पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर
बस्तर में सलवा जुडूम के समय हिंसा से पीड़ित हजारों आदिवासी अपना घर-द्वार और खेत-खलिहान छोड़ कर पड़ोसी राज्य तेलगांना और आंध्र प्रदेश में शरण लेने चले गए थे। अब दशकों बाद जब गांधीवादी संगठन और सरकार द्वारा माहौल बनाने के बाद उनमें कई लोग घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। इस घर वापसी में जहां संगठन और प्रशासन मदद कर रहा है, वहीं आदिवासी अपनी संस्कृति और परम्परा के अनुसार घर छोड़ के चले जाने से नाराज कुल देवताओं को सामूहिक तौर पर मनाने के लिए आज से सुकमा जिले के कोंटा में पेन पंडूम उत्सव मना रहे हैं।
गौरतलब है कि भारत के आन्ध्रा, तेलंगाना, ओडिशा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पिछले कई दशकों से नक्सली हिंसा से पीड़ित हैं। इन राज्यों में सबसे ज्यादा पीड़ित कोई राज्य है तो वह छत्तीसगढ़, खासकर बस्तर क्षेत्र है।
यहाँ नक्सल हिंसा से निपटने के लिए कई प्रयोग हुए जिनमें सलवा जुडूम भी एक था। 2005 में जब सलवा जुडूम की शुरुआत हुई और इसे पुलिस और सरकार का समर्थन मिला हुआ था। इसे नक्सलियों के खिलाफ आदिवासियों का शांतिपूर्ण आन्दोलन कहा गया, इसके अंतर्गत बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के दूरदराज क्षेत्रों से लोगों को लाकर सलवा जुडूम कैम्पों में रखा गया। जो कैम्पों में आ गये, वह नक्सलियों के निशाने पर रहे और जिन्होंने गांव नहीं छोड़ा, वे सलवा जुडूम और पुलिस के निशाने पर। उस समय कई गाँव जला दिये गए और इस तरह दोनों ओर की हिंसा से कई लोगों को अत्याचार तो सहना ही पड़ा, साथ कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इन सबसे बचने के लिए लोग अपना घर द्वार, जमीन जायदाद छोड़ सपरिवार पड़ोसी राज्यों में चले गए। वहां जंगलों में झोपड़ी बना कर खेती और आसपास के गांव में किसानों के पास मजदूरी करने लगे।
बस्तर क्षेत्र में शांति की स्थापना के क्षेत्र में इन विस्थापितों की घर वापसी को एक महत्वपूर्ण काम माना जा रहा है। इस कार्य में अगुवाई कर रहे सीजी (छतीसगढ़) नेटवर्क के प्रमुख और बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी ने इसमें पहल करते हुए स्थानीय लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए सुकमा से जगदलपुर पैदल यात्रा और दूसरे चरण में जगदलपुर से रायपुर तक साइकिल यात्रा का आयोजन किया था।
इसके बाद राज्य सरकार ने भी पहल करते हुए इन लोगों के वापसी के लिए आवश्यक कार्रवाई की और पीड़ित लोगों के पुनर्वास के प्रयास शुरू किये गए। लोगों को वनाधिकार दिलाने के लिए राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय भी पीड़ितों की मदद करने आगे आए हैं।
शुभ्रांशु ने पेनपंडूम के बारे में जानकारी देते हुए कहा- “अपना घर, जमीन और गांव छोड़कर जाने से उनके कुल देवता, गांव देवता सब नाराज हो गए हैं, इसलिए घर वापसी से पहले उन्हें मनाना मनाना जरूरी है।” इस तरह से आज से घर वापसी से पहले अपने देवताओं को मनाने पेन पंडूम मना रहे हैं। यह आज और कल दो दिन तक चलेगा, जिसमें आसपास गांव से सैकड़ों आदिवासी जुट रहे हैं।