
एक नए अध्ययन में कहा गया है कि डेक्कन ज्वालामुखी का उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा। यह लगभग 6.6 करोड़ साल पहले हुई ज्वालामुखी विस्फोट की घटना थी, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जीव-जंतु विलुप्त हो गए थे।
डेक्कन ज्वालामुखी ने अप्रत्यक्ष रूप से विविध उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों के विकास पर अच्छा असर डाला, क्योंकि इसने जिम्नोस्पर्मों या अनावृतबीजी के साथ-साथ डायनासोरों के विशाल समुदाय को नष्ट कर दिया। यही नहीं, इसने एंजियोस्पर्मों या आवृतबीजी के पैदा और विकास के लिए अनुकूल गर्म तथा नमी वाली जलवायु के भीतर नवजात, अछूते, बंजर किन्तु उपजाऊ आवास उपलब्ध करवाने में मदद की।
इस अध्ययन से इस बात की आशा जगती है कि यदि हमारे उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को बिना छेड़े रहने दिया जाए तो वे अनुकूल जलवायु परिस्थितियों में शीघ्र ही पुनर्जीवित हो सकते हैं।
डेक्कन ज्वालामुखी विस्फोट क्रेटेशियस-पेलियोजीन सीमा से पहले और उसके बाद कई लाख साल तक जारी रहा। इससे पता चलता है कि यह क्रेटेशियस-पेलियोजीन सामूहिक विलुप्ति को आगे बढ़ाने वालों में से एक था, जिसने दुनिया भर में अमोनॉइड या अकशेरुकी सेफेलोपोड्स और डायनासोर प्रजातियों को खत्म कर दिया था।
हालांकि इस घटना से पड़ने वाले प्रभाव की गहनता से जांच की गई, लेकिन वनस्पतियों पर इसके प्रभाव पर बहस जारी है। डेक्कन ज्वालामुखी के उपरिकेंद्र के रूप में, भारतीय प्लेट इस समय के दौरान किसी भी संबंधित बदलाव की पहचान करने के लिए एक अहम जानकरी प्रदान करती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) के एक अध्ययन से पता चलता है कि स्थलीय जीवों, विशेषकर डायनासोर के लिए अत्यधिक विनाशकारी परिणामों के बावजूद, डेक्कन ज्वालामुखी ने वनस्पतियों पर केवल क्षेत्रीय और छोटी से अवधि तक प्रभाव डाला।
इसके बजाय इसने भारतीय पठार पर विभिन्न आवासों के भीतर एंजियोस्पर्म के विविधीकरण को बढ़ावा दिया। निष्कर्ष रूप से अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड) के भीतर भारतीय पठार का अक्षांशीय बदलाव, अफ्रीका और भारत के बीच एक फिल्टर कॉरिडोर का निर्माण और डेक्कन ज्वालामुखी के निष्क्रिय चरणों के दौरान अत्यधिक गर्म तथा नमी वाली जलवायु ने उष्णकटिबंधीय वर्षावन समुदाय में विलुप्त होने के बजाय तेजी से विकास और विविधीकरण को बढ़ावा दिया।
शोध के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने पराग, बीजाणुओं और कार्बनिक पदार्थों का अध्ययन करके इसका पता लगाया, जिसे उन्होंने जीवित और जीवाश्म रूपों में तलछटी चट्टानों से निकाला था। चट्टान (मडस्टोन और क्लेस्टोन) के नमूने महाराष्ट्र के येओतमल क्षेत्र से 17 मीटर मोटी तलछटी श्रृंखला से जमा किए गए थे।
पैलिनोमॉर्फ्स पराग, बीजाणुओं और कार्बनिक पदार्थ को पैलिनोलॉजिकल और पैलिनोफेसीज विश्लेषण के लिए विभिन्न एसिड के साथ मिलाकर नमूनों से निकाला गया था। पैलिनोलॉजी का उपयोग बायोस्ट्रेटीग्राफी की स्थापना और पैलियोइकोलॉजी, पैलियोक्लाइमेट तथा पैलियोबायोजियोग्राफी के पुनर्निर्माण के लिए किया जाता है, जबकि पैलिनोफेसीज अध्ययनों का उपयोग निक्षेपण पर्यावरण के पुनर्निर्माण के लिए किया गया था।
अर्थ साइंस रिव्यूज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि इस तथ्य के बावजूद कि डेक्कन ज्वालामुखी ने पर्यावरण में जहरीली ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ा, जिससे दुनिया भर में तापमान में वृद्धि के कारण क्रेटेशियस-पेलियोजीन बड़े पैमाने पर विलुप्त हो गए। उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों ने उप-सहस्राब्दी पैमाने पर तेजी से सुधार किया, जो जलवायु संबंधी तनावों के लिए उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों की उच्च सहनशीलता को दर्शाता है।
इसलिए भूवैज्ञानिक अतीत के दौरान भूवैज्ञानिक और जलवायु उथल-पुथल से वनस्पतियों में आए बदलाव को समझना दुनिया भर में तापमान वृद्धि के कारण चल रहे जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं का पूर्वानुमान लगाने में सहायता कर सकते हैं।