रेगिस्तान के ओरणों में क्यों मर रहे चिंकारा?

राजस्थान के जैसलमेर जिले के ओरणों में पिछले तीन-चार महीनों में 100 से ज्यादा चिंकारा हिरणों की अकाल मौत हुई है
राजस्थान के जैसलमेर जिले में चिंकारा के शव मिल रहे हैं। फोटो: सुमेर सिंह
राजस्थान के जैसलमेर जिले में चिंकारा के शव मिल रहे हैं। फोटो: सुमेर सिंह
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जैव-विविधता और तमाम वन्यजीवों से भरे थार रेगिस्तान में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। रेगिस्तान की पहचान और राजस्थान के राज्य पशु चिंकारा का जीवन संकट में है। जैसलमेर जिले के ओरणों (चारागाह या गोचर भूमि) में सैंकड़ों चिंकारा हिरणों के साथ हादसों की कई घटनाएं हुई हैं।

ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले तीन-चार महीनों में 100 से ज्यादा चिंकारा हिरणों की अकाल मौत हुई है। ग्रामीण इन मौतों के पीछे कई कारण बता रहे हैं। इनमें रेगिस्तान में फैलते सोलर पार्क और उनकी चारदीवारी, आवार कुत्ते, हिरणों का शिकार और वन्य जीवों के प्राकृतिक मार्गों का अवरुद्ध होना है।

पिछले महीने 21 जून को जिले के लखासर गांव के पास सोलर पार्क की दीवार के पास दो दिन में 14 हिरणों की मौत हुई थी। पोस्टमार्टम के बाद इनमें से दो मादा चिंकारा गर्भवती भी निकली। पेट में ही बच्चों की भी मौत हो गई। यह हादसा देगराय ओरण और सोलर पार्क की सीमा के पास लखासर गांव में हुआ था।

देगराय ओरण में बसे सांवता गांव के पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह डाउन-टू-अर्थ को बताते हैं, “पिछले 6 महीने में 100 से ज्यादा हिरणों के विभिन्न हादसों में मरने की खबरें हम तक पहुंची हैं। ऐसे हादसों के पीछे सोलर पार्कों की दीवारें, खेतों में बनी फेंसिंग और अवैध शिकार हैं।

चूंकि हिरणों सहित अन्य वन्यजीवों के प्राकृतिक रास्ते सोलर पार्क और मानवीय गतिविधियों से अवरुद्ध हुए हैं। इसीलिए बड़ी संख्या में हादसे हो रहे हैं। आसान शिकार मिलने के कारण इन क्षेत्रों में कुत्ते भी शिकारी किस्म के हो गए हैं।

चूंकि हिरण सीधा और तेज भागने वाला जानवर है। इसीलिए खतरा महसूस होते ही यह बिना देखे ही भागते हैं। भागते हुए दीवार से टकराने या फेंसिंग में फंसने से इऩकी मौत हो रही है। लखासर में भी ज्यादातर हिरणों के सिर में चोट थी। कई के सींग भी टूटे हुए थे। साफ दिख रहा था कि इनकी दीवार से टकराकर मौत हुई है।”

सुमेर आगे कहते हैं, “हमने सोलर पार्क में अंदर जाकर स्थिति देखने की मांग की लेकिन ग्रामीणों को अंदर नहीं जाने दिया गया। सोलर पार्कों की दीवारें काफी ऊंची हैं और इनमें अंदर जाने का रास्ता एक ही होता है। चूंकि ये इलाके हिरणों सहित कई वन्यजीवों के पुराने ठिकाने हैं, इसीलिए जानवर इनमें चरने के लिए चले जाते हैं। इनके पीछे कुत्ते भी शिकार के लिए जाते हैं। इससे घबरा कर चिंकारा भागते हैं और दीवारों से टकराकर इनकी मौत हो जाती है।”

