पिछले दो दशक से उत्तर बंगाल में गिद्ध दिखने बंद हो गए थे, लेकिन पिछले दिनों जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के सीमा पर बागराकोट में 200 से ज्यादा गिद्ध देखे गए, तो वन विभाग के अधिकारियों की बांछें खिल गईं।
बागराकोट में हिमालयन ग्रिफॉन और ह्वाइट-बैक्ड दोनों प्रजाति के गिद्ध दिखे हैं। 20 साल बाद इन गिद्धों की बागराकोट में वापसी को वन विभाग के अधिकारी अच्छा संकेत मान रहे हैं और उनका कहना है कि आनेवाले दिनों में इनकी तादाद बढ़ेगी।
जालदापाड़ा वाइल्डलाइफ के डीएफओ कुमार विमल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वन क्षेत्र के संरक्षण के चलते वन्य प्राणियों की संख्या में इजाफा हुआ है। इनकी संख्या बढ़ने से गिद्धों को आसानी से भोजन मिल जा रहा है। इस से उन्हें इस क्षेत्र की आबोहवा रहने लायक लग रही है। यही वजह है कि वे यहां नजर आने लगे हैं।
पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अभी करीब 19 हजार गिद्ध हैं। तीन दशक पहले इनकी संख्या चार करोड़ थी। जानकारों के मुताबिक, पशुओं के दर्द निवारण के लिए डिक्टोफेनाक नाम की दवा का बेतहाशा इस्तेमाल किया जाता है, जो पक्षियों के लिए विषैला होता है। जब ये पशु मरते हैं, तो गिद्ध उन्हें खाते हैं, जिस कारण डिक्टोफेनाक उनके शरीर में प्रवेश कर जाता है और उनकी मौत हो जाती है।
पिछले साल गुवाहाटी में एक मृत मवेशी को खा लेने से 33 गिद्धों की मौत हो गई थी जबकि 30 से ज्यादा गिद्धों को मौके से गंभीर हालत में बरामद कर इलाज कराया गया था।
भारत सरकार ने इस दवा के इस्तेमाल पर 2006 में ही प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इसके बावजूद चोरी-छिपे इसका इस्तेमाल हो रहा है।
कुमार विमल ने बताया कि उत्तर बंगाल में इस दवा का इस्तेमाल बंद करने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया गया है। गिद्धों का लौटना साबित करता है कि जागरूकता अभियान का असर हो रहा है।
उन्होंने कहा, “हमलोगों ने पशु चिकित्सकों से लेकर पशुपालकों व आम लोगों को लगातार जागरूक किया कि वे डिक्टोफेनाक की जगह दूसरी दवाइयों का इस्तेमाल करें। जागरूकता अभियान से इस दवाई के इस्तेमाल में कमी आई है। हम इसकी भी पड़ताल कर रहे हैं कि और क्या वजहें हैं कि वे लौटे हैं। इससे हमें गिद्धों के रहने के अनुकूल आबोहवा देने में मदद मिलेगी।”