क्या हसदेव अरण्य के कोल ब्लॉक्स ‘बेंडर’ की तरह नीलामी से बाहर होंगे?

हसदेव अरण्य क्षेत्र की ग्राम सभाओं द्वारा लगाचार चेताया जाता रहा है कि इस अति संवेदनशील जंगल का संरक्षण किया जाना चाहिए न कि इसे चंद पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए बर्बाद किया जाना चाहिए
हसदेव नदी। फोटो विकीमीडिया कॉमन्स
हसदेव नदी। फोटो विकीमीडिया कॉमन्स
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वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए कोयले की नीलामी प्रक्रिया से संबंधित एक अहम अधिसूचना कोयला मंत्रालय ने 21 जुलाई को जारी की है जिसमें महाराष्ट्र के टडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व की सीमा में मौजूद बेंडर कोल ब्लॉक को नीलामी प्रक्रिया से बाहर किया गया है।

18 जून 2020 को चार राज्यों की 41 कोयला खदानों को वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए नीलामी प्रक्रिया में शामिल किया गया था। इस नीलामी प्रक्रिया को आधिकारिक व औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में शुरू किया गया था। उस दिन यह तय हुआ कि 18 अगस्त तक निविदाएंं आमंत्रित की जाएंगी।

नीलामी के लिए प्रस्तावित कोयला खदानों की विस्तृत सूची ज़ाहिर हो जाने के बाद बाद से ही बेंडर कोयला खदान को लेकर महाराष्ट्र में विरोध के स्वर मुखर हो गए थे। न केवल पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने बल्कि स्वयं राज्य के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने 1644 वर्ग हेक्टेयर के इस संवेदनशील क्षेत्र को संरक्षित किए जाने और टडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व (टीएआरआर) जैसे ईको-सेंसिटिव ज़ोन में कोयला खदान शुरू न करने के लिए देश के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर को पत्र लिखा था।

उल्लेखनीय है कि इस कोयला खदान को 2009 व 2019 में भी खनन के लिए प्रस्तावित किया जाता रहा है। हर बार इसके खिलाफ पर्यावरणविदों ने आपत्तियां दर्ज़ की हैं। सत्ता में रही राज्य की तत्कालीन सरकारों ने भी इस पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र को बचाए जाने की भरसक कोशिश की है।

महाराष्ट्र के लिए और देश के तमाम ऐसे लोगों के लिए ये राहत की ख़बर है कि इस ‘ईको सेंसिटिव ज़ोन’ को चंद पूंजीपतियों के मुनाफे से ज़्यादा अहमियत दी गई।

कमर्शियल उद्देश्य के लिए नीलामी प्रक्रिया में शामिल किए गए कॉल ब्लॉक्स को लेकर छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारों ने भी गंभीर आपत्तियां जताईं थीं। झारखंड सरकार तो इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी पहुंची जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा है। 

ठीक ऐसी ही उम्मीद थी कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के सघन, जैव विविधतता से भरपूर, कितनी ही प्रजातियों के वन्य जीवों के प्राकृतिक पर्यावास, उत्तर भारत में मानसून की दशा दिशा निर्धारित करने वाले प्राकृतिक जंगल और परिस्थितिकी तंत्र के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र में मौजूद कोल ब्लॉक्स को भी इस सूची से बाहर किया जाएगा। जहां 2015 से निरंतर इन कोयला खदानों का विरोध हो रहा है।

18 जून 2020 के बाद के घटनाक्रम और बल्कि कमर्शियल कोल माइनिंग की घोषणा के बाद से ही हसदेव अरण्य के क्षेत्र से ग्राम सभाओं और राज्य भर के जन संगठनों की ओर से भारत सरकार को चेताया जाता रहा है कि इस अति संवेदनशील जंगल का संरक्षण किया जाना चाहिए न कि इसे चंद पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए बर्बाद किया जाना चाहिए।

ग्राम सभाओं, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के विरोध को राज्य की सरकार ने भी समर्थन दिया और 22 जून 2020 को राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने केंद्रीय कोयाला मंत्री प्रहलाद जोशी को एक विस्तृत पत्र लिखकर इस बाबत गुजारिश की कि इस जंगल में मौजूद कोयला खदानों को नीलामी प्रक्रिया से बाहर किया जाये।

इस पत्र के बाद फायनेंशियल एक्सप्रेस में 1 जुलाई 2020 को अनुपम चटर्जी ने, 2 जुलाई को टाइम्स ऑफ इंडिया में विजय पींजकर ने और पत्रिका रायपुर ने इस संबंध में खबरें दीं जिनमें बताया गया कि हसदेव अरण्य के चार कोल ब्लॉक्स को बाहर करना तय किया गया है।  

इसके पीछे के कारणों को अलग-अलग ढंग से बताया गया। फायनेंशियल एक्सप्रेस ने जहां बताया कि इन चार कोल ब्लॉक्स की भंडारण क्षमता कम है इसलिए इनके स्थान पर ज़्यादा क्षमता के कोल ब्लॉक्स शामिल किए जाएंगे ताकि निवेशको की रुचि बढ़े। एक खबर में कारण मोहम्मद अकबर के पत्र और राज्य सरकार कि चिंताओं को तरजीह दिये जाने के भी बताए गए।

हालांकि ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं ने इस खबर को अपुष्ट बताते हुए इस पर कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं दी और आधिकारिक अधिसूचना का इंतज़ार किया।

