भारत में इंसानी लालच की भेंट चढ़ते वन्यजीव, तीन दशकों में अवैध व्यापार का शिकार हुए 8,603 पैंगोलिन

यह शर्मीले जीव पिछले करीब छह करोड़ वर्षों से पृथ्वी पर मौजूद है। भारत में इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं और दोनों ही वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं
भारत मे पैंगोलिन की अधिकांश बरामदगी मध्य भारत से हुई है, विशेष रूप से ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इसके सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं; फोटो: आईस्टॉक
भारत मे पैंगोलिन की अधिकांश बरामदगी मध्य भारत से हुई है, विशेष रूप से ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इसके सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं; फोटो: आईस्टॉक
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जंगली जीवों का होता अवैध व्यापार भारत में भी बड़े पैमाने पर अपने पैर पसार चुका है। इस अवैध व्यापार से पैंगोलिन जैसे जीव भी सुरक्षित नहीं हैं। इसका सबूत है कि पिछले तीन दशकों में भारत में पैंगोलिन से जुड़ी बरामदगी की 426 घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं में कुल 8,603 पैंगोलिन के किए गए अवैध व्यापार के सबूत मिले हैं।

गौरतलब है कि पैंगोलिन एक ऐसा जीव है जिसके पूरे शरीर पर शल्क (स्केल) होते हैं। आमतौर पर चींटीखोर के रूप में जाना जाने वाला यह जीव वज्रशल्क के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं अपने इन्हीं शल्कों और मांस के यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किए जाने वाले जंगली स्तनधारी जीवों में से भी एक है।

दुनियाभर में जितने वन्य जीवों की अवैध तस्करी होती हैं उनमें 20 फीसदी की हिस्सेदारी केवल पैंगोलिन की है। यही वजह की इन जीवों को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लिस्ट में शामिल किया गया है, जिनकी आबादी तेजी से कम हो रही है।

बता दें कि यह शर्मीले जीव करीब पिछले छह करोड़ वर्षों से पृथ्वी पर मौजूद है, जो चींटी और दीमक जैसे कीड़ों को खाकर गुजारा करते हैं। इनकी शारीरिक संरचना को देखें तो इनके शरीर पर केराटिन के बने शल्क (स्केल) होते है, जिससे वो दूसरे जीवों से अपनी रक्षा करता है। पैंगोलिन दुनिया भर में ऐसे शल्कों वाला अकेला ज्ञात स्तनधारी जीव है।

दुनिया में इसकी आठ प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से चार अफ्रीका में और चार एशिया में मिलती हैं। भारत की बात करें तो वो पैंगोलिन की दो प्रजातियों भारतीय पैंगोलिन (मैनिस क्रैसिकाउडाटा) और चीनी पैंगोलिन (मैनिस पेन्टाडैक्टाएला) का घर है।  

पैंगोलिन एक ऐसा जानवर हैं जिसका मांस और पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग के लिए बड़ी मात्रा में अवैध शिकार और व्यापार किया जाता है। यह अवैध शिकार और व्यापार विशेष तौर पर एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में बड़ी समस्या पैदा कर रहा है।

रिसर्च से पता चला है कि भारतीय पैंगोलिन भी इस बढ़ते खतरे से सुरक्षित नहीं हैं। पिछले एक दशक से इसका अवैध व्यापार भारत में भी तेजी से फल-फूल रहा है। इनकी बरामदगी के हालिया आंकड़ें भी इस प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं। यदि इनकी तस्करी की बात करें तो विशेष रूप से इनका शिकार चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इनकी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए किया जाता है। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी भारी कीमत होने के कारण भारत में भी बड़े पैमाने पर इनकी तस्करी की जाती है।

नए अध्ययन के मुताबिक भारत में 1991 से 2022 के बीच पैंगोलिन की बरामदगी की 426 घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं में 8,603 पैंगोलिन के अवैध व्यापार में पाए जाने का खुलासा हुआ है। बता दें कि पैंगोलिन से जुड़ी बरामदगी की इन घटनाओं में कम से कम 5,788.94 किलोग्राम पैंगोलिन शल्क (स्केल), 30 किलोग्राम मांस, 192 जीवित पैंगोलिन, 72 पंजे, सात खालें, पांच मृत पैंगोलिन, एक स्केल रिंग, एक त्वचा/स्केल/हड्डी और एक ट्रॉफी जब्त की गई।

वहीं 22 अन्य घटनाओं में, पैंगोलिन से संबंधित जब्त चीजों की मात्रा के बारे में पता नहीं चल पाया है। इनमें से तीन घटनाओं में पैंगोलिन का मांस, एक में पंजे और 18 घटनाओं में इनके शल्क के किए गए अवैध व्यापार का खुलासा हुआ है।

यह विश्लेषण वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन, मॉनिटर कंजर्वेशन रिसर्च सोसाइटी, ऑक्सफोर्ड वाइल्डलाइफ ट्रेड रिसर्च ग्रुप, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन रिसर्च यूनिट से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे यूरोपियन जर्नल ऑफ वाइल्डलाइफ रिसर्च में प्रकाशित हुए हैं।

बरामदगी के 1.4 फीसदी मामलों में ही हो पाई है सजा

शोधकर्ताओं के अनुसार इनकी बड़ी संख्या में बरामदगी कई कारणों से हो सकती है, जिनमें बढ़ता अवैध शिकार और व्यापार के साथ बेहतर कानून प्रवर्तन, रिपोर्टिंग और लोगों में इसके प्रति बढ़ती जागरूकता शामिल है।

वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में जीवित पैंगोलिन का बढ़ता शिकार और व्यापार अंतराष्ट्रीय बाजार में इसकी बढ़ती मांग से प्रेरित है। देखा जाए तो भारत में वन्यजीव अपराधों के मामले में सजा का न मिलना भी एक बड़ी चुनौती है। आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में पैंगोलिन की बरामदगी के रिपोर्ट किए गए केवल 1.4 फीसदी मामलों में ही सजा हो पाई है।

भारत में इनका ज्यादातर शिकार पारंपरिक दवाओं के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इनके शल्क विभिन्न बीमारियों के इलाज में फायदेमंद होते हैं। साथ ही कथित तौर औषधीय गुणों के चलते इनके मांस का भी कई देशों में सेवन किया जाता है।

रिसर्च के मुताबिक एशियाई पैंगोलिन तेजी से अपनी प्राकृतिक आवास से गायब हो रहे हैं। जो पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के कई हिस्सों में स्थानीय रूप से विलुप्त हो चुके हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यदि देश में शल्क, मांस और अंगों के लिए इनका अवैध शिकार और तस्करी मौजूदा रफ्तार से जारी रहती है तो भारत में पाई जाने वाली पैंगोलिन की दोनों प्रजातियों को भी आने वाले भविष्य में इसी तरह के जोखिम का सामना करना पड़ेगा।

एनजीओ ट्रैफिक और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा जारी रिपोर्ट “इंडियाज पैंगोलिन बरीड इन इलीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड” से भी पता चला है कि पिछले पांच वर्षों 2018 से 2022 के दौरान देश भर में इन जीवों के अवैध व्यापार और उन्हें जब्त करने की कुल 342 घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं में 199 जीवित पैंगोलिन और 880 किलोग्राम से ज्यादा डेरिवेटिव मिले हैं, जिनमें इनके शल्क, त्वचा, पंजे, मांस, हड्डियां और शरीर के अन्य अंग शामिल थे।

वहीं भारत में पैंगोलिन हो रहे अवैध व्यापार पर ट्रैफिक द्वारा 2018 में जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2009 से 2017 के बीच देश में करीब 6,000 पैंगोलिन का अवैध शिकार किया गया था।

रिसर्च के मुताबिक भारत मे पैंगोलिन की अधिकांश बरामदगी मध्य भारत से हुई है, विशेष रूप से ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इसके सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं। यह वो राज्य हैं जो 2021 के भारतीय वन सर्वेक्षण के मुताबिक शीर्ष पांच वन क्षेत्रों वाले राज्यों में शामिल हैं। ऐसे में अनुमान है कि राज्यों में बढ़ते प्रयासों और कानूनों को लागू करने से और अधिक बरामदगी हो सकती है।

मणिपुर से इस दौरान हुए करीब 3,312 पैंगोलिन जब्त

वहीं पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम और असम में सबसे अधिक मात्रा में पैंगोलिन जब्त किए गए। अकेले मणिपुर में इस दौरान करीब 3,312 पैंगोलिन जब्त किए गए थे। इसके बाद मिजोरम में 1049, पश्चिम बंगाल में 1038 और असम में 906 पैंगोलिन या उनके हिस्सों के बराबर बरामदगी हुई है।

बता दें कि यह राज्य बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और नेपाल के साथ सीमा साझा करते हैं, जिससे ये भारत से चीन तक पैंगोलिन शल्क और अन्य वन्यजीव उत्पादों के अवैध व्यापार के लिए महत्वपूर्ण मार्ग बन जाते हैं। पैंगोलिन की जब्ती की कम से कम तीन घटनाओं ने अंतिम व्यापार स्थलों के रूप में चीन, म्यांमार और नेपाल के साथ इस संबंध की पुष्टि की है। इसके अलावा, जब्ती की दो अन्य घटनाओं में, एक भूटानी और एक बर्मी नागरिक को अवैध रूप से पैंगोलिन स्केल के साथ भारत में गिरफ्तार किया गया था, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि यह दोनों देश भारत से होते पैंगोलिन के अवैध व्यापार में जुड़े हैं।

वहीं मणिपुर के चंदेल और मिजोरम के चम्फाई जिले में भी पैंगोलिन की बरामदगी की खबरें सामने आई हैं। ये क्षेत्र म्यांमार में वन्यजीवों की तस्करी के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में, विशेष रूप से दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों में पैंगोलिन की बरामदगी की भी सूचना मिली है, जो जानवरों को बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और नेपाल ले जाने के बिंदु हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पैंगोलिन के होते अवैध व्यापार के मामले में चीन एक प्रमुख गंतव्य बना हुआ है।

गौरतलब है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसके बढ़ते अवैध व्यापार के चलते 2017 से ही पैंगोलिन की सभी प्रजातियों को कन्वेशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इन्डेन्जर्ड स्पिशीज के परिशिष्ट I में सूचीबद्ध किया गया है, जो किसी भी रूप में इनके अंतराष्ट्रीय व्यापार पर रोक लगाता है।

वहीं भारत में पाई जाने वाली इसकी दोनों प्रजातियां को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल किया गया है, जिसका मतलब की इनका शिकार, व्यापार या उनके शरीर के अंगों और डेरिवेटिव का किसी भी अन्य रूप में उपयोग पूरी तरह प्रतिबंध है। इसके बावजूद इनके अवैध व्यापार की सामने आती यह घटनाएं बड़ी चिंता का विषय हैं।

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