सदियों से हमारे पुरखे प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके रहते आए हैं| उन्होंने अपने अनुभवों के जरिए ऐसे अनगिनत औषधीय पौधों के बारे में ज्ञान अर्जित किया था जो किसी किताब किसी लेख में दर्ज नहीं हैं, वो बस उन गिने चुने लोगों के पास विरासत के रूप में हैं, जो उस खास भाषाओं के जानकार हैं|
उन्होंने इसे विरासत की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी संजो के रखा हुआ है, पर जैसे-जैसे यह पारम्परिक स्थानीय भाषाई विविधता खत्म हो रही है, उसके साथ ही यह सदियों पुराने उपचार और औषधीय पौधों का ज्ञान भी खत्म होता जा रहा है|
इस पर यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिच के शोधकर्ता रोड्रिगो कैमारा लेरेट द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि भाषाओं के विलुप्त होने के साथ ही औषधीय पौधों के बारे में जो सदियों पुराना ज्ञान है उसपर भी लुप्त होने खतरा मंडराने लगा है|
शोध के अनुसार दुनिया में करीब 7,400 भाषाएं बची हैं, जिनमें से 30 फीसदी को इस सदी के अंत तक कोई बोलने-समझने वाला नहीं होगा| इन भाषाओं के विलुप्त होने के साथ ही इन भाषाओं में संजोया जो अद्वितीय औषधीय ज्ञान है, उसको कितना नुकसान होगा उस बारे में हमारी समझ सीमित है|
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि औषधीय पौधों के बारे में जो यह स्थानीय ज्ञान है वो किस हद तक अलग-अलग भाषाओं से जुड़ा हुआ है| भाषाओं और पौधों के विलुप्त होने के साथ-साथ कितना स्थानीय पारम्परिक ज्ञान गायब हो सकता है।
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने उत्तरी अमेरिका, उत्तर-पश्चिम अमेज़ोनिया और न्यू गिनी पर शोध किया है, यह तीनो क्षेत्र जैव विविधता के साथ-साथ सांस्कृतिक विविधता के भी धनी हैं| शोधकर्ताओं के अनुसार इस क्षेत्र में औषधीय गुणों वाले 3,597 पौधे और उनके बारे में 12,495 तरह के औषधीय उपयोग और सेवाएं 236 स्थानीय भाषाओं से सम्बंधित हैं| इनके बारे में जो औषधीय ज्ञान है, वो भाषाई रूप से अद्वितीय है, जिसका मतलब है कि उसके बारे में केवल एक भाषा में ही जानकारी उपलब्ध है|
शोधकर्ताओं के अनुसार उत्तरी अमेरिका में 73 फीसदी औषधीय ज्ञान केवल एक भाषा में पाया जाता है| इसी तरह उत्तर-पश्चिम अमेज़ोनिया में 91 फीसदी और न्यू गिनी में 84 फीसदी औषधीय पौधों के बारे में ज्ञान केवल एक भाषा में उपलब्ध है|
ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह जो अद्वितीय ज्ञान है वो ज्यादातर उन भाषाओं में है जो पहले ही खतरे में हैं। विश्लेषण के अनुसार उत्तरी अमेरिका में जहां 82 फीसदी पारम्परिक और अद्वितीय ज्ञान उन भाषाओं ने संजोया हुआ है जो पहले ही खतरे में हैं| इसी तरह उत्तर-पश्चिम अमेज़ोनिया में यह आंकड़ा 66 फीसदी और न्यू गिनी में 18 फीसदी है| यदि यह भाषाएं विलुप्त होती हैं तो इनके साथ यह ज्ञान भी विलुप्त हो जाएगा| शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसा ही दुनिया के अन्य क्षेत्रों में भी होगा| ऐसे में इस ज्ञान को भविष्य के लिए संरक्षित करने की जरुरत है|
क्यों जरुरी हैं स्थानीय भाषाओं का संरक्षण
पापुआ न्यू गिनी पर किए ऐसे ही एक शोध से पता चला है कि वहां जैसे-जैसी भाषाएं विलुप्त हो रही हैं वहां का स्थानीय ज्ञान भी खत्म होता जा रहा है| पापुआ न्यू गिनी जहां 90 लाख लोग 850 भाषाएं बोलते हैं, दुनिया का सबसे भाषाई विविधता वाले स्थानों में से एक है|
शोध से पता चला है कि वहां स्थानीय भाषाओं के बारे में जितना ज्ञान माता-पिता को है उतना उनके बच्चों को नहीं है| अनुमान है कि उनकी अगली पीढ़ी में यह ज्ञान और घट जाएगा| वहां स्थानीय भाषाओं के ज्ञान में जो गिरावट आ रही है, उसका असर प्रकृति के बारे में उनके पारम्परिक ज्ञान पर भी पड़ रहा है, उसमें भी पीढ़ी दर पीढ़ी कमी आती जा रही है|
शिकार, मछली पकड़ना, खाद्य फसलें उगाना, जंगलों से मिलने वाली स्थानीय सामग्री से घर बनाना और साथ ही औषधीय पौधों के बारे में जो पारम्परिक ज्ञान है उसमें भी गिरावट आती जा रही है| साथ ही स्थानीय भाषाओं के साथ ही वहां वर्षा वन में पेड़ पौधों और जानवरों के बारे में जो पारम्परिक ज्ञान है वो भी पीढ़ी दर पीढ़ी विलुप्त होता जा रहा है|
भाषा किसी भी संस्कृति की पहचान उसकी विरासत होती हैं वो सिर्फ शब्दों को ही नहीं संजोती वो उस भाषा के साथ सदियों पुराने ज्ञान को भी संजोए रहती है| ऐसे में इन औषधीय पौधों और विरासत में मिले पारम्परिक ज्ञान को बचाने के लिए, इन स्थानीय भाषाओं को भी विलुप्त होने से बचाना अत्यंत जरुरी है|