विश्व जेलीफिश दिवस: गर्म होते समुद्र की एक नई “विजेता” प्रजाति है जेलीफिश

विश्व जैली दिवस के अवसर पर जातीय कि जलवायु परिवर्तन के दौर में कैसे गर्म होते समुद्र में जैली की संख्या बढ़ रही है
पर्यावरणीय अनुकूलता: जेलीफिश कम ऑक्सीजन और अम्लीय पानी में भी जीवित रह सकती हैं, जबकि अन्य समुद्री जीव मर रहे हैं।
पर्यावरणीय अनुकूलता: जेलीफिश कम ऑक्सीजन और अम्लीय पानी में भी जीवित रह सकती हैं, जबकि अन्य समुद्री जीव मर रहे हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • जेलीफिश की आबादी बढ़ी: समुद्र के गर्म होने और मानवजनित गतिविधियों के कारण जेलीफिश तेजी से फैल रही हैं।

  • पर्यावरणीय अनुकूलता: जेलीफिश कम ऑक्सीजन और अम्लीय पानी में भी जीवित रह सकती हैं, जबकि अन्य समुद्री जीव मर रहे हैं।

  • अमर प्रजातियां: टूरिटोप्सिस डोहरनी और मून जेलीफिश जैसी प्रजातियां जीवन चक्र में वापस युवा अवस्था में लौट सकती हैं।

  • समुद्री और आर्थिक खतरे: जेलीफिश मछली पकड़ने, पर्यटन और बिजलीघरों के ठंडक सिस्टम में समस्याएं पैदा कर रही हैं।

  • संभावित उपयोग: वैज्ञानिक जेलीफिश के म्यूकस से माइक्रोप्लास्टिक फिल्टर बनाने पर काम कर रहे हैं।

आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर रही है। समुद्र का तापमान लगातार बढ़ रहा है, बर्फ पिघल रही है, समुद्र का जलस्तर ऊपर उठ रहा है और लाखों समुद्री जीव अपनी प्रजातियों के अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

लेकिन इसी बीच एक ऐसी प्रजाति है जो न केवल जीवित है, बल्कि पहले से अधिक फल-फूल रही है, वह है जेलीफिश। विश्व जेलीफिश दिवस पर, जो हर साल तीन नवंबर को मनाया जाता है, आइये जानते हैं इस आकर्षक प्रजाति के बारे में-

महासागरों का बढ़ता तापमान

जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर - सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, 1970 से महासागर लगातार गर्म हो रहे हैं और 1993 के बाद यह प्रक्रिया और तेज हो गई है। इस बढ़ते तापमान के साथ-साथ समुद्री जल में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है, और पोषक तत्वों की अधिकता भी बढ़ रही है। इन परिस्थितियों में जहां अधिकतर मछलियां और प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ्स) जीवित नहीं रह पातीं, वहीं जेलीफिश के लिए यह माहौल बिल्कुल अनुकूल साबित हो रहा है।

जेलीफिश की आबादी में बढ़ोतरी

वैज्ञानिकों के अनुसार, 1950 के बाद से विश्व के कम-से-कम 68 समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों में जेलीफिश की आबादी बढ़ी है। जापान में पाए जाने वाले विशालकाय जेलीफिश (नेमोपिलेमा नोमुराई) के झुंड पहले हर 40 साल में एक बार दिखाई देते थे, लेकिन अब 2000 के दशक से यह हर साल देखने को मिलते हैं। इनकी संख्या में यह वृद्धि केवल प्राकृतिक चक्र का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर मानवजनित पर्यावरणीय बदलावों का परिणाम है।

बढ़ती जेलीफिश से होने वाले खतरे

  • जेलीफिश की बढ़ती आबादी कई समस्याएं भी पैदा कर रही है।

  • ये मछुआरों के जालों में फंसकर उन्हें नुकसान पहुंचाती हैं।

  • समुद्र तटीय पर्यटन स्थलों पर इनकी बढ़ती संख्या लोगों को तैरने से रोकती है।

  • इनके डंक से हर साल हजारों लोग घायल होते हैं।

  • ये मछलियों के गलफड़ों में फंसकर उन्हें मार देती हैं।

  • कई बार ये न्यूक्लियर पावर प्लांट्स या बिजलीघरों के ठंडे पानी के सिस्टम को भी जाम कर देती हैं, जिसके कारण महंगे शटडाउन करने पड़ते हैं।

क्यों फल-फूल रही हैं जेलीफिश?

