यूनेस्को जिओपार्क: भूविविधता संरक्षण का बहुआयामी प्रयास
यूनेस्को ग्लोबल जिओपार्क्स का उद्देश्य भूविविधता संरक्षण के साथ-साथ शिक्षा, स्थानीय संस्कृति और सतत विकास को बढ़ावा देना है
भारत में जिओपार्क्स की स्थापना से स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।
हालांकि, भारत में अभी तक कोई जिओपार्क नहीं है, जबकि यह विश्व धरोहर स्थलों की सूची में छठे स्थान पर है।
विश्व भर के भूवैज्ञानिक समुदाय के अथक प्रयास से यूनेस्को ने 2022 में अंतर्राष्ट्रीय भूविविधता दिवस को मान्यता दी। 6 अक्टूबर को पूरे सप्ताह इसे भारत तथा पूरे विश्व में इसे मनाया गया। हलांकि अभी भी यह भारतीय जनमानस में अंकित नहीं हुआ है और सरकारी तंत्र भी इससे लगभग अनभिज्ञ है।
भू-विविधता धरती पर मौजूद उन निर्जीव अंशों की विविधता है, जिसमें चट्टानें, खनिज, भू-आकृतियां, मिट्टी, जीवाश्म और जलविज्ञान संबंधी विशेषताएं शामिल हैं। इसमें वे सभी पदार्थ, प्रक्रियाएँ और संबंध शामिल हैं जो पृथ्वी की सतह और उसके आंतरिक भाग को आकार देते हैं। भू-विविधता ही जैव-विविधता का आधार है, जो जीवन को सहारा देने वाले आवास और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ प्रदान करती है।
भारत में भू-विरासत संरक्षण की अवधारणा 1951 में शुरू हुई, जब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने तरुवतकराई (चेन्नई के पास) में ‘राष्ट्रीय काष्ट जीवाश्म पार्क’ की स्थापना की। बाद में, 1970 के दशक के दौर में पूरे भारत में कई अन्य (कुल 28) राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारकों को घोषित किया गया।
वर्तमान में यह सूची बढ़कर 32 राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारकों की हो गई है, परन्तु कुछ जीवाश्म स्थलों को छोड़कर, अधिकांश स्मारकों का रखरखाव नहीं किया गया और वे अत्यंत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। हम भू-संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय परिद्रश्य के साथ कदम ताल करने में पीछे रह गए। भारत एक भूविविधता से युक्त देश है और विश्वगुरु बनने कि दिशा में प्रकृति संरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है।
क्या है यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क?
यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क एक विशिष्ट भूवैज्ञानिक इतिहास वाला क्षेत्र है जिसका प्रबंधन इसकी चट्टानों और भू-आकृतियों की सुरक्षा के साथ-साथ शिक्षा, स्थानीय संस्कृति और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।
इसका महत्व स्थानीय गौरव की भावना पैदा करने, भू-पर्यटन के माध्यम से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, पृथ्वी की भू-विविधता की रक्षा करने और पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपनी भूवैज्ञानिक विरासत का उपयोग करने में निहित है।
इसका प्रबंधन समग्र दृष्टिकोण से किया जाता है, अर्थात यह केवल चट्टानों की सुरक्षा के बारे में नहीं है, बल्कि यह भी है कि भूविज्ञान किस प्रकार क्षेत्र की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत, शिक्षा और सतत विकास से जुड़ता है जो भारतीय सतत विकाश और अन्त्योदय के मूल सिद्धांतों के अनुकूल ही है।
स्वाभाविक है कि हम अपने मूल्यों को तभी पहचानते है जब विश्व इसकी मान्यता देता है, इसलिए जिओपार्क सिर्फ एक ‘भूवैज्ञानिक पार्क’ नहीं है जैसा आम आदमी समझते हैं। सरल शब्दों में, जिओपार्क वह जगह है जहाँ प्रकृति, संस्कृति एवं विकास एक साथ चलते है।
यूनेस्को 2015 से ‘यूनेस्को ग्लोबल जिओपर्क्स’ को मान्यता दे रहा है और विश्व के 50 देशो में 229 जिओपर्क्स है जिनमे छोटे-छोटे देश जैसे मलेसिया, तुर्की, ईरान, विअतनाम आदि शामिल है पर भारत में एक भी नहीं. जबकि भारत विश्व धरोहर स्थल की सूचि में छठा स्थान रखता है.
