अनेक भूविज्ञानियों और पर्यावरणविदों ने उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर जो आशंकाएं जताई थी, वे सच साबित होने लगी हैं। अप्रैल की शुरुआत में ही राज्य में जंगलों की आग नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। 2016 के बाद पहली बार एक बार आग कार्बेट नेशनल पार्क तक पहुंच गई है, तो उधर टिहरी जिले की सकलाना घाटी में वृक्षमानव स्व. विशेश्वर दत्त सकलानी का मिश्रित वन भी करीब 90 प्रतिशत जल गया है।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 अक्टूबर 2020 से लेकर 4 अप्रैल, 2021 की सुबह तक राज्य के जंगलों में आग लगने की 989 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 1297.43 हेक्टेअर जंगल जल चुके हैं। यह क्षेत्र करीब 2400 फुटबाल मैदानों के बराबर होता है। लेकिन 3 मार्च की सुबह आठ बजे से लेकर 4 मार्च की सुबह आठ बजे तक 65 घटनाएं हुई, जिनमें में 97 हेक्टेअर से ज्यादा जंगल जले हैं।
उत्तराखंड के जाने-माने पर्यावरणविद् स्व. विशेश्वर दत्त सकलानी का सकलाना घाटी में लगाया गया मिश्रित वन पिछले तीन दिनों के दौरान लगभग 90 प्रतिशत जल चुका है। उन्होंने पूरी जिन्दगी इस जंगल को बनाने में समर्पित कर दी थी और 5 लाख से ज्यादा पेड़ लगाये थे। भारत सरकार ने उन्हें वृक्षमानव की उपाधि से सम्मानित किया था। दो वर्ष पहले उनकी मृत्यु के बाद उनका परिवार और सकलाना क्षेत्र के लोग इस जंगल का देखभाल कर रहे थे।
स्व. सकलानी के पुत्र संतोष सकलानी के अनुसार सकलाना घाटी में उनके पिता द्वारा लगाया गया मिश्रित वन तीन दिन से जल रहा है। वन विभाग के कर्मचारी मौके पर हैं, लेकिन आग बड़ी है और उनके पास उसे बुझाने की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। गांवों के लोग भी वहां मौजूद हैं, लेकिन सब असहाय होकर जंगलों से उठती लपटों को देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
वन विभाग के अब तक आंकड़ों के अनुसार 1 अक्टूबर, 2020 से 4 अप्रैल, 2021 की सुबह तक जंगलों की आग से करीब 38 लाख 47 हजार रुपये का नुकसान हुआ है। आग की घटनाओं के कारण अब तक 4 लोगों की मौत हुई है और 2 लोग घायल हुए हैं। 7 पशुओं की भी आग के कारण मौत हुई है और 22 पशु घायल हुए हैं। हर साल की तरह इस बार में आग लगने से सबसे नुकसान पौड़ी जिले में हुआ है। यहां अब तक आग की 92 घटनाओं में 217.4 हेक्टेअर जंगल जल गये हैं और दो लोगों की मौत हुई है। दो अन्य लोगों की मौत अल्मोड़ा जिले में हुई है। पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में आग लगने की 94-94 घटनाएं दर्ज की गई हैं। पिथौरागढ़ में 153.5 हेक्टेअर और चम्पावत में 128.9 हेक्टेअर जंगल जले हैं।
आग की घटनाओं पर लगातार नजर रखने वाले टिहरी के वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी वन विभाग के इस आकलन से सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं वन विभाग सिर्फ आग के क्षेत्रफल और उससे जलने वाले पेड़ों का आकलन करता है। उस क्षेत्र में कितने पशु-पक्षी और कीड़े मकौड़े आग से जल गए, कितनी छोटी वनस्पतियां और झाड़ियां जली।
