क्यों खतरे में पड़ी होलोंगापार गिब्बन वाइल्डलाइफ सेंचुरी?

केंद्र सरकार के नए फैसले की वजह से कई लुप्तप्राय वन्य जीवों का घर बन चुका होलोंगापार गिब्बन वाइल्डलाइफ सेंचुरी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है

असम की होलोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य यानी सेंचुरी में लुप्तप्राय हूलॉक गिब्बन एप्स, बंगाल स्लो लोरिस, स्टंप-टेल्ड मैकाक, उत्तरी पिग-टेल्ड मैकाक, रीसस मैकाक और लंगूर रहते हैं।

यहां भारतीय हाथी, तेंदुए, सिवेट, जंगली सूअर, विभिन्न प्रकार की गिलहरियां हैं, और ये सभी 12 से 30 मीटर ऊंचे होलोंग पेड़ की छत्रछाया में पल रहे हैं।

दुर्भाग्य से होलोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य के इस इको-सेंसिटिव जोन में तेल और गैस की खोज के लिए ड्रिलिंग को मंजूरी दी गई है, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि ऊर्जा की हमारी जरूरतों के लिए भारत के अद्वितीय वन्यजीव आवास को खत्म करना कितना सही है?

देश की एकमात्र वानर प्रजाति हूलॉक गिब्बन के नाम पर इस सेंचुरी का नाम रखा गया है, जो जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण शरणस्थल है। यह वन गलियारा नागालैंड में डिसोई घाटी रिजर्व वन से सटा हैं, जिससे इसके पारिस्थितिक महत्व के बारे में पता चलता है।

यह सेंचुरी 20.98 वर्ग किलोमीटर में फैला हुई है, जो असम और नागालैंड के 264.92 वर्ग किलोमीटर तक फैले इको-सेंसिटिव जोन के अंतर्गत आता है। इको सेंसिटिव जोन एक प्रकार का ऐसा क्षेत्र है, जो पर्यावरणीय संसाधनों से समृद्ध है और जिसे विशेष संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रस्तावित तेल अन्वेषण परियोजना स्थल वेदांत समूह की सहायक कंपनी केयर्न ऑयल एंड गैस के पास है, जिसकी लागत 264 करोड़ रुपये बताई गई है। यह स्थल सेंचुरी से 13 किलोमीटर दूर स्थित है और 4.4998 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें 1.44 हेक्टेयर वह हिस्सा है, जहां ड्रिलिंग और प्रोडक्शन होगा, जबकि 3.0598 हेक्टेयर में वहां तक पहुंचने के लिए मार्ग प्रस्तावित है, जो इको-सेंसिटिव जोन के भीतर है।

इस परियोजना को अगस्त, 2024 में असम के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मुख्य वन्यजीव वार्डन और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति से मंजूरी मिली थी। वन्यजीव संरक्षण की निगरानी करने वाले देश के शीर्ष प्राधिकरण ने भी 15 नवंबर, 2024 को उचित साइट निरीक्षण के बाद इस परियोजना को मंजूरी दी।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय , भारतीय वन्यजीव संस्थान और असम के वन विभाग के प्रतिनिधियों द्वारा साइट का निरीक्षण किया गया, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि ड्रिलिंग का पर्यावरण पर तत्काल प्रभाव सीमित होगा। हालांकि, उन्होंने इको-सेंसिटिव जोन के भीतर कमर्शियल ड्रिलिंग का कड़ा विरोध किया।

एजेंसी ने इसे 'पूरी तरह से क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन भंडार की खोज के उद्देश्य से' बताया। हाइड्रोकार्बन, जो कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला आदि का आधार है, ऊर्जा का दुनिया का सबसे बड़ा स्रोत है।

भारत सरकार भी 2030 के विजन के साथ उत्तर पूर्व क्षेत्र को एक प्रमुख हाइड्रोकार्बन हब के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रही है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण में ड्रिलिंग एक महत्वपूर्ण कदम है।

हालांकि, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई सख्त शर्तें लगाई हैं, जिसमें परिचालन की निगरानी के लिए वास्तविक समय डिजिटल निगरानी प्रणाली की स्थापना, शुरू होने से पहले नियामक निकायों को विस्तृत परिचालन योजना प्रस्तुत करना, न्यूनतम पेड़ों की कटाई और सख्त प्रदूषण नियंत्रण उपाय शामिल हैं।

भले ही केयर्न ऑयल एंड गैस एक "पर्यावरण के प्रति जागरूक कंपनी" होने का दावा करती है, लेकिन हाइड्रोकार्बन का खनन पर्यावरण के लिए विनाशकारी है। 2020 में असम में गैस और तेल रिसाव, जिसे बागजान विस्फोट भी कहा जाता है, इस बात की याद दिलाता है कि इस तरह के अन्वेषण और निष्कर्षण से कितना विनाश हो सकता है।

होलोंगापार गिब्बन वन्यजीव सेंचुरी के बारे में अधिकारियों ने कहा है कि मानवीय गतिविधियों के कारण सेंचुरी पहले से ही खतरे में है। सेंचुरी से होकर गुजरने वाली एक रेलवे लाइन का भी विद्युतीकरण किया जाना है, जिसका प्रस्ताव स्थायी समिति ने सुझाया है।

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