विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस: भारत में हैं गंभीर रूप से संकटग्रस्त 73 प्रजातियां

भारत में 10 जैव भौगोलिक क्षेत्र हैं और यहां अब तक दर्ज स्तनधारी प्रजातियों में से 8.58 फीसदी का घर है, जबकि पक्षी प्रजातियों के लिए यह आंकड़ा 13.66 फीसदी है
गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (अर्डियोटिस नाइग्रिसेप्स) भारत के राजस्थान में रेगिस्तानी राष्ट्रीय उद्यान में उड़ने वाले सबसे भारी पक्षियों में से एक है
गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (अर्डियोटिस नाइग्रिसेप्स) भारत के राजस्थान में रेगिस्तानी राष्ट्रीय उद्यान में उड़ने वाले सबसे भारी पक्षियों में से एक है फोटो साभार: आईस्टॉक
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हर साल चार दिसंबर को विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य पृथ्वी के लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाना है। प्रकृति के सबसे शानदार जीव लुप्तप्राय हो रहे हैं, कुछ लोगों के लालच के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रहे हैं तथा इससे वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति हो रही है।

विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस उन मुद्दों के बारे में जागरूक होने, चिंतन करने और कार्रवाई करने का अवसर है जो धरती के वन्यजीव जैव विविधता संतुलन को खतरे में डाल रहे हैं। अवैध जानवरों के अंगों और उत्पादों की काले बाजार में मांग से प्रेरित होकर, मनुष्य कई वन्यजीव प्रजातियों का शिकार, अवैध शिकार और उन्हें मार रहे हैं, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।

दुनिया के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में मानवीय हस्तक्षेप सदियों से जारी है। आधुनिक दुनिया में जैसे-जैसे मनुष्य दुनिया के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करते और बसते गए, उन्होंने खेती के लिए भूमि साफ की, जहाज निर्माण के लिए जंगलों को काटा और पैसे के लिए शिकार और जाल बिछाना शुरू किया। पिछले कुछ वर्षों में, वन्यजीवों का शिकार और अवैध शिकार अधिक आम हो गया और दुनिया भर में वन्यजीवों की आबादी घटने लगी।

आठ नवंबर, 2012 को, उस समय विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस के बारे में जागरूकता बढ़ाने और संरक्षणवादियों और वन्यजीव को लेकर काम करने वाले लोगों को शामिल करने के लिए कार्रवाई का आह्वान किया। उन्होंने वन्यजीव तस्करी की वैश्विक समस्या को सामने लाने के लिए व्हाइट हाउस की रणनीति को भी उजागर किया।

आज भी काले बाजार में लुप्तप्राय प्रजातियों का अवैध व्यापार बढ़ रहा है। हालांकि दुनिया भर की सरकारें इस कृत्य को रोकने की पूरी कोशिश कर रही हैं और कुछ मामलों में सफल भी हो रही हैं, लेकिन सभी प्रजातियां शिकारियों से सुरक्षित नहीं हैं।

इससे न केवल वन्यजीव प्रभावित होते हैं, बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जंगलों के भीतर या उसके आस-पास रहने वाले लाखों लोगों का जीवन भी प्रभावित होता है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम वन्यजीवों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए मिलकर काम करें ताकि उनका अस्तित्व सुनिश्चित हो सके।

दुनिया के मात्र 2.4 फीसदी भूभाग पर कब्जा करने के बावजूद, भारत में दर्ज सभी प्रजातियों का सात से आठ फीसदी हिस्सा है, जिसमें पौधों की 45,000 प्रजातियां और जानवरों की 91,000 प्रजातियां शामिल हैं।

भारत में 10 जैव भौगोलिक क्षेत्र हैं और यहां अब तक दर्ज स्तनधारी प्रजातियों में से 8.58 फीसदी का घर है, जबकि पक्षी प्रजातियों के लिए यह आंकड़ा 13.66 फीसदी, सरीसृपों के लिए 7.91 फीसदी, उभयचरों के लिए 4.66 फीसदी, मछलियों के लिए 11.72 फीसदी और पौधों के लिए 11.80 फीसदी है।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मुताबिक, साल 2022 तक भारत में 73 गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियां थीप्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) उन प्रजातियों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत करता है जबकि ये जंगल में विलुप्त होने के भारी खतरे में हैं। गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों की संख्या 2011 में 47 से बढ़ गई है।

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