संदीप चौकसे/सेवाराम मलिक
मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित लगभग 1200 वर्ग कि. मी. में फैला नौरादेही वन्यप्राणी अभ्यारण्य प्रदेश का सबसे बड़ा वन्यप्राणी अभ्यारण्य है। इसकी सीमा सागर, दमोह और नरसिंगपुर जिलों पर है।
नौरादेही मध्यप्रदेश का एक महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्र है, यह भारत कि दो प्रमुख नदी गंगा और नर्मदा बेसिन के मध्य स्थित है। जिसके कारण यहां की जैवविविधता का एक अपना अलग ही महत्व है। नौरादेही के वन मुख्यतः विंध्य प्रकार के हैं।
यहां विशेषकर शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं जिनमे कई हिस्सों में सागौन प्रमुख है एवं कुछ स्थानों को छोड़कर ज्यादातर भाग में मिश्रित खुले पर्णपाती वन पाए जाते हैं। कोपरा, बामनेर और बेयरमा यहां की मुख्य नदियां हैं जो अभ्यारण्य को वर्ष भर सिंचित रखती हैं।
अभ्यारण्य कई तरह के प्रवासी पक्षियों, गिद्धों, मगरमच्छ एवं भेड़ियों का प्रमुख आवास है, यहां प्रदेश में पाए जाने वाले गिद्धों की सातों प्रजातियां देखी जा सकती हैं। साथ ही यहां 200 से भी ज्यादा की संख्या में भेड़िये पाए जाते हैं जो कि प्रदेश में सर्वाधिक है।
वैसे देखा जाए तो नौरादेही का इतिहास काफी पुराना है और नौरादेही के वन यहां हुए राजाओं एवं शासकों की पसंदीदा शिकारगाह रहे हैं, जहां पर राजा महाराजा बाघों एवं अन्य वन्य प्रणियों का शिकार किया करते थे।
गोंड शासिका रानी दुर्गावती की भी यह पसंदीदा शिकारगाह थी। इतिहास में बाघों की उपस्थिति के कई प्रमाण होने के बाद भी नौरादेही बाघों को लेकर कभी भी चर्चा का विषय नहीं रहा, शायद इसलिए की यहां बाघ दिखाई नहीं देते थे, या शायद यहां से बाघ विलुप्त हो चुके थे।
पर फिर भी कभी-कभी भूले भटके पास में स्थित पन्ना के जंगलों से बाघों का आना-जाना यहां हमेशा से ही बना रहा है। वर्ष 2010 में यहां पन्ना टाइगर रिजर्व से एक बाघ यहां आ गया था, जो उसके बाद से अगले कुछ सालों तक लगातार आता-जाता रहा, परन्तु कोई साथी न मिल पाने या किसी और अन्य कारण से वो यहां स्थाई रूप से रुक नहीं पाया।
बाघों के लिए अनुकूल आवास होने के बाद भी यहां बाघों का न होना वन विभाग को हमेशा से ही खटकता रहा, और बाघों को यहां दोबारा बसाना एक चुनौती भरा कार्य था। अभ्यारण्य के अंदर कई गांव मौजूद थे, जिसके कारण यहां जैविक दबाब भी बहुत ज्यादा था।
साथ ही शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या भी संतोषजनक नहीं थी, शायद एक ये भी कारण था कि बाघ जो पन्ना या अन्य संरक्षित क्षेत्रों से इलाकों की तलाश में यहां पहुंच रहे थे, वो स्थाई नहीं हो पा रहे थे।
