बेचने के लिए ले जाइ जा रही टूना मछली; फोटो: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप)
बेचने के लिए ले जाइ जा रही टूना मछली; फोटो: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप)

कई दशकों की गिरावट के बाद विलुप्त होने के जोखिम से उबर रही हैं टूना और बिलफिश

कई दशकों की गिरावट के बाद टूना और बिलफिश मछलियां विलुप्त होने के जोखिम से उबर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ शार्कों की आबादी में गिरावट का सिलसिला अभी भी जारी है
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पिछले कई दशकों की गिरावट के बाद टूना और बिलफिश मछलियां विलुप्त होने के जोखिम से उबर रही हैं, जोकि पर्यावरण के दृष्टिकोण से एक अच्छी खबर है। वहीं दूसरी तरफ शार्कों की आबादी में अभी भी गिरावट का सिलसिला जारी है। देखा जाए तो यह बड़ी मछलियों की आबादी में आता उतार-चढ़ाव समुद्र की सेहत को भी उजागर करता है।

टूना और बिलफिश मछलियों की उन बड़ी प्रजातियों में शामिल हैं जिन्हें लम्बे समय से व्यापार के लिए पकड़ा जाता रहा है। इस लिहाज से देखें तो यह मछलियां दुनिया भर में व्यावसायिक दृष्टिकोण से फायदेमंद हैं। ऐसे में इनको बचाने और इनके बेहतर प्रबंधन पर कहीं ज्यादा ध्यान दिया गया है जिसका नतीजा है कि 58 वर्षों तक मंडराते विलुप्ति के खतरे के बाद अब इनकी आबादी इस जोखिम से उबर रहीं हैं।

वहीं दूसरी तरफ शार्क वो बड़ी मछलियां हैं, जिन्हें शिकार के दृष्टिकोण से बाय-कैच या नॉन-टारगेट प्रजाति माना जाता है। ऐसे में इन मछलियों की आबादी पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। नतीजन अभी भी इन विशाल मछलियों की आबादी तेजी से कम हो रही है।

देखा जाए तो मौजूदा समय में मछली पकड़ने की गतिविधियों पर तो कड़ी निगरानी रखी जा रही है, लेकिन जैव विविधता पर इसके पड़ते प्रभावों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है। इसका खामियाजा शार्क जैसी प्रजातियों को भुगतना पड़ रहा है।

यह जानकारी एजेडटीआई मरीन रिसर्च, बास्क रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी एलायंस, इंटरनेशनल सीफूड सस्टेनेबिलिटी फाउंडेशन और साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी, अर्थ टू ओशन रिसर्च ग्रुप से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इन मछलियों की आबादी में पिछले 70 वर्षों के दौरान आए उतार चढ़ाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके निष्कर्ष जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं।

जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान भी है इन जीवों के लिए खतरा

अपनी इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी रेड लिस्ट इंडेक्स की मदद ली है। इसकी मदद से पिछले 70 वर्षों के दौरान इन मछलियों पर विलुप्त होने के जोखिम और उसमें आने वाले वार्षिक परिवर्तनों में नजर रखी गई है।

इससे पहले के अध्ययनों से पता चला है कि करीब आधी मछलियां और समुद्री रीढ़रहित जीव जरूरत से ज्यादा होते शिकार की भेंट चढ़ चुके हैं। इनमें से कई की आबादी गंभीर रूप से घट गई है। ऐसे में दुनियाभर की सरकारों ने इनके संरक्षण के प्रयास तेज कर दिए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मछलियों की 18 बड़ी प्रजातियों का अध्ययन किया है, जिससे इनके संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों की सही तस्वीर सामने आ सके। 

2011 में आईयूसीएन ने टूना की 61 ज्ञात प्रजातियों में से सात को गंभीर खतरे की श्रेणी में रखा था। जो दर्शाता है कि इन पर विलुप्त होने का गंभीर संकट मंडरा रहा है। इतना ही नहीं जलवायु में आते बदलावों की वजह से भी इन विशाल मछलियों की आबादी में कमी आ रही है। बढ़ते तापमान के साथ महासागरों में ऑक्सीजन घट रहा है। जो टूना जैसी विशाल मछलियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है, जिन्हें अपने बड़े आकार के कारण ज्यादा ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

देखा जाए तो भले ही टूना और बिलफिश की तरह शार्क मछलियों का तेजी से शिकार नहीं हो रहा है। लेकिन अन्य मछलियों के झांसे में यह मछलियां जाल में फंस जाती हैं। ऐसे में इन्हें या तो मार दिया जाता है और जहाज से नीचे फेंक दिया जाता है या फिर इन्हें इनके फिन के लिए बाजार में बेच दिया जाता है।

हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि समुद्री शार्क की 31 में से 16 प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं जबकि इनकी तीन प्रजातियों समुद्री वाइटटिप शार्क, स्कैलप्ड हैमरहेड शार्क और ग्रेट हैमरहेड शार्क पर विलुप्त होने का गंभीर संकट मंडरा रहा है।

पता चला है कि 1970 के बाद से शार्क और रे मछलियों की वैश्विक आबादी में करीब 71.1 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। पता चला है कि जिस तरह से 1970 के बाद से मछलियों के शिकार में इजाफा हुआ है उसके चलते शार्क और रे पर पड़ने वाला दबाव 18 गुना तक बढ़ चुका है।

इसी तरह हाल ही में शार्क मछलियों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ते नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए है। जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट में छपे एक शोध से पता चला है कि जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है उसका असर यहां रहने वाले जीवों पर पड़ रहा है। समुद्री तापमान में आने वाले इन बदलावों के चलते शार्क के बच्चे समय से पहले ही जन्म ले रहे हैं, जिससे उनका जीवित रहना मुश्किल होता जा रहा है। इसका असर इन मछलियों के आकार भी पड़ रहा है जो पहले से कम हो गया है।

दुनिया भर में शार्क को शार्क को उसके हमलावार स्वाभाव के लिए जाना जाता है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि यह विशाल जीव समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत जरूरी हैं। यह वो महत्वपूर्ण समुद्री शिकारी हैं जो समुद्री इकोसिस्टम को स्वस्थ बनाए रखते हैं। ऐसे में समुद्री इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए इनका अस्तित्व भी बहुत जरूरी है। 

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