क्या अंतर है विश्व धरोहर स्थल और यूनेस्को जिओपार्क में
इन दोनों में अंतर समझाते हुए कांफ्रेंस में अपने उदबोधन में यूनेस्को हेडक्वार्टर पेरिस में जियोपार्क एवं अर्थ साइंस के हेड डॉ क्रिस्टोफ वैंडेनबर्ग ने कहा कि विश्व धरोहर स्थल सिर्फ एक साइट है जो "आउटस्टैंडिंग यूनिवर्सल वैल्यू" की सघन जांच के बाद ही नामित किया जाता है।
एक देश में प्रतिवर्ष सिर्फ एक साइट को ही मान्यता दी जाती है। जबकि यूनेस्को जिओपार्क एक विस्तृत क्षेत्र में फैला होता है एक या दो अंतर्राष्ट्रीय महत्व के भूवैज्ञानिक स्थलों के चारो ओर बनाया जाता है। इसमें स्थानीय ऐतिसिक, सांस्कृतिक स्थल भी बराबर के भागीदार होते है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि 'जिओपार्क' जियोलॉजिकल पार्क नहीं है। और किसी भी जिओपार्क में स्थानीय गतिविधियां जैसे मकान बनना, माइनिंग, खेती, रोड आदि विकास के कार्य सुचारु रूप से चलते रहते है। जिओपार्क की बाउंड्री भौगोलिक बाउंड्री जैसे जिला या ताल्लुका आदि ही होती है और कोई अलग से बाउंड्री नहीं बनायीं जाती।
जिओपार्क सतत विकास की अवधारणा है। स्थानीय हस्तशिल्प, खानपान तक उसके हिस्से है। समाज का सहयोग तथा लैंगिक समानता यूनेस्को मुख्य आधार है। हम एक वर्ष में एक से ज्यादा भी जिओपार्क बना सकते है पर ग्राउंड में यूनेस्को के नियम अनुसार समुचित कार्य किये जाने चाहिए।
क्या जरुरी है जिओपर्क्स के लिए?
जिओपर्क्स के लिए सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक महत्व के स्थान या सुंदरता ही पर्याप्त नहीं। इसके पांच स्तंभ आववयक हैं:
1. अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक महत्च
2. वैधानिक प्रबंधन निकाय
3. समेकित प्रबंधन योजना
4. स्थानीय समुदाय की भागीदार
5. सतत निगरानी और मुल्यांकन
इन विषयों पर चर्चा करने के लिए एवं अंतर्राष्ट्रीय भूविविधता दिवस के अवसर पर सोसाइटी आफ अर्थ साइंटिस्ट, यूनेस्को तथा आईआईटी, कानपुर नें यूनेस्को हाउस दिल्ली में एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जिसमे यूनेस्को जियोपार्क एक्सपर्टस, यूनेस्को हेडक्वार्टर के जिओपार्क प्रमुख तथा स्पेन से अंतर्राष्ट्रीय भूविरासत प्रमुख के साथ साथ भारत के विभिन्न प्रदेशों से आये वैज्ञानिकों नें हिस्सा लिया।
अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने बताया कि भारत की भूविविधिता विश्व के लिये बहुत महत्वपूर्ण है और इसे संरक्षित करने कि आवश्यकता है। कहीं विकास की दौड़ में ये हार न जाएं। इसे बचाने के लिये यूनेस्को स्वयं आगे आकर मदद कर रहा है।
इस अवसर पर यूनेस्को हेडक्वार्टर ने एक अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट कों भारत भेजा जिसने चित्रकूट तथा धार जिले के बाघ छेत्रों का भारतीय वैज्ञानिकों के साथ दौरा भी किया।
यूनेस्को ग्लोबल जिओपार्क एग्जीक्यूटिव मेंबर डॉ अलीरेजा अमरीकाज़मी नें चित्रकूट और धार जिले के बाघ डायनोसौर क्षेत्र का दौरा किया। दौरे में उनके साथ लेखकडॉ. सतीश त्रिपाठी भी जो पिछले कई वर्षो से चित्रकूट एवं बाघ जिओपार्क बनाने के लिये प्रयास कर रहे हैं और इन्हीं के प्रयास से यूनेस्को नें अपना प्रतिनिधि भेजा।
साथ में डॉ. अश्वनी अवस्थी, डॉ. अनिल कुमार तथा डॉ. के. नजमी नें भी महत्वपूर्ण भागीदारी की। चित्रकूट में मध्यप्रदेश टूरिज्म के अधिकारियो नें तथा बाघ में मध्यप्रदेश के वन विभाग के अधिकारियों नें साथ में हिस्सा लिया।