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति से नजदीक से जुड़े और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने बताया, “हम अफवाहों के आधार पर या चलते फिरते कोयला मंत्री के किसी बयान के आधार पर यह नहीं मान सकते कि वाकई इन कोल ब्लॉक्स को नीलामी प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। इसके अलावा हमारी आपत्ति केवल इन कोल ब्लॉक्स को शामिल किए जाने को लेकर नहीं हैं बल्कि कमर्शियल कोल माइनिंग की पूरी अवधारणा को लेकर है। कोयले की जरूरत के बिना उसकी नीलामी की शर्तों को शिथिल करते हुए, राज्यों की शक्तियों को धता बताते हुए केंद्र सरकार ने जो निर्णय लिए हैं, उन्हें लेकर है”।

21 जुलाई की अधिसूचना ने जैसे इन अटकलों और अफवाहों पर कुछ समय के लिए विराम लगा दिया। इस अधिसूचना में हसदेव अरण्य के क्षेत्र में मौजूद कॉल ब्लॉक्स को लेकर कोई बात नहीं हुई है। यह महज़ वेंडर कॉल ब्लॉक के लिए ही जारी हुई।

इसका पूर्वानुमान प्रह्लाद जोशी के 29 जून 2020 के  उस पत्र से भी हो रहा था जो उन्होंने मोहम्मद अकबर के पत्र के जबाव में लिखा था। उन्होंने लिखा था कि हम इस विषय में ‘जांच पड़ताल’ कर रहे हैं।

इस नीलामी प्रक्रिया को लेकर जो आपत्तियां आईं हैं उनमें कुछ तर्क प्रमुखता से उभर कर आए हैं मसलन, यह पूरी प्रक्रिया कोयला जैसे राष्ट्रीय संपदा पर केवल केंद्र सरकार ही निर्णय ले रही है जो भारतीय गणराज्य के संघीय ढांचे पर और राज्यों की शक्तियों पर बड़ा सवाल है। दूसरा इसमें राज्यों को भरोसे में नहीं लिया गया है, स्थानीय सरकारों यानी ग्राम सभाओं (विशेष रूप से पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में) को नज़रअंदाज़ किया गया है। पर राज्यों की सरकारों का नियंत्रण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय 2014 के स्पष्ट आदेश का खुला उल्लंघन है भी सतह पर आया।

इसके जवाब में प्रह्लाद जोशी के हवाले से यह भी कहा गया कि कोयला मंत्रालय ने राज्य सरकारों के साथ 8 बैठकें की हैं। इसलिए इन आरोपों में कोई बल नहीं है कि प्रक्रिया का पालन ठीक से नहीं किया गया। हालांकि ऐसी किसी एक भी बैठक का विवरण जन सामान्य के लिए मौजूद नहीं है। स्वयं राज्य सरकारें इस बात से अवगत नहीं हैं। अगर ऐसा वाकई हुआ होता तो झारखंड सरकार स्वयं सुप्रीम कोर्ट में इस नीलामी प्रक्रिया के खिलाफ याचिका दायर क्यों करती? 

ऐसे कई अनुत्तरित सवाल हैं जिससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार किस तरह से अपारदर्शी ढंग से काम कर रही है।  

खबरें यह भी आईं कि छत्तीसगढ़ की सरकार पहले से ही प्रस्तावित लेमरू हाथी अभयारण्य की चौहद्दी बढ़ाने का फैसला ले चुकी है। इसके बावत भी एक पत्र मोहम्मद अकबर ने देश के वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के मंत्री प्रकाश जावडेकर को भेजा है और इसमें लेमरू हाथी अभयारण्य का क्षेत्रफल बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले से अवगत कराया है।

इस पत्र के बावत हालांकि कोई प्रतिक्रिया अभी प्रकाश जावड़ेकर के दफ्तर से सामने नहीं आई है।

महाराष्ट्र के एक कोल ब्लॉक को जिन आधारों पर नीलामी प्रक्रिया से बाहर किया गया है, ठीक उन्हीं आधारों पर छत्तीसगढ़ के कोल ब्लॉक्स को क्यों बाहर नहीं किया गया यह समझ से परे है। क्या मामला एक कोल ब्लॉक और चार कोल ब्लॉक्स की तादाद को लेकर है? या इसके पीछे महाराष्ट्र में अपने से जुदा हुए सबसे पुराने सहयोगी का सार्वजनिक तौर पर मान रखने को लेकर है? कहा तो यह भी जा रहा है कि कोयला खदानों पर भी अंतिम निर्णय अब कोयला मंत्रालय या प्रधानमंत्री कार्यालय की बजाय नागपुर से ही हो रहा है। यह भी आज के न्यू इंडिया में स्थापित तथ्य हो गया है कि छत्तीसगढ़ की कोयला खदानें किस अंतरंगी मित्र को जाने वाली हैं यह पहले से निर्धारित है और उसके खिलाफ केंद्र सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही नतमस्तक है जबकि महाराष्ट्र में बेन्डर की खदान किसे जाने वाली थी इसे लेकर बहुत स्पष्टता नहीं थी।

बहरहाल, 18 अगस्त को होने वाली बिडिंग में यह तस्वीर भी साफ हो जाएगी लेकिन इस कदम से छत्तीसगढ़ में एक असंतोष पैदा हुआ है। अब भी राज्य सरकार के पास करने को बहुत कुछ है लेकिन वह अपने समृद्ध जंगल और उसमें निवासरत आदिवासी समुदायों को बचाने के लिए कितनी गंभीर है, यह आने वाले समय में पता लग पाएगा।

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