27 मार्च, 2022 को सरिस्का टाइगर रिजर्व (एसटीआर) में शुरू हुई जंगल की आग नियंत्रण से बाहर हो गई है और 31 मार्च 2022 तक काबू में नहीं आ पाई है। यह आग लगभग 10 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैल गई है। इस आग ने आरक्षित वन के बाघों के जीवन को खतरे में डाल दिया है।
भारतीय वायु सेना ने अलवर जिला प्रशासन के कहने पर 29 मार्च को आग पर काबू पाने के लिए दो हेलीकॉप्टर तैनात किए।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने 17 फरवरी, 2022 को जारी अपनी वार्षिक फ्रंटियर्स रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि जंगल की आग - एक प्राकृतिक घटना - अधिक खतरनाक हो गई है और अब बड़े क्षेत्रों को प्रभावित करती है।
इस महीने देश के जंगलों में लगी आग:
भारत के वन सर्वेक्षण के अनुसार, 30 मार्च, 2022 तक भारत में कुल 381 जगह जंगलों में लग चुकी है। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 133 घटनाएं दर्ज की गई हैं।
वायु सेना ने सरिस्का में ऑपरेशन का वीडियो साझा किया और जानकारी ट्वीट करते हुए कहा कि 29 मार्च की सुबह से अग्निशमन अभियान चल रहा है।
भारतीय वायुसेना के दो हेलिकॉप्टर राजस्थान की सिलिसर झील से पानी लाकर आग बुझाने की कोशिश कर रहे हैं।
वन संरक्षक और उप क्षेत्र निदेशक सरिस्का टाइगर रिजर्व, आरएन मीणा द्वारा 29 मार्च को जारी एक प्रेस बयान में कहा गया कि अंतिम अंगारों के बुझने तक हेलीकॉप्टरों को लगातार तैनात किया जाएगा।
ऊंचाई वाले इलाकों में, जहां दमकल की गाड़ियां नहीं पहुंच सकीं, वहाँ आग पर काबू पाने के लिए हेलीकॉप्टरों को तैनात किया गया है। सूखे पेड़ की शाखाओं से फिर से आग लगने के खतरे को रोकने के लिए हम हर आखिरी अंगारे को बुझाए जाने तक हेलीकॉप्टरों से बौछार करते रहेंगे।
मीणा ने 30 मार्च को डाउन टू अर्थ को बताया कि आग पर लगभग काबू पा लिया गया है लेकिन अगले एक सप्ताह तक लगातार सतर्कता बरतने की जरूरत है।
एसटीआर द्वारा 28 मार्च को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि आग से बाघिन टी-17 और उसके दो नवजात शावकों को खतरा है। वन अधिकारी चिंतित थे कि आग से निकलने वाला धुआं बाघों का दम घोंट सकता है।
हालांकि डाउन टू अर्थ से टेलीफोन पर बातचीत में मीना ने कहा, 'मैं इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती। मेरी समझ से जिस इलाके में आग फैली, उस इलाके में ज्यादा बाघ नहीं हैं। यह कोई मुद्दा नहीं है।"
स्टेट बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ के अनुसार, 2021 में रिजर्व में 23 बाघ और चार शावक थे।
एसटीआर के बयान में कहा गया है कि आग 27 मार्च की दोपहर को बलेटा-पृथ्वीपुरा नाका में अकबरपुर रेंज के पहाड़ी इलाकों से शुरू हुई थी। आग सूखी घास, पत्तियों और पौधों की वजह से लगी। अधिकारियों आग लगने का कारण अभी पता नहीं चला है।
स्थानीय लोगों ने फायर लाइन बनाकर और दमकल की मदद से आग पर काबू पाने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके।
प्रेस बयान में कहा गया है, "आग के धुएं ने जंगल में मधुमक्खियों को परेशान कर दिया है, जो अब बड़ी संख्या में भिनभिना रही हैं, जिससे चीजें और मुश्किल हो रही हैं।"
एसटीआर और अलवर जिले के लगभग 200 लोगों ने 27 मार्च को पारंपरिक तरीकों से आग पर काबू पाने की कोशिश की। मीणा ने स्थानीय मीडिया को बताया कि वे भोर होने से पहले आग पर काबू पाने में सफल हो गए थे, लेकिन बचे हुए अंगारे हवा से चारों ओर फैल गए और आग बड़े क्षेत्र में फैल गई ।
मीणा ने डीटीई को बताया कि एसटीआर ने आग के कारणों की जांच के लिए तहक़ीक़ात शुरू कर दी है।
27 मार्च की रात करीब 10 बजे मालाखेड़ा थाना पुलिस ने जंगल के पास रहने वाले लोगों को इलाका खाली करने का आदेश दिया।