रिया में सुधार के लिए पौधों ने स्वतंत्र रूप से कई अलग-अलग तंत्र विकसित किए हैं। जैसे मकई और गन्ना जिस तंत्र का प्रयोग करते हैं उन्हें सी4 प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है, जो पौधे को उच्च तापमान में भी उत्पादक बने रहने में मददगार होता है। वहीं दूसरी तरफ सकलेंट जैसे कैक्टस इसके लिए सीएएम प्रकाश संश्लेषण का उपयोग करते हैं जो कम पानी में रेगिस्तान जैसे माहौल में भी इन्हें जीवित रखने में मददगार होता है।
ऐसा क्या है जो इस पौधे को बनाता है खास
देखा जाए तो सी4 और सीएएम फोटोसिंथेसिस दोनों अलग-अलग काम करते हैं। लेकिन वो नियमित प्रकाश संश्लेषण के लिए वो ऐड-ऑन के रूप में कार्य करने के लिए एक ही जैव रासायनिक मार्ग का उपयोग करते हैं।
खरपतवार 'कुल्फा' में यह दोनों तंत्र विकसित हो गए हैं, जो इसे खास बनाते हैं। इन दोनों की मदद से जहां एक तरफ यह सूखे का सामना करने के काबिल है साथ ही उस समय भी इसकी पैदावार कम नहीं होती है। देखा जाए तो इस पौधे में इन दोनों तंत्रों का एक अप्रत्याशित संयोजन इसकी अनुमति देता है।
बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि सी4 और सीएएम स्वतंत्र रूप से कुल्फे की पत्तियों के भीतर संचालित होते हैं। लेकिन येल शोधकर्ताओं द्वारा इसकी पत्तियों के भीतर जीन कैसे व्यवहार करती हैं उसके स्थानिक विश्लेषण से पता चला है कि इसके भीतर सी4 और सीएएम गतिविधियां पूरी तरह से एकीकृत हैं, वे एक ही कोशिकाओं में काम करती हैं।
इसमें सीएएम प्रतिक्रियाओं से जो उत्पाद बनते हैं उन्हें सी4 मार्ग द्वारा संसाधित किया जाता है। यह प्रणाली सूखे के समय सी4 युक्त पौधे को असामान्य स्तर की सुरक्षा प्रदान करती है। ऐसे में वैज्ञानिकों को भरोसा है कि इस मेटाबॉलिक मार्ग के बारे में उनकी नवीन समझ ऐसी फसलों को तैयार करने में मदद कर सकती है जो लम्बे समय तक सूखे का सामना करने में सक्षम हों।
गौरतलब है कि भारत में इसके अनोखे गुणों के कारण लम्बे समय से इस पौधे का भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। ओमेगा 3 फैटी एसिड्स, विटामिन्स, फाइबर, मिनरल्स, कैरेटिनोइड्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और इटोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है जो इम्युनिटी बढ़ाने से लेकर खून की कमी को पूरा करने तक में मददगार होता है। इसके साथ ही कैल्शियम, आयरन,मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों की वजह से यह हड्डियों को भी मजबूत बनाता है।
यह दिल के लिए फायदेमंद होता है। साथ ही आंखों की रौशनी बढ़ाने के साथ-साथ डायबिटीज कंट्रोल करने में भी मदद करता है। दुनिया भर में विभिन्न पारंपरिक दवाओं में इसके लगातार होते औषधीय उपयोग के कारण, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे “ग्लोबल पैनसिया” यानी सर्वरोगहारी नाम दिया है।