कहां हुई पश्चिमी मधुमक्खियों की उत्पत्ति, एशिया क्यों है सबसे अधिक महत्वपूर्ण?

शोधकर्ताओं ने मधुमक्खी की मूल श्रेणी के 18 उप-प्रजातियों से 251 जीनोम सीकेंसिंग किए और इन आंकड़ों का उपयोग मधुमक्खियों की उत्पत्ति तथा इनके अन्य इलाकों में फैलने का पता लगाया
कहां हुई पश्चिमी मधुमक्खियों की उत्पत्ति, एशिया क्यों है सबसे अधिक महत्वपूर्ण?
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मधुमक्खियों का एपिस वंश 12 मौजूदा प्रजातियों से बना है जो तीन अलग-अलग समूहों से आते हैं। जिनमें विशाल मधुमक्खियां, बौनी मधुमक्खियां और गुहा-घोंसले वाली मधुमक्खियां शामिल हैं। मौजूदा एपिस प्रजातियों में से एक को छोड़कर सभी एशिया की रहने वाली हैं। 

दशकों से पश्चिमी मधुमक्खी की उत्पत्ति के बारे में बहस चलती रही। अब एक नए शोध में इन लोकप्रिय शहद उत्पादक मधुमक्खियों के बारे में पता लगाया है। शोध का मानना है कि पश्चिमी मधुमक्खियों की उत्पत्ति एशिया में हुई है। यह शोध यॉर्क विश्वविद्यालय की अगुवाई में किया गया है।

एशिया से पश्चिमी मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा) का स्वतंत्र रूप से अफ्रीका और यूरोप में विस्तार हुआ, जिससे सात अलग-अलग भौगोलिक और आनुवंशिक रूप से अलग विकासवादी वंश पैदा हुए जो बाद में पश्चिमी एशिया में वापस आ गए।

एपिस मेलिफेरा की कई उप-प्रजातियां हैं जो अलग-अलग तरह की हैं, जिनमें से अफ्रीका में लगभग 10 उप-प्रजातियां हैं, एशिया में 9 और यूरोप में 13 उप-प्रजातियां हैं।

पश्चिमी मधुमक्खी का उपयोग दुनिया भर में फसल परागण और शहद उत्पादन के लिए किया जाता है। मधुमक्खियों में उष्णकटिबंधीय वर्षावन से शुष्क वातावरण तक, ठंडी सर्दियों वाले समशीतोष्ण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विभिन्न वातावरणों में जीवित रहने की उल्लेखनीय क्षमता होती है। यह अफ्रीका, यूरोप और एशिया के मूल निवासी है और हाल ही में अफ्रीका में पैदा हुआ माना जाता था। 

शोधकर्ताओं ने मधुमक्खी की मूल श्रेणी से 18 उप-प्रजातियों से 251 जीनोम अनुक्रमित (सीकेंसिंग) किए और इन आंकड़ों का उपयोग शहद की मधुमक्खियों के फैलने, उनकी उत्पत्ति और पैटर्न के पुनर्निर्माण के लिए किया। टीम ने पाया कि एक एशियाई मूल वाली मधुमक्खियां पश्चिमी एशिया के आनुवंशिक आंकड़ों से मेल खाती हैं।

यॉर्क विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के प्रोफेसर और शोधकर्ता अमरो जायद कहते हैं की दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण परागणकों में से एक के रूप में, पश्चिमी मधुमक्खी की उत्पत्ति को इसके विकास, आनुवंशिकी और इसके फैलने के तरीके को समझने के लिए इसे जानना आवश्यक है।

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि मधुमक्खी जीनोम में कई "हॉट स्पॉट" होते हैं जो मधुमक्खियों को नए भौगोलिक क्षेत्रों के अनुकूल ढलने में मदद करते हैं। जबकि मधुमक्खी जीनोम में 12,000 से अधिक जीन होते हैं, उनमें से केवल 145 में आज पाए जाने वाले सभी प्रमुख मधुमक्खी वंशों के गठन से जुड़े ढलने संबंधी विशेषता पाई गई है।

यॉर्क विश्वविद्यालय की  कैथलीन डोगंत्ज़िस कहती हैं कि शोध से पता चलता है कि जीन के एक कोर-सेट ने मधुमक्खी को कार्यकर्ता और कॉलोनी व्यवहार को नियमित करके, अपनी मूल सीमा में पर्यावरणीय परिस्थितियों के विविध समूहों को अनुकूलित या ढलने की इजाजत दी है। इस तरह ढलने या अनुकूलन ने मधुमक्खियों की लगभग 27 विभिन्न उप-प्रजातियों का विकास हुआ।

डोगंत्ज़िस कहती हैं कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि स्थानीय रूप से अनुकूलित उप-प्रजातियां और कार्यकर्ता मधुमक्खियों पर कॉलोनी-स्तर का चयन, प्रबंधित कॉलोनियों की फिटनेस और विविधता में कैसे योगदान देता है।

इन मधुमक्खियों के अनुक्रम से दो अलग-अलग वंशों की खोज भी हुई, एक मिस्र में और दूसरी मेडागास्कर में। यह अध्ययन साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनका अध्ययन अंतत: बाकी के सवाल का जवाब देता है कि पश्चिमी मधुमक्खी कहां से आई है, इसलिए भविष्य के शोध आगे यह पता लगा सकते हैं कि वे विभिन्न जलवायु और भौगोलिक क्षेत्रों के लिए कैसे ढले या अनुकूलित हुए।

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