दुनिया भर में हो रहे बदलाओं के चलते पृथ्वी में बड़े पैमाने पर जीवन नष्ट हो रहा है। इंसानों के द्वारा किए जाने वाले कार्यों और सेवाओं के साथ-साथ नुकसान भी होते हैं। इस सबके चलते पिछले दशकों में कई प्रजातियों के विलुप्त होने में तेजी आई है।
सामान्यतः यह माना जाता है कि वैश्विक जैव विविधता को होने वाला यह वर्तमान नुकसान पारिस्थितिक तंत्र के न ढल पाने की कमी की वजह से है। जैसे, पारिस्थितिक तंत्र के लचीलेपन को संरक्षित करना एक प्रमुख संरक्षण उद्देश्य बन गया है।
अब ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया है कि कैसे प्रजातियां बढ़ते पर्यावरणीय दबावों का मुकाबला कर रही हैं। शोध से पता चलता है कि वन्यजीवों पर मानव प्रभावों के चलते दुनिया भर में कशेरुकियों के वातावरण में ढ़लने को बाधित कर रहा है। जिससे कशेरुक जीवों का तेजी से नुकसान हो रहा है।
स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंस के डॉ पोल कैपडेविला ने कहा की पिछले दशकों में कशेरुकी प्रजातियों के किसी वातावरण में ढ़लने का तरीका या लचीलापन कैसे बदल गया है। इस बारे में दुनिया भर के आकलन अध्ययन से पहले नहीं थे। दुनिया भर में ढ़लने संबंधी नुकसान की धारणा का सही ढ़ग से आकलन नहीं किया गया था।
अध्ययनकर्ताओं ने कहा की इस अध्ययन में, हमने मूल्यांकन किया कि दुनिया भर में स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की प्रजातियों सहित कशेरुकी आबादी में वातावरण के अनुरूप ढ़लने या लचीलापन समय के साथ कैसे बदल रहा है। उन्होंने कहा की हमने यह भी परीक्षण किया कि दुनिया भर में रेसिलिएंस या लचीलापन की संभावित गिरावट को तेज करने वाले मुख्य कारक कौन से हो सकते हैं।
अध्ययनकर्ता ने बताया कि हमारे अध्ययन से समुद्री, मीठे पानी और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों में ढ़लने या लचीलेपन के वैश्विक नुकसान का पता चलता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, हमने पाया कि जलवायु परिवर्तन, आक्रामक प्रजातियों, आवास का नुकसान, प्रदूषण जैसे मानवजनित खतरों के चलते इनके ढ़लने या लचीलापन का नुकसान तेजी से हो रहा है।
चूंकि कशेरुक प्रजातियां दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शोध से पता चलता है कि ढ़लने या लचीलेपन की हानि के चलते कशेरुकी आबादी भविष्य के खतरों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होगी। जो प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के कार्य और सेवाओं के विनाशकारी नुकसान को बढ़ा सकती है। इसके अलावा, निष्कर्ष बताते हैं कि पिछले अध्ययनों ने जैव विविधता के नुकसान की सीमा और मानवजनित खतरों के प्रभावों को कम करके आंका गया हो।
अध्ययनकर्ता प्रजातियों के ढ़लने या लचीलेपन पर विभिन्न प्राकृतिक खतरों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, आवास का नुकसान या आक्रामक प्रजातियों के प्रभावों के बढ़ने का पता लगाएंगे। डॉ कैपदेविला ने कहा कि केवल इतना ही नहीं, हम यह भी पता लगाएंगे कि ये कई खतरे एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं। यह पहचानने के लिए कि खतरों का कशेरुकी आबादी के लचीलेपन पर सबसे गहरा प्रभाव पड़ता है।