एक्सपर्ट टीम ने चित्रकूट के भूवैज्ञानिक, ऐतिसिक तथा सांस्कृतिक महत्व के स्थानों का निरीक्षण किया। जानकी कुंड में मन्दाकिनी नदी के मध्य स्थिति 160 करोड़ वर्ष पुराना तथा लाल शैवालों का जीवाशम विश्व में अनोखा है।
अलीरेजा ने कहा कि इसके सरक्षण की तुरंत आवश्यकता है नहीं तो ये अकेला एक्सपोज़र ख़त्म हो जायेगा। कामदगिरी पर्वत पर स्थित बुंदेलखंड एवं विंध्य समूह की चट्टानों का सम्बन्ध भारत में दूसरा है। ऐसा एक स्थान तिरुपति बाला जी में है। आश्चर्यजनकरूप से तिरुपति तथा चित्रकूट दोनों ही धार्मिक महत्व रखते है। शायद हमारे पूर्वजों को इन संरचनाओं के विषय में ज्ञान था।
अलीरेजा ने बाघ क्षेत्र में फैले डायनोसोर के अंडों के जीवाश्मों का अध्ययन किया और उनके सरक्षण के विषय में विस्तृत चर्चा की। उनका सुझाव था कि अंडो के घोसलों को विधिवत संरक्षित किया जाना चाहिए और उनका और आगे क्षरण न हो, इसकी व्यवस्था शीघ्र की जानी चाहिए।
इसके अतिरिक्त उन्होंने दो दिनों में फोसिल वुड तथा समुद्री जीवशमों के कई सेक्शन भी देखे। उन्होंनें आश्चर्य व्यक्त किया कि विश्व में ऐसा और कोई और स्थान नहीं है जहां समुद्री जीव, डायनोसौर और फोसिल वुड एक साथ मिलते हों। उन्होंने इसे एक अद्भुत स्थान बताया और इसके संरक्षण की वकालत भी की।
उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार यहाँ यूनेस्को ग्लोबल जिओपार्क स्थापित कर लेती हैं तो नेशनल बाघ डायनासोर पार्क के साथ-साथ उसके बाहर स्थित महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक और एतिहासिक महत्व तथा बाघ के साँसकृतिक धरोहरों का भी संरक्षण होगा जो जिओपार्क के महत्वपूर्ण अंग हैं।
अलीरेजा ने चित्रकूट में एक सार्वजिनिक बैठक के दौरान बताया कि यूनेस्को जिओपार्क की अवधारणा में स्थानीय लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ के लोगों की भागीदारी जिओपार्क के हर एक पहलू में अतिआवश्यक है अन्यथा यूनेस्को की मान्यता मिलना असंभव है। जिओपार्क विशेषज्ञओं का ये दौरा भारत में पहले जिओपार्क स्थापित करने कि दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।
यदि इन क्षेत्रों में ग्लोबल जियोपार्क की स्थापना होती है तो इनका सम्पूर्ण विकास होगा। जियोपार्क में स्थानीय टुरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और नये-नये रोजगारो का सृजन होगा। जिओपार्क में टुरिज्म इंडस्ट्री, हेरिटेज प्रिंटिंग इंडस्ट्री, अर्कीयोलॉजिकल सर्वे, वन विभाग, स्थानीय ग्राम सभा आदि पार्टनरशिप में होंगे। मातृशक्ति को भी इसमें उतनी ही भागीदारी दी
भारत एक भूविविधता से युक्त देश है और विश्वगुरु बनने कि दिशा में प्रकृति संरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है। पर शायद अभी हम जागरूक नहीं हुए है। कानूनन जमीन का हक राज्य सरकारों के पास है और उनका ये दायित्व है कि वैज्ञानिकों से सहयोग ले कर संरक्षण जिओपार्क स्थापित करें। यूनेस्को जिओपार्क की अवधारणा भारत के सम्पूर्ण विकास और अंत्योदय की वैश्विक परिभाषा है पर दुर्भाग्य से हम तब जागते है ज़ब विश्व उसे अपनाता है और हमें वापस देता है। विश्व हमारी ओर देख रहा है और जागने का समय आ गया है।
लेखक डॉ. सतीश त्रिपाठी भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व उपमहानिदेशक तथा सोसाइटी ऑफ अर्थ साइंटिस्ट्स के सचिव हैं और भूविरासत सरक्षण पर कार्य कर रहे है, जबकि डॉ. अनिल कुमार डी.एस. एन.कॉलेज, उन्नाव में भूगोल के सहायक प्राध्यापक हैं तथा बुंदेलखंड छेत्र के भूविरासत पर शोध कर रहे हैं

