रोहित पराशर
अंधाधुंध बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्ती के कगार पर पहुंच चुके गिद्धों को बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश में एक अनूठी पहल की गई है। यहां एक रेस्टोरेंट खोला गया है, इसे वल्चर रेस्टोरेंट नाम दिया गया है। इस रेस्टोरेंट में लोग अपने मरे हुए जानवरों को पहुंचा रहे हैं, ताकि गिद्ध इन जानवरों को खाकर अपनी भूख शांत कर सकें।
हिमाचल के पौंगडैम वैटलेंड के समीप सुखनारा स्थान पर वल्चर रेस्टोरेंट शुरू किया गया। वन विभाग की वाइल्डलाइफ विंग की ओर से सुखनारा में 100 बाई 100 वर्ग मीटर एरिया में खोले गए इस वल्चर रेस्टोरेंट में 7 मीटर ऊंची जाली भी लगाई गई है, ताकि इसमें अन्य जंगली जानवर प्रवेश न कर सके।
हिमाचल में सबसे अधिक पशुधन की संख्या वाले इस जिले के लोगों को भी इस रेस्टोरेंट में अपने मरे हुए पशुओं को छोड़ने के लिए सुबह 10 से शाम 4 बजे का समय दिया गया है। वन विभाग की वाइल्डलाइफ विंग के अनुसार गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए वर्ष 2004 में इन्हें प्राकृतिक आवास में ही बचा कर रखने के प्रयास किए जा रहे हैं और तब से लेकर इनकी संख्या में कई गुणा की बढ़ोतरी हुई है।
सरकारी आंकडों के अनुसार वर्ष 2004 में पौंगडैम में 26 घोंसलों में 23 बेबी वल्चर देखे गए थे, जबकि 2019 में इनकी संख्या 387 घोंसलों में 352 बेबी वल्चर तक पहुंच गई है। वल्चर रेस्टोरेंट में दुनिया में गिद्धों की पाई जाने वाली 16 प्रजातियों में से 8 प्रजातियां देखी गई हैं। जिनमें हिमालयन ग्रेफाॅन और युरोपियन ग्रेफाॅन भी शामिल है।
वाइल्डलाइफ चीफ कंजर्वेटर प्रदीप ठाकुर ने बताया कि कांगड़ा क्षेत्र में इस रेस्टोरेंट के खुलने से गिद्धों के संरक्षण को बढ़ावा मिल रहा है। साथ ही इसमें स्थानिय लोगों की सहभागिता बढ़ रही है। वहीं शोधार्थियों को भी इन्हें नजदीक से समझने के लिए मौका मिल रहा है।
गौरतलब है कि वल्चर रेस्टोरेंट सबसे पहले साउथ अफ्रीका में 1966 में खुला था और इसके बाद, कंबोडिया, स्वीट्जरलैंड, स्पेन, नेपाल और भारत में भी वल्चर रेस्टोरेंट खुल चुके हैं। दो दशक पहले तक एशिया महाद्वीप में गिद्धों की संख्या में बहुत कमी आ चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण जानवरों की दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का प्रयोग रहा है। इसके अलावा बढ़ता शहरीकरण और घटते जंगलों से इनके आवास पर असर पड़ा है।
सीनियर वेटनेरी ऑफिसर डाॅ. सुशील सूद का कहना है कि वल्चर रेस्टोरेंट जैसे प्रयासों से विलुप्त हो रहे गिद्धों के संरक्षण में सहायता मिलेगी। आज गिद्धों को लेकर बहुत भ्रांतियां समाज में हैं। मादा गिद्ध पूरे साल में केवल एक अंडा देती है। लोग उसे भी अंधविश्वास के कारण घोंसले से निकाल लाते हैं। उन्होंने कहा कि गिद्धों से जुड़ी सभी कहानियां झूठी हैं और इनका तथ्यों से कुछ भी लेना-देना नहीं है। इसलिए इनके संरक्षण के लिए समाज के लोगों को आगे आना चाहिए, क्योंकि पारिस्थितिकी में गिद्धों की अहम् भूमिका रहती है।