आग से प्राकृतिक जलस्रोतों पर कितना असर पड़ा और आने वाले वर्षों में पर्यावरण पर इस आग का क्या असर होगा, इसका आकलन वन विभाग नहीं करता। चम्बा-मसूरी फल पट्टी में लगी आग का जिक्र करते हुए वे कहते हैं कि इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से गुच्छी मशरूम पैदा होता है। कई वर्षों से जमीन में गिरी पत्तियां सड़ने से बनी खाद से ये मशरूम पैदा होता है, लेकिन आग लगने के बाद आने वाले कई सालों तक गुच्छी मशरूम उगने की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। वे कहते हैं कि आग चीड़ के जंगलों से होती हुए मिश्रित वनों तक पहुंच रही है, यह सबसे ज्यादा चिन्ताजनक है।
क्या हैं आग के प्रमुख कारण
इस वर्ष सर्दियों में उत्तराखंड में बहुत कम बारिश और बर्फबारी होने और फरवरी से ही लगातार बढ़ रहे तापमान को आग लगने की घटनाओं का प्रमुख कारण माना जा रहा है। उत्तराखंड वानिकी और औद्यानिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डाॅ. एसपी सती फरवरी से ही जंगलों में आग की संभावित घटनाओं के प्रति आगाह करते रहे हैं। उनका कहना है कि अभी तो शुरुआत है। जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से आग लगने की घटनाएं हुई हैं, उसे देखते हुए आशंका है कि इस बार 2016 से ज्यादा बुरी स्थिति हो सकती है। यदि पुख्ता व्यवस्थाएं नहीं की गई तो मानसून आने तक 10 प्रतिशत से ज्यादा वन आग की चपेट में आ सकते हैं।
मौसम विभाग की ओर से जारी बारिश के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस बार जनवरी से मार्च तक उत्तराखंड में केवल 10.9 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य तौर पर इस अवधि में 54.9 मिमी बारिश होती है। यानी सामान्य से 80 प्रतिशत कम बारिश हुई। आग से सबसे ज्यादा प्रभावित पौड़ी जिले में 92 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई। इस अवधि में पौड़ी जिले में सामान्य रूप से 36.6 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार मात्र 3.1 मिमी बारिश हुई। बढ़ता तापमान भी जंगलों में आग की घटनाओं को हवा दे रहा है। इस वर्ष राज्य के सभी हिस्सों में फरवरी से ही तापमान सामान्य से बहुत ज्यादा चल रहा है।
दून विश्वविद्यालय के प्रो. हर्ष डोभाल कहते हैं कि जंगलों में आग की घटनाओं पर काबू करने के लिए जरूरी है कि इसमें आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इस बारे में 3 अप्रैल में नई टिहरी में एक सर्वपक्षीय खुला संवाद आयोजित किया गया। इस संवाद में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें जंगलों में आग की घटनाओं पर काबू पाने के लिए एक टास्क फोर्स बनाने की मांग की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि इस टास्क फोर्स में सभी संबंधित विभागों के साथ ही वन पंचायतों, ग्राम पंचायतों, एनसीसीसी, एनएसएस और इच्छुक स्थानीय लोगों को शामिल किया जाए। यह प्रस्ताव डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का भेजा गया।
जंगलों में आग की घटनाओं से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों 10 हजार वन प्रहरी नियुक्ति करने की घोषणा की थी, लेकिन आग की घटनाओं के चरम पर पहुंचने के बावजूद ये नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। स्थानीय लोग लगातार आग बुझाने में सहयोग कर रहे हैं। वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि अब तक 2522 स्थानीय नागरिक आग बुझाने में वन विभाग के कर्मचारियों की मदद कर चुके हैं। वन विभाग के 4313 कर्मचारी आग बुझाने के काम में शामिल हुए हैं, जबकि 74 पुलिसकर्मी, 31 एसडीआरएफ के जवान और राजस्व विभाग के 9 कर्मचारी भी अब तक आग बुझाने के सहयोग कर चुके हैं।