सुरेश मिश्र
मेरे घर के सामने और आजू-बाजू बहुत पेड़ हैं। बाईं तरफ का पेड़ सबसे ऊंचा है। सूरज निकलते ही अकसर इसकी सबसे ऊंची फुनगी पर एक बुलबुल आ बैठती है। मधुर आवाज निकालकर जैसे सुबह होने की सबको सूचना दे रही हो।
घर के बरामदे में ताड़ का पेड़ है। इसके छोटे फलों की लड़ियां का किसी बालिका के बालों की चोटियों की तरह लटकना बहुत भाता है। इसे गलती से कभी सुपाड़ी का पेड़ समझ लिया जाता है तो कभी नारियल का। सुपाड़ी का पेड़ इसके बाजू में था, पर वह अब सूख गया है और उसमें ठठेरा नामक चिड़िया ने छेद करके घोंसला बना रखा है। ताड़ का यह पेड़ गिलहरियों की उछल कूद और चहचाहट से गुलजार रहता है। सामने पार्क की दीवार के पास बांस का झुरमुट है। तीन साल में ये इतने बड़े हो जाते हैं कि उन्हें काम के लिए काटा जा सकता है। एक खास बात यह है कि बांस के पेड़ों में तीस साल में एक बार फूल लगते हैं और फूलने के बाद बांस सूख जाता है। जंगली इलाकों में ऐसा माना जाता है कि जिस साल बांस में फूल आते हैं उस साल अकाल पड़ता है।
बरामदे की घास पर दो-तीन गौरैया फुदक रही हैं। अब गौरैया बहुत कम हो गई हैं। गौरैया क्या, कौए, गिद्ध सभी कम हो रहे हैं। यह चिन्ता की बात है क्योंकि ये पक्षी कुदरत में अहम भूमिका अदा करते हैं। बरामदे के पौधों पर दो पीली तितलियां अक्सर मंडराती रहती हैं। पहले कितनी रंग बिरंगी तितलियां दिखती थीं, अब तो कुछ ही दिखती हैं। कीटनाशकों ने शायद इन्हें खत्म कर दिया है। बाजू की दीवार पर पतंगा चिपका है। पतंगा और तितली में फर्क होता है। तितली दिन में उड़ती है और पतंगा रात में निकलता है। उनके बैठने का अन्दाज भी अलग होता है। तितली अपने पंखों को अंग्रेजी के वी अक्षर के आकार बनाकर बैठती है, जबकि पतंगा जमीन से पंख चिपकाकर बैठता है। बरामदे में अमरूद के तीन पेड़ हैं। अमरूद फल गए हैं और इनके लिए तोतों का आना शुरू हो गया है। अमरूद के एक पेड़ की डाल पर बंधे छोटे से झूले पर मेरे पड़ोसी की बेटियां झूल रही हैं। जब गांव में इमली के पेड़ पर सावन में झूला डाला जाता था और मोहल्ले भर की लड़कियां झूले पर पेंगें मारती थीं। असल में इमली के पेड़ की डाल को सबसे मजबूत माना जाता है, तभी तो उस पर झूला बांधा जाता है। जामुन के पेड़ की डाल कच्ची होती है और अकसर बच्चे पेड़ पर चढ़कर जामुन तोड़ते समय कभी-कभी गिरकर अपने हाथ पैर तुड़वा बैठते हैं। घर के सामने की सड़क के किनारे केशिया सेमिया के पेड़ हैं। इन्हें इसलिए लगाया जाता है कि यह जल्दी बढ़ता है, इसे मवेशी नहीं खाते और इसके पीले फूल सुन्दर होते हैं। इसमें खराबी यह होती है कि इसकी डालें इतनी कमजोर होती हैं कि बरसात में गीली होने पर अपने वजन से ही टूटकर गिर जाती हैं। केशिया सेमिया चकौंड़ा नामक खरपतवार की जाति का होता है।
घर के आगे और पीछे आम के पेड़ हैं। गर्मी के मौसम में कोयल अकसर इनमें देखी जाती थी और उसकी आवाज से सारा वातावरण रसमय हो जाता है। यह आवाज नर कोयल करता है, मादा नहीं। मादा कोयल भूरी सी चित्तेदार होती है और जरा कम ही दिखती है। पीछे दीवार पर पीपल का पौधा है। पीपल और बरगद के पेड़ खंडहरों, दीवारों आदि में खुद पनप जाते हैं। पीपल और बरगद के बीजों को चिड़िया खाती हैं और उसे अधपचे रूप में बीट के साथ निकाल देती हैं। जब यह अधपचा बीज किसी दीवार की दरार में गिरता है तो वहीं पनपने लगता है। पीपल के पत्तों का आकार, चिकनापन और पानी में सड़ने के बाद उनके पत्ते की बारीक जाली तो कुदरत का कमाल ही लगती है।
पेड़, पौधों की बहुत विशाल दुनिया हमारे आसपास फैली हुई है पर हम हैं कि उसकी ओर ध्यान ही नहीं देते और कुदरत की इस नियामत से बेखबर से रहते हैं। हमारे आसपास की यह दुनिया जितनी आकर्षक है उतनी मनोहारी भी।