चिंताजनक: स्तनधारियों के मस्तिष्क की कोशिकाओं में मिला पारे का उच्च स्तर

शोध में कहा गया कि नेवले के मस्तिष्क की जांच करने पर इन आक्रामक जानवरों में पारे का पता चला
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, एयरवुल्फहाउंड
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, एयरवुल्फहाउंड
Published on

अधिकांश रासायनिक रूपों में पारे (एचजी) का संपर्क तंत्रिका तंत्र के लिए जहरीला या न्यूरोटॉक्सिक है। यहां तक कि पारे का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक भी एचजी से होने वाले खतरों के कारण भारी खतरे में हैं। प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी माइकल फैराडे लंबे समय तक पारे की वाष्प के संपर्क में रहने के कारण पारे के जहर से पीड़ित हो गए, जिसके कारण उन्हें बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण 49 वर्ष की आयु में अपना शोध रोकना पड़ा।

एक अन्य उदाहरण लैब केमिस्ट करेन वेटरहैन का है, जिनकी पिपेट से कुछ बूंदें निकलकर उनके लेटेक्स-दस्ताने वाले हाथों पर गिरने के बाद डाइमिथाइल मरकरी विषाक्तता से उनकी मौत हो गई थी।

कई अध्ययनों ने विशेष रूप से समुद्री जीवों में पारे के खतरे और प्रभावों पर गौर किया है। यह सर्वविदित है कि पारे की उपस्थिति के कारण लोगों को ट्यूना जैसी कुछ मछलियों का सेवन सीमित करना चाहिए। हालांकि, सवाल उठता है कि क्या पारे के कण जमीन पर रहने वाले जानवरों के मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं?

शोध के हवाले से पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ साइंस में भौतिकी और खगोल विज्ञान की प्रोफेसर डॉ. यूलिया पुष्कर ने कहा कि उन्हें शुरू में संदेह हुआ। उन्होंने 2008 से पर्ड्यू विश्वविद्यालय में मस्तिष्क इमेजिंग कार्यक्रम चला रखा है।

डॉ. पुष्कर के शोध टीम को ओकिनावा द्वीप में एकत्र किए गए नेवले के मस्तिष्क में पारे की जांच करने का काम सौंपा गया था। शोध में कहा गया कि मस्तिष्क की जांच करने पर इन आक्रामक जानवरों में पारे का पता चला। शोध टीम ने प्रभावित मस्तिष्क कोशिकाओं का निरीक्षण करने के लिए कुछ दसियों नैनोमीटर का रिज़ॉल्यूशन हासिल करके इसे स्कैन किया। शोध के निष्कर्ष हाल ही में एनवायर्नमेंटल केमिस्ट्री लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ता ने कहा कि नेवले के मस्तिष्क में पारा कैसे प्रवेश करता है इसका रहस्य अभी भी अनसुलझा है। संभावित स्रोतों में पानी शामिल है जो वे पीते हैं, पक्षियों के अंडे जो वे खाते हैं, खनिज के खतरे, या यहां तक कि वह हवा जिसमें वे सांस लेते हैं। हालांकि एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यह बहुत बुरा संकेत है।

डॉ. पुष्कर बताते हैं कम मात्रा में भी पारा बहुत जहरीला होता है क्योंकि पारा आवश्यक जैव अणुओं के कार्य को रोक सकता है और प्रभावित कर सकता है।  इसके कारण यदि मस्तिष्क कोशिकाएं मर जाती हैं तो इनसे संभावित रिसाव होता है। अब तक, इन ऊतकों को सुरक्षित रूप से समाप्त करने का कोई ज्ञात तरीका नहीं है। हम सभी को जो मुख्य दृष्टिकोण अपनाना चाहिए वह किसी भी खतरे से बचना है, विशेष रूप से फैराडे के मामले में लंबी अवधि तक होने वाले खतरों से।

डॉ. पुष्कर ने बताया कि उन्हें संदेह था कि क्या पारे का पता लगाया जा सकता है। आमतौर पर, न्यूरोटॉक्सिक तत्व, भले ही वे मस्तिष्क में प्रवेश कर भी जाएं, बहुत कम मात्रा में मौजूद होते हैं। हम इन नमूनों को आर्गोन नेशनल लेबोरेटरी के उन्नत फोटॉन स्रोत में ले गए जहां मस्तिष्क को तीव्र एक्स-रे के संपर्क में लाया गया। संदेह को खारिज करते हुए, यहां पारा पाया गया था।

मस्तिष्क के नमूनों को स्कैन करते हुए शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के उन क्षेत्रों का पता लगाना शुरू किया जिनमें पारे की मात्रा अधिक थी। तीन साल के अध्ययन और दो राष्ट्रीय सिंक्रोट्रॉन सुविधाओं की पांच यात्राओं के बाद शोधकर्ता ने बताया कि विशेष मस्तिष्क कोशिकाएं: कोरॉइड प्लेक्सस की कोशिकाएं और सबवेंट्रिकुलर जोन के एस्ट्रोसाइट्स में पारे का आकार 0.5-2 माइक्रोन होता है।

डॉ.पुष्कर और उनकी टीम का मानना है कि ये कोशिकाएं रक्त और मस्तिष्क के ऊतकों से पारे को छानने और एक अन्य तत्व, सेलेनियम (एसई) की मदद से जमा करने में मदद करती हैं। कौन सा विशेष सेलेनियम युक्त जैविक अणु पारे को बांधता है, इसकी खोज करना अभी बाकी है।

यह खोज स्थलीय जानवरों में पर्यावरणीय निगरानी के लिए अहम है और मस्तिष्क कोशिकाओं में पारे का पता लगाने के लिए नए उपकरण प्रदान करती है, जो संभावित रूप से मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा पर प्रभाव डालती है।

डॉ. पुष्कर कहते हैं, मानवजनित गतिविधियों के कारण हर साल 2,000 मीट्रिक टन पारे के यौगिकों का उत्सर्जन होता है और हम पूरी तरह से समझ नहीं पाते हैं कि यह न्यूरोटॉक्सिक पारा कहां जाता है। अब तक के अधिकांश अध्ययन समुद्री बायोटा (मछली और व्हेल) पर आधारित रहे हैं, लेकिन जाहिर तौर पर स्थलीय प्रजातियां भी पारे से प्रभावित होती हैं।

उन्होंने कहा हम उम्मीद करते हैं कि मनुष्य के मस्तिष्क कोरॉइड प्लेक्सस और एस्ट्रोसाइट्स की कोशिकाओं के परस्पर प्रभाव से पारे पर इसी तरह से प्रतिक्रिया करता है। उन्होंने आगे कहा हालांकि, हम नहीं जानते हैं यदि मानव मस्तिष्क में पारे से जुड़ने के लिए पर्याप्त सेलेनियम युक्त बायोमोलेक्युल्स हैं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in