बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 3000 से अधिक नील गायों को मारने की तैयारी स्थानीय प्रशासन द्वारा की गयी है। इसके लिए तमिलनाडु से शार्प शूटर को भी बुलाया गया है। नील गायों को मारने का यह अभियान 23 जनवरी से ही शुरू होना था, मगर शूटर असगर अली की तबीयत खराब होने की वजह से यह अभियान फिलहाल शुरू नहीं हो पाया है। हालांकि नील गायों की सामूहिक हत्या के इस सरकारी अभियान का केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की संस्था पीपल्स फॉर एनीमल ने विरोध किया है और सरकार को पत्र लिखकर वैकल्पिक उपाय अपनाने को कहा है। मगर सरकार का पक्ष है कि किसानों को होने वाले भारी नुकसान की वजह से यह आखिरी उपाय अपनाने को मजबूर होना पड़ा है। लेकिन दिलचस्प है कि ऐसी ही परिस्थितियों का सामना कर रहे भोजपुर जिले के किसान 20 रुपए में मिलने वाली वेस्ट डिकंपोजर दवा से नील गायों को अपने खेतों से दूर रख रहे हैं।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के आठ प्रखंडों के किसान नील गाय के आतंक से परेशान हैं। इनमें मुरौल, मीनापुर, मुशहरी, सकरा, कुढ़नी, कांटी, मोतीपुर और सरैया शामिल है।
इससे पहले भी 2016 में बिहार के मोकामा में 250 नील गायों को शूटर बुलाकर शूट कराया गया था। उस वक्त भी केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने इस सामूहिक हत्या का विरोध किया था और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे नियम संगत बताया था। उसी तर्ज पर फिर मुजफ्फरपुर में नील गायों को शूट कराने की तैयारी है।
मेनका गांधी की संस्था की ओर से पशु अधिकारों की पैरोकार गौरी मुलेखी ने बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार को कानूनी नोटिस भेजा है। उन्होंने इसे आपराधिक घटना बताते हुए इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। हालांकि बिहार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा है कि उन्हें नोटिस नहीं मिला है। वे कहते हैं कि विभाग खुद नील गायों को मारने के पक्ष में नहीं है, मगर किसानों के भारी नुकसान को देखते हुए ऐसा आदेश जारी करना पड़ा है।
इस मसले पर पूछे जाने पर बिहार में किसानों के सवाल पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता इश्तेयाक अहमद कहते हैं कि किसानों के नाम पर ऐसे फैसले लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल सरकार को पहले नील गायों के इस व्यवहार की वजह को समझना चाहिए। नील गाय वस्तुतः अर्ध जंगली पशु है, जो गांवों के भीतर या सटे इलाकों में स्थित अर्ध जंगली इलाके जैसे बगीचे, घास के मैदान या बांस की बीट में रहते हैं। मगर हाल के दिनों में ग्रामीण इलाकों से जिस तरह जंगल खत्म हो रहे हैं, ऐसा होना स्वाभाविक है। वह कहते हैं कि सरकार में इस समस्या के बेहतर समाधान तलाशने की इच्छाशक्ति नहीं है, इसलिए ऐसा क्रूर फैसले लिये जा रहे हैं, जबकि इसी बिहार के भोजपुर जिले में महज बीस रुपये के वेस्ट डिकंपोजर की बोतल से किसान नील गायों से अपने फसलों की सुरक्षा कर रहे हैं।
इस बारे में बात करने पर भोजपुर कृषि विकास केंद्र के प्रभारी और वरीय वैज्ञानिक प्रवीण कुमार द्विवेदी कहते हैं कि यह सच्ची बात है कि डिकंपोजर के व्यवहार से भोजपुर जिले के हजारों किसानों ने अपनी फसलों को नील गाय से बचाने में सफलता पायी है। वैसे तो वेस्ट डिकंपोजर एक जैविक खरपतवार नाशक है और यह खेती में खाद की जरूरत को एक तिहाई तक कम करता है, हम इसे इसी वजह से प्रोमोट करते हैं, मगर इसे इस्तेमाल करने वाले स्थानीय किसानों ने मुझे जानकारी दी कि इसके इस्तेमाल के बार नील गाय खेतों में नहीं आते। फिर मैंने उनके दावे की वैज्ञानिक परीक्षा की और इसे सही पाया।
द्विवेदी कहते हैं कि हमने वेस्ट डिकंपोजर के इस्तेमाल से नील गायों को खेतों से दूर रखने की एक विधि विकसित की है। इसके लिए पहले तीन-तीन दिन पर तीन बार और फिर हर आठ दिन पर एक बार इसके प्रयोग से नील गाय फसल से दूर रहती है। हालांकि एक बारगी यह तरीका थोड़ा श्रमसाध्य लगता है, मगर फसलों के नुकसान के मुकाबले यह उतना मुश्किल है भी नहीं। इसके दूसरे भी कई फायदे हैं। द्विवेदी इस प्रयोग को भोजपुर जिले में किसानों के बीच लागू करा रहे हैं और उन्होंने इसकी सूचना राज्य स्तर पर विभाग को भी दी है। मगर राज्य सरकार ऐसे प्रयोगों को बढ़ावा देने के बदले नील गायों की मास शूटिंग जैसे क्रूर उपायों को अपनाने पर तरजीह दे रही है।