हालांकि वन विभाग के अधिकारी इससे मना कर रहे हैं। डाउन-टू-अर्थ ने जैसलमेर के उप वन संरक्षक जी. के. वर्मा से बात की। वे बताते हैं, “14 हिरणों को कुत्तों ने घेरकर मारा था। हमारी जांच में आया कि हिरण ना तो सोलर प्लांट के अंदर गए थे और ना ही वहां से बाहर निकले। सोलर कंपनियों का अपना एरिया है। उनकी दीवारें काफी ऊंची हैं, जिन्हें हिरण पार नहीं कर सकते।

हिरणों के आवागमन को नियंत्रित करना संभव नहीं है। पूरे जिले में इनका मूवमेंट रहता है। दरअसल, हिरण खेतों में चरने के लिए फेंसिंग से घुस तो जाते हैं, लेकिन जब कोई उन्हें खतरा होता है तो वे उसी रास्ते से हड़बड़ाहट में निकल नहीं पाते और हादसों का शिकार होते हैं। विभाग ने कई बार स्थानीय निकायों के साथ मिलकर कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाया है।”

सोलर पार्क और खेतों की फेंसिंग के अलावा हिरणों के शिकार की घटनाएं भी यहां काफी बढ़ी हैं। इसके विरोध में 15 जुलाई को जैसलमेर के पर्यावरण प्रेमियों ने मिलकर मारे गए हिरणों के खून से सनी मिट्टी को लेकर जिला कलक्टर कार्यालय तक करीब 20 किमी की पदयात्रा की। ग्रामीणों ने कलक्टर टीना डाबी को चिंकारा हिरणों के खून से सनी मिट्टी का कलश सौंपा। सोलर पार्कों, हाइटेंशन पावर लाइन से मरने वाले वन्यजीवों को न्याय देने की मांग की।

जैसलमेर के पर्यावरणविद् पार्थ जगाणी वन्यजीवों के साथ हो रहे हादसों के कारणों को इतिहास की नजर से देखते हैं। वे बताते हैं, “लखासर, मूलसागर व उसके आसपास का चट्टानी पठार रियासत काल में औषधीय वनस्पतियों से भरा हुआ संरक्षित चारागाह था। विशेष रूप से घोड़ों की चराई के लिए विख्यात था। साथ ही यह जिले का महत्वपूर्ण वॉटरशेड भी है। जहां से अनेक बरसाती जलधाराएं निकलती हैं।

इसीलिए सैंकड़ों सालों से यह इलाका वन्यजीवों की रिहायश और खाने-पीने के लिए सबसे मुफीद जगह रहा है। अब इन क्षेत्रों में अवैध खनन, सोलर पार्क, अतिक्रमण और खेतों में फेंसिंग हो गई हैं। चूंकि यह चिंकारा का पुराना प्राकृतिक आवास है इसीलिए इनकी आदत है कि दिन में ये ओरण में रहते हैं और शाम के वक्त ओरण से निकल कर इधर आते हैं।

अब इनका प्राकृतिक आवास और रास्ता ‘विकास कार्यों’ के कारण प्रभावित हुआ है। इसीलिए जंगली जानवरों को अब इंसानों के बनाए रास्तों पर ही आना पड़ रहा है। फेंसिंग क्रॉस करने के अलावा जानवरों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। इसीलिए वे इसमें घुस जाते हैं। बाद में किसी मुसीबत में फंसते ही वे अचानक घबरा जाते हैं और निकलने का रास्ता तय नहीं कर पाते। इसीलिए हादसों का शिकार होते हैं।

वन विभाग के आंकड़े बता रहे लगातार घट रहे प्रदेश में चिंकारा

राजस्थान वन विभाग की ओर से हर साल होने वाली वन्यजीव गणना में चिंकारा हिरणों की संख्या लगातार घट रही है। वाटरहोल पद्धति से हुई इस गणना में 2018 में 47640 थी। 2019 में यह घटकर 42590 रह गई। 2020 में संख्या और घटकर 41412 ही रह गई। 2021 में कोरोना के कारण गणना नहीं हो पाई है।

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