साल 2017 में पश्चिम बंगाल के तीन जिलों पूर्व मिदनापुर, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना में 2114 वर्ग किलोमीटर में मैंग्रोव का वन फैला हुआ था, जो इस साल घट कर 2112 वर्ग किलोमीटर पर आ गया है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया हर दो वर्ष के अंतराल पर भारत में वनों की स्थिति पर रिपोर्ट जारी करती है।
साल 2017 में जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तर 24 परगना जिले में मैंग्रोव वन 26 वर्ग किलोमीटर में और दक्षिण 24 परगना जिले में ये वन 2084 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस साल जारी रिपोर्ट के के मुताबिक, उत्तर 24 परगना में मैंग्रोव वन क्षेत्र घट कर 25.94 वर्ग किलोमीटर और दक्षिण 24 परगना जिले में 2082.17 वर्ग किलोमीटर हो गया है।
यहां ये भी बता दें कि वर्ष 2015 में पश्चिम बंगाल में मैंग्रोव वन का क्षेत्रफल 2106 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था, जिसमें साल 2017 में 8 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ था।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया 1987 से वनों की स्थिति पर रिपोर्ट जारी कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2001, 2013 और 2015 के बाद यह चौथी बार है जब मैंग्रोव वन में कमी आई है।
सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन के कारण तेज हुए कटाव से कई द्वीपों का अस्तित्व समाप्ति की ओर है। कटाव को रोकने में मैनग्रोव के वन बड़ी भूमिका निभाते हैं। सुंदरवन के गोसाबा द्वीप के भूखंड में मैंग्रोव के वन की बदौलत ही इजाफा किया गया है। ऐसे में सुंदरवन में मैंग्रोव वन के क्षेत्रफल में कमी होना चिंता की बात है।
द्वीपों पर रहने वाले लोगों का कहना है कि मैंग्रोव वन क्षेत्र में मछली माफिया सक्रिय हैं, जो समुद्र के पानी को रोकने के लिए तटबंध बना देते हैं। इससे मैंग्रोव वन में पानी जम जाता है और वो सूख जाता है क्योंकि मैंग्रोव वन को आठों पहर पानी नहीं चाहिए। ये वन उसी जगह फूलता-फलता है जहां ज्वार और भाटा आता हो। यानी कुछ घंटों तक पानी रहे और कुछ घंटों तक सूखा।
नाम नहीं छापने की शर्त पर गोसाबा के मछुआरों ने बताया, “मछली माफिया ने कई जगह तटबंध बना रखा है, जिस कारण मैंग्रोव के पेड़ सूख चुके हैं। हम लोग जब विरोध करते हैं, तो ये लोग हमें जान से मार देने तक की धमकी देते हैं। इतना ही नहीं, ये माफिया मछलियां पकड़ने के लिए मैंग्रोव वन को काट भी रहे हैं।”
नेचर एंड वाइल्ड लाइफ सोसाइटी की ज्वाइंट सेक्रेरी व प्रोग्राम डायरेक्टर अजंता दे कहती हैं, “वर्ष 2017 से पहले मछली माफिया की सक्रियता बिल्कुल खत्म हो गई थी, जिस कारण वन क्षेत्र में विस्तार हुआ था, लेकिन 2017 के बाद वे दोबारा सक्रिय हो गए हैं और मछली पकड़ने के लिए मैंग्रोव वन की बेतहाशा कटाई कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “पिछले हफ्ते ही हमने एक दर्जन तस्वीरें राज्य के वन विभाग को सौंपी थीं, जो बताती हैं कि मछली माफिया किस तरह मैंग्रोव वन को नष्ट कर रहे हैं। वन विभाग की तरफ से आश्वासन मिला है कि इस पर कार्रवाई होगी, लेकिन सिर्फ आश्वासन से कुछ नहीं होनेवाला। इसलिए त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।”