दुनिया भर में 30 फीसदी शिकारी पक्षियों की प्रजातियों पर मंडरा रहा है खतरा

दक्षिण एशिया में मरे हुए जानवरों को खाने के बाद शिकारी पक्षियों की मृत्यु में बढ़ोतरी देखी गई है, हाल के दशकों में कुछ प्रजातियों की आबादी में 95 फीसदी तक की कमी आई है।
फोटो : जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज
फोटो : जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज
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दुनिया भर में मानवजनित पर्यावरणीय प्रभावों के चलते जैसे कि आवास का नुकसान, जहरीली दवाओं के उपयोग ने शिकारी प्रजातियों के पक्षियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसमें लगभग 50 फीसदी प्रजातियों की आबादी घट रही है।

कई तरह के संरक्षण के बावजूद भी दुनिया भर में शिकार करने वाले पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) और बर्डलाइफ इंटरनेशनल के आंकड़ों के एक नए विश्लेषण में पाया गया कि दुनिया भर में 557 शिकारी प्रजातियों के पक्षियों में से 30 फीसदी को खतरे, लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय माना जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि 18 प्रजातियां गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं, जिनमें फिलीपीन ईगल, हुडेड गिद्ध और एनोबोन स्कॉप्स उल्लू शामिल हैं।

मेक्सिको के राष्ट्रीय स्वायत्त विश्वविद्यालय के एक पक्षी वैज्ञानिक और सह-अध्ययनकर्ता गेरार्डो सेबलोस ने कहा कि अन्य प्रजातियों के विशेष इलाकों में स्थानीय रूप से विलुप्त होने का खतरा है। जिसका अर्थ है कि वे अब उन पारिस्थितिक तंत्रों में शीर्ष शिकारियों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकते हैं।

सेबलोस ने बताया कि गोल्डन ईगल मेक्सिको का राष्ट्रीय पक्षी है, लेकिन अब मेक्सिको में बहुत कम गोल्डन ईगल बचे हैं। 2016 की एक गणना का अनुमान है कि देश में केवल 100 जोड़े ही बचे हैं। हार्पी ईगल एक बार पूरे दक्षिणी मैक्सिको और मध्य और दक्षिण अमेरिका में फैले हुए थे, लेकिन पेड़ काटने और जंगल की आग से उनकी सीमा बहुत कम हो गई है।

अध्ययन में पाया गया कि शिकार करने वाले पक्षी जो कि खतरे में हैं, ज्यादातर दिन के दौरान सक्रिय होते हैं जिनमें अधिकांश बाज, चील और गिद्ध शामिल हैं। इन सबकी आबादी में 54 फीसदी की कमी आई है। यही बात उल्लुओं पर भी लागू होती है।

पशुओं को दी जाने वाली  सूजन और जलन की दवा के व्यापक उपयोग के कारण दक्षिण एशिया में गिद्धों का तेजी से पतन हुआ। मरे हुए जानवरों को खाने के बाद शिकारी पक्षियों की मृत्यु हो गई, हाल के दशकों में कुछ प्रजातियों की आबादी में 95 फीसदी की कमी आई है।

पूर्वी एशिया में, कई शिकारी पक्षियों की प्रजातियां लंबी दूरी के प्रवासी हैं, वे उत्तरी चीन, मंगोलिया या रूस में प्रजनन करते हैं और दक्षिण पूर्व एशिया या भारत में ग्रीष्म काल बिताने के लिए चीन के पूर्वी तट की यात्रा करते हैं।

जीवविज्ञानी जेफ जॉनसन ने कहा कि इसका मतलब है कि गिरावट पैदा करने वाले कारणों के अनदेखी की जा रही है इससे पहले की ये विलुप्त हो जाए उन प्रजातियों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। वैश्विक स्तर पर, इन पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा निवास स्थान का नुकसान, जलवायु परिवर्तन और जहरीले पदार्थ हैं।

कीटनाशक डीडीटी ने उत्तरी अमेरिका में अंडे के छिलकों को पतला कर दिया और बाल्ड ईगल की आबादी को नष्ट कर दिया, जिसके कारण 1972 में अमेरिका ने इस कीटनाशक पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन ब्यूचले ने कहा कि अन्य खतरे बने हुए हैं, जिनमें कतरने वाले जानवर जैसे चूहा गिलहरी आदि के लिए उपयोग होने वाला कीटनाशक और शिकारियों की गोलियों और छर्रों का सीसा भी शामिल है। कई शिकारी पक्षी कतरने वाले और मृत जानवरों को खाते हैं। यह अध्ययन जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

पारिस्थितिकीविद् यांग लियू ने कहा समुद्र तट के कुछ क्षेत्रों में चरम प्रवास के दौरान 30 से 40 प्रजातियां दिखाई देंगी। लेकिन पूर्वी चीन भी देश का सबसे अधिक आबादी वाला और शहरी हिस्सा है, जहां विकास का भारी दबाव है। उन्होंने कहा ऐसी जगहें जहां प्रवास के लिए अड़चनें हैं, जहां से हजारों पक्षी गुजरते हैं, उनकी रक्षा करना महत्वपूर्ण है।

यूके में बर्डलाइफ इंटरनेशनल के मुख्य वैज्ञानिक स्टुअर्ट बुचर ने कहा, संरक्षण समूहों द्वारा वैश्विक स्तर पर शिकारी प्रजातियों के पक्षियों  के  लिए महत्व के रूप में पहचाने गए 4,200 जगहों में से अधिकांश असुरक्षित हैं या केवल आंशिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों द्वारा कवर किए गए हैं।     

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