बढ़ता गर्म पानी: जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, प्रवाल भित्तियां ठंडे क्षेत्रों की ओर खिसक रही हैं। उनके खाली स्थान पर जेलीफिश नए क्षेत्रों में बस रही हैं।

अम्लीकरण: वातावरण में बढ़ता सीओ2 समुद्र के पानी में घुलकर उसे अम्लीय बना रहा है। इससे प्रवाल भित्तियां “कोरल ब्लीचिंग” के कारण मर रही हैं। जब प्रवाल मरते हैं, तो जेलीफिश के फैलने का रास्ता खुल जाता है।

अतिपोषण: खेतों से निकलने वाला खाद और सीवेज समुद्र में जाकर अत्यधिक पोषक तत्व बढ़ाता है। इससे शैवाल बढ़ते हैं और उनके सड़ने से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसे “डेड जोन” में जहां अन्य मछलियां मर जाती हैं, जेलीफिश आराम से जी सकती हैं।

अधिक मछली पकड़ना: ट्यूना और समुद्री कछुओं जैसी प्रजातियां, जो जेलीफिश को खाती हैं, अब कम होती जा रही हैं। शिकारी घटने से जेलीफिश की संख्या और बढ़ रही है।

तटीय ढांचे: बंदरगाहों, जेटियों और नावों के नीचे बने ढांचे जेलीफिश के छोटे रूप यानी “पॉलिप्स” के चिपकने और बढ़ने के लिए आदर्श जगह बन जाते हैं।

अमर जेलीफिश: प्रकृति का अद्भुत रहस्य

वैज्ञानिकों ने पाया है कि कुछ जेलीफिश की प्रजातियां लगभग “अमर” होती हैं। टूरिटोप्सिस डोहरनी नामक प्रजाति तब भी नहीं मरती जब उसका शरीर नष्ट हो जाता है। उसकी कोशिकाएं दोबारा एकत्र होकर “पॉलिप” अवस्था में लौट जाती हैं और फिर से नई जेलीफिश के रूप में विकसित हो जाती हैं।

इसी तरह “मून जेलीफिश” में भी यह अद्भुत क्षमता देखी गई है। यह खोज जैव-विज्ञान और पुनर्जनन के क्षेत्र में एक बड़ी संभावना मानी जा रही है।

समस्या में संभावना: जेलीफिश का उपयोग

वैज्ञानिक अब जेलीफिश की क्षमताओं का उपयोग समुद्री प्रदूषण को कम करने में करना चाहते हैं। “गोजेली प्रोजेक्ट” नामक एक पहल के तहत शोधकर्ता जेलीफिश के म्यूकस से ऐसा फिल्टर बनाना चाहते हैं जो माइक्रोप्लास्टिक को पकड़ सके। इसे गंदे पानी की सफाई संयंत्रों में लगाया जा सकेगा, जिससे समुद्री जीवन को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से कुछ हद तक बचाया जा सकेगा।

जेलीफिश इस बात का प्रतीक हैं कि कैसे कुछ जीव मानवजनित पर्यावरणीय संकटों में भी पनप सकते हैं। परंतु यह “सफलता” समुद्री पारिस्थितिकी के असंतुलन की स्पष्ट चेतावनी है। अगर समुद्रों का तापमान, प्रदूषण और मछली पकड़ने की दर इसी तरह बढ़ती रही, तो आने वाले समय में समुद्रों में मछलियों की जगह जेलीफिश का साम्राज्य देखने को मिल सकता है।

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