परन्तु मध्यप्रदेश वन विभाग ने इस चुनौती को स्वीकार किया और बाघों को दोबारा नौरादेही में बसाने की कवायद शुरू की। इसी के अंतर्गत वर्ष 2018, कान्हा टाइगर रिजर्व से एक बाघिन नौरादेही लायी गयी, ये बाघिन कोई और नहीं बल्कि पेंच टाइगर रिज़र्व की मशहूर बाघी-नाला बाघिन के शावकों में से एक थी। जिनको उनकी मां की मृत्यु हो जाने के बाद कान्हा में रखा गया था।
इस बाघिन को नाम दिया गया N1 (राधा), N1 नौरादेही में बाघ पुर्नस्थापना की बुनियाद थी और इस बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से एक नर बाघ N2 को लाया गया। N1 एवं N2 दोनों ही नौरादेही बाघ पुर्नस्थापना के मील का पत्थर साबित होने वाले थे।
नौरादेही वन प्रबंधन के द्वारा बाघ पुर्नस्थापना को सफल बनाने के लिए कई प्रयास किये गए, दोनों नए बाघों को कुछ दिन मनुष्य हस्तक्षेप से दूर पानी एवं उचित आवास सुविधा युक्त विशाल बाड़े में रखा गया एवं उसके बाद इन्हें जंगल में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया गया।
अभ्यारण्य के अंदर कई गांव स्थित थे, बाघों के आने से इन गांव में रहने वाले लोगों एवं बाघों के बीच संघर्ष बढ़ने की आशंका थी जो इस योजना को विफल कर सकती थी। परन्तु इन गांव में रहने वाले लोगों का रवैया बाघों एवं अन्य वन्यप्राणियो के प्रति हमेशा से ही सकारात्मक रहा है और इन्होने बाघों को सहर्ष स्वीकार किया।
वन प्रबंधन द्वारा गांव वालों की सहमति के आधार पर कुछ गावों का पुनर्वास भी किया गया एवं कुछ बचे हुए गावों का पुनर्वास होना अभी बाकी है। इन गावों के पुनर्वास के बाद इनकी खाली जगहों पर वन प्रबंधन द्वारा चारागाह का विकास किया गया एवं दूसरे अन्य संरक्षित वनों जहां चीतल एवं अन्य शाकाहारी वन्यप्राणियो की संख्या काफी अच्छी है, वहां से इन्हें लाकर अभ्यारण में छोड़ा गया। जिससे यहां इनकी आबादी में विकास हो सके और बाघों को आवास के साथ भोजन भी पर्याप्त मात्रा में मिल सके।
इसके अलावा कई अन्य प्रयास जैसे जल प्रबंधन की योजनाओं पर भी कार्य किया गया।
इन सब प्रयासों का परिणाम मिलने में भी ज्यादा देर नहीं लगी, और मई 2019, बाघिन N1 तीन नन्हें बाघ शावकों के साथ इनकी निगरानी के लिए लगाए गए कैमरा ट्रैप में नजर आयी और नौरादेही में बाघों की संख्या दो से बढ़कर पांच हो गयी। इन नन्हें बाघ शावकों को N111 , N112 एवं N113 नाम दिया गया, जो कि बाघों को नामकरण करने की एक सामान्य प्रक्रिया है।
नौरादेही का प्रबंधन इन पांच बाघों की निगरानी और देखरेख की योजना बना ही रहा था, की जनवरी 2021 में कैमरा ट्रैप की फोटो को चेक करते समय अभ्यारण्य के स्टाफ को एक नया मेहमान बाघ (N3) नजर आया।
जो यहां मौजूद बाघों से बिलकुल अलग था, आसपास के संरक्षित क्षेत्रों में कैमरा ट्रैप की फोटो मिलान करने पर भी ये मालूम न चल सका कि ये नया बाघ आखिर कहां से आया है?
