ट्रेन की टक्कर से दो युवा हाथियों की मौत ने वन विभाग पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिये हैं। हरिद्वार के ज्वालापुर सीतापुर क्षेत्र में तेज रफ्तार ट्रेन की चपेट में आने से दो टस्कर हाथियों की मौके पर ही मौत हो गई। शुक्रवार सुबह करीब चार बजे नंदा देवी ट्रेन इस रूट से गुजर रही थी। जब ये हादसा हुआ। यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले चार साल के दौरान ट्रेन की चपेट में 62 हाथियों की मौत हो चुकी है, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
हरिद्वार में प्रभागीय वन अधिकारी आकाश वर्मा ने बताया कि दोनों हाथियों का पोस्टमार्टम किया जा रहा है। रिपोर्ट आने के बाद ही पक्के तौर पर कुछ कहा जा सकता है। वन विभाग ने नंदा देवी एक्सप्रेस के लोको पायलट पर मुकदमा दर्ज किया है। दोनों हाथियों को घटनास्थल के पास ही दफनाने का इंतजाम किया गया है।
टस्कर हाथी, उन हाथियों को कहा जाता है, जिन्हें उनके साथी उनकी उद्दंडता की वजह से अपने झुंड से निकाल देते हैं। ये दोनों हाथी रिहायशी क्षेत्र में आ गए थे। हरिद्वार ग्रामीण विधायक यतीश्वरानंद ने हाथियों की दर्दनाक मौत पर अफसोस जताया। उनका कहना है कि आए दिन यहां इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। यतीश्वरानंद कहते हैं कि वन विभाग की लापरवाही के चलते ये हादसा हुआ है। हाथी जंगल से निकलकर रिहायशी क्षेत्रों में घुस आते हैं। किसानों की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। जिस जगह ये हादसा हुआ, वहां पटरी के पास ही लोगों के घर बने हुए हैं। घटना की खबर मिलने पर वे मौके पर भी गए।
हाथी भोजन और पानी की तलाश में रिहायशी क्षेत्रों का रुख करते हैं। विधायक यतीश्वरानंद का कहना है कि यदि हाथियों को जंगल में भोजन-पानी उपलब्ध कराया जाए, तो इस तरह की स्थिति से बचा जा सकता है। उन्होंने नाराज़गी जतायी कि हाथियों को सुरक्षा के लिए भी पटरियों के दोनों तरफ तार-बाड़ से घेराबंदी की जानी चाहिए। हाथियों को जंगल में रोकने के उपाय किये जाने चाहिए।
हरिद्वार-देहरादून रेल लाइन पर अक्सर ऐसे हादसे होते रहते हैं, और वन्यजीवों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। हाथी जैसे विशालकाय जीव रिहायशी इलाकों में घुसकर उत्पात भी मचाते हैं, जिससे लोगों में दहशत फैल जाती है। करीब 360 हाथियों वाले राजाजी नेशनल पार्क और 1,100 हाथियों की संख्या वाले कार्बेट नेशनल पार्क में करीब 11 हाथी कॉरीडोर चिन्हित हैं। ताकि हाथियों की आवाजाही सुरक्षित रहे। लेकिन ये कॉरीडोर अभी तक अस्तित्व में नहीं आ सके हैं। तो कभी हाथी मारे जाते हैं, और कभी हाथी मारते हैं।
उल्लेखनीय है कि ट्रेन की चपेट में आने से हाथियों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। गत 8 फरवरी 2019 को लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि पिछले चार साल (2015-16 से 31 दिसंबर 2018) के दौरान कुल 373 हाथियों की असामायिक मौत हुई। इनमें से 62 हाथियों की मौत ट्रेन दुर्घटनाओं में हुई। इनमें से 13 हाथियों की मौत 1 अप्रैल 2018 से 31 दिसंबर 2018 के दौरान हुई।