विश्व पशु दिवस: केवल लोगों का ही नहीं जानवरों का भी हक है इस ग्रह पर

इस साल के विश्व पशु दिवस की थीम "दुनिया उनका भी घर है", यह इस बात पर प्रकाश डालती है कि जानवर न केवल पृथ्वी के निवासी हैं बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं
भारत में राजसी रॉयल बंगाल टाइगर से लेकर गंभीर रूप से लुप्तप्राय भारतीय गैंडे लगातार खतरे में हैं।
भारत में राजसी रॉयल बंगाल टाइगर से लेकर गंभीर रूप से लुप्तप्राय भारतीय गैंडे लगातार खतरे में हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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हर साल चार अक्टूबर को विश्व पशु दिवस मनाया जाता है, इसका उद्देश्य जानवरों के कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जानवरों के अधिकारों की बात को आगे बढ़ाना है। यह लोगों और जानवरों के बीच गहरे संबंध को सामने लाता है और हमारे ग्रह पर रहने वाली अनेकों प्रजातियों की रक्षा और देखभाल की जरूरत पर जोर देता है।

विश्व पशु दिवस पहली बार 24 मार्च, 1925 को जर्मनी में बर्लिन के स्पोर्ट्स पैलेस में मनाया गया था, जिसका श्रेय सिनोलॉजिस्ट और पशु संरक्षण अधिवक्ता हेनरिक जिमरमैन को जाता है। उनका उद्देश्य पशु कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। उस समय इसके समर्थन के लिए पांच हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया। अब यह दिन एक विश्वव्यापी आंदोलन बन चुका है, जिसने लाखों लोगों को जानवरों की भलाई के लिए कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है।

विश्व पशु दिवस के तहत पशुओं के साथ मानवीय व्यवहार को बढ़ावा देना है तथा क्रूरता, शोषण, आवासों के नष्ट होने और प्रजातियों के विलुप्त होने जैसे अहम मुद्दों पर गौर करना है।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि लोगों का नैतिक दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि जानवरों, चाहे वे जंगली हों या पालतू हों, इनके साथ सम्मान और करुणा से पेश आया जाए। यह उन पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा करने पर भी जोर देता है जो पशु जीवन को बनाए रखते हैं, क्योंकि पशु आबादी का स्वास्थ्य अक्सर हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य को दर्शाता है।

इस साल के विश्व पशु दिवस की थीम, "दुनिया उनका भी घर है" यह इस बात पर प्रकाश डालती है कि जानवर न केवल पृथ्वी के निवासी हैं बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह सुरक्षित और संरक्षित वातावरण में रहने के उनके अधिकार पर जोर देता है।

भारत में राजसी रॉयल बंगाल टाइगर से लेकर गंभीर रूप से लुप्तप्राय भारतीय गैंडे लगातार खतरे में हैं। आवास विनाश, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष ने इन प्रजातियों को खतरे की कगार पर ला खड़ा किया है। बाघ जो कभी अदम्य शक्ति का प्रतीक था अब जंगल के छोटे-छोटे हिस्सों में घूमता है। भारतीय गैंडे जिनकी संख्या कभी शिकार के कारण कम हो गई थी, अपने आवास के नुकसान और अपने सींग के लिए अवैध शिकार के निरंतर दबाव का सामना कर रहे हैं।

इसी तरह एशियाई शेर, जिसकी आबादी अब गिर के जंगल तक सीमित है अपने आखिरी बचे प्राकृतिक आवास में अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है। यह छोटी आबादी सीमित क्षेत्र में जीवित रहती है, जिससे वे बीमारी के प्रकोप या जंगल की आग जैसी भयावह घटनाओं के प्रति अधिक संकट में हैं, जो उन्हें हमेशा के लिए खत्म कर सकती हैं। भारत की प्राकृतिक विरासत के प्रतीक ये जीव केवल जानवर नहीं हैं, वे पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं जो जीवन को बनाए रखते हैं, जिसमें हमारा जीवन भी शामिल है।

हालांकि विश्व पशु दिवस का समाज पर काफी असर पड़ा है, पिछले कुछ दशकों में, इसने पशुओं के साथ व्यवहार करने के तरीके में भारी बदलाव लाने में मदद की है। सरकारों ने सख्त पशु कल्याण कानून पारित किए हैं, उद्योगों ने क्रूरता-मुक्त प्रथाओं को अपनाया है और उपभोक्ता पशु उत्पादों के मामले में नैतिक विकल्पों के महत्व के बारे में अधिक जागरूक हो गए हैं।

यह दिन पशुओं के अधिकारों और पर्यावरण की स्थिरता के बीच संबंध की गहरी समझ को भी बढ़ावा देता है। दुनिया के कई सबसे गंभीर पर्यावरणीय मुद्दे, जैसे जंगलों के काटे जाने और जलवायु में बदलाव, सीधे तौर पर जानवरों के आवासों को नष्ट करने की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे जैव विविधता का नुकसान होता है। जानवरों की सुरक्षा करके, विश्व पशु दिवस पर्यावरण संरक्षण की व्यापक मुकाबले में भी योगदान देता है।

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