ऐसा माना गया कि शायद ये बाघ पन्ना टाइगर रिज़र्व से यहां आया है, या शायद ये यहां पहले से ही था और निगरानी बढ़ने पर अब नजर आने लगा। कुछ भी हो, नौरादेही को उसका छठवां बाघ मिल गया था।
नवंबर 2021, बाघिन N1 दूसरी बार दो नन्हें शावकों के साथ नजर आयी। हाथी दल के द्वारा निगरानी करने पर ज्ञात हुआ की उसने दो नए शावकों को जन्म दिया है। ये नौरादेही प्रबंधन जिसने बाघों के संरक्षण में एवं पुर्नस्थापना में दिन रात एक कर दिए थे के लिए एक अविस्वरणीय समय था।
अप्रैल 2022, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की टीम नौरादेही वन्यप्राणी अभ्यारण्य में अखिल भारतीय बाघ आंकलन-2022 के कार्य में वन विभाग का सहयोग कर रही थी। तभी खबर आयी कि हाथी गस्ती दल, जो की रेडियो कॉलर बाघिन N112 की निगरानी कर रहा था, उसने बाघिन के साथ दो नन्हें शावकों को देखा है।
नौरादेही के वन परिक्षेत्र अधिकारी वर्मा जी से संपर्क करने पर ये बात एकदम पुख्ता हो गयी। सारा नौरादेही का वन अमला इस बात से काफी खुश था क्यूंकि नौरादेही में बाघों की संख्या में दो नए बाघों का और इजाफा हो गया था, ये दो नए शावक नौरादेही में किये गए बाघ पुर्नस्थापना परियोजना की सफलता को बयान कर रहे थे, जो की नौरादेही प्रबंधन के अथक प्रयासों का ही नतीजा है।
अभी हाल ही में ये पता चला है कि बाघिन N1 ने दूसरी बार दो नहीं बल्कि चार शावकों को जन्म दिया था। और अब नौरादेही में बाघों की संख्या 6 से बढ़कर 12 हो गयी है (N1 के पिछले तीन शावक (N111, N112, N113) एवं अभी वर्तमान में चार शावक, N2 एवं N3 और N112 के दो शावक)।
बाघों की बढ़ती संख्या हर्ष का विषय तो है परन्तु इसे यूंही बनाये रखने के लिए और भी पड़ाव पार करने हैं। इनमे सबसे ज्यादा कठिन है जैविक दबाब को रोकना, नौरादेही के अंदर 72 गांव थे, जिनमे से 22 गावों को स्वैच्छिक विस्थापन प्रक्रिया के तहत विस्थापित किया जा चुका है परन्तु 50 गांव अभी भी अभ्यारण्य के अंदर ही हैं।
इन गांव के निवासी पूरी तरह अभ्यारण्य के जंगल पर ही निर्भर हैं, गांव के पालतू पशुओं की चराई भी एक महत्वपूर्ण विषय है। जंगल पर इन गांव की निर्भरता से जैविक दबाब बढ़ता जा रहा है।
अभ्यारण्य में अन्य शाकाहारी जानवरों की संख्या कम होने के कारण बाघों द्वारा पालतु मवेशियों का शिकार कर लिया जाता है जिसके कारण मानव-बाघ संघर्ष बढ़ने की सम्भावना एवं गांव वालों में असंतोष की भावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जिसके लिए अंदर स्थित गावों से सामंजस्य बनाये रखना जरुरी है।
वनों की आग भी एक चुनौतीपूर्ण विषय है, हर वर्ष गर्मी के मौसम में आग से जंगल को काफी नुक्सान होता है आग से जंगल में प्राकृतिक वनस्पतियों की जगह खरपतवार प्रजातियां ले सकती हैं जिससे जंगल का पर्यावास शाकाहारी वन्यप्राणियो के अनुकूल नहीं रहता।
जल प्रबंधन के लिए तालाबों एवं सौसर का निर्माण, गश्ती दलों एवं गश्ती वाहनों की संख्या को भी सुचारु किया जाना आवश्यक है। नौरादेही में वनों की सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण विषय है जिसके लिए वनरक्षकों एवं वन श्रमिकों द्वारा लगातार गश्ती कर निगरानी रखी जाती है परन्तु गश्ती वाहनों की संख्या को बढ़ानेआवश्यकता है जिससे बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
चार साल में ही दो का छह, छह का बारह; नौरादेही में बाघों की यह बढ़ती संख्या बाघ पुर्नस्थापना परियोजना कि सफलता की कहानी कह रहे हैं, और इस बात का प्रतीक है कि नौरादेही अभ्यारण्य बाघों के लिए एक उपयुक्त एवं अनुकूल आवास है। य
ह सब नौरादेही अभ्यारण्य के कुशल प्रबंधन का ही नतीजा है, पर सफर अभी लम्बा है, नौरादेही के बाघों का भविष्य बेहतर करने के लिए अभी और भी प्रयास किये जाने बाकी हैं। कुछ थोड़ी बहुत कमियां जो रह गयी हैं, उनको पूरा कर दिया जाए तो भविष्य में नौरादेही अन्य संरक्षित क्षेत्रों जैसे बाघ प्रबंधन में अग्रणी साबित हो सकता है।
लेखक संदीप चौकसे डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, इंडिया के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी हैं, जबकि सेवाराम मलिक मध्य प्रदेश के उप-वनमंडल अधिकारी (राज्य वन सेवा) हैं