आदिवासियों की जमीनों को संरक्षित करने वाले सीएनटी और एसपीटी एक्ट में बदलाव की मांग, जानिए क्या होगा असर?

संभव है कि 20 जून के बाद ही यह मामला विचार के लिए अदालत के सामने आएगा। इस बीच याचिका की निर्णायक मांग में कई बदलाव हो सकते हैं।
आदिवासियों की जमीनों को संरक्षित करने वाले सीएनटी और एसपीटी एक्ट में बदलाव की मांग, जानिए क्या होगा असर?
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"मुझे पता है कि झारखंड के आदिवासियों की स्थिति कितनी खराब है? वह बहुत ही गरीब हैं। ऐसे में उनकी जमीनों को पूरी तरह से खरीद और बिक्री की छूट उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है। मैं चाहता हूं कि ऐसा प्रावधान किया जाए जिससे उनकी जमीनों की खरीद-फरोख्त आवासीय मकसद के साथ कुछ सीमित दायरों और छूट के साथ संभव हो सके। इसके लिए जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने वाले पुराने कानूनों में बदलाव जरूरी है। मैं पूरी तरह से कानून खत्म करके उन्हें व्यावसायिक खरीद-फरोख्त के लिए खोल देने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं हूं। इस संबंध में याचिकाकर्ता से भी सीमित छूट की मांग उठाने को लेकर बात की जाएगी। तभी याचिकाकर्ता के वकील के तौर पर इस मामले में आगे बढूंगा।"  

सुप्रीम कोर्ट में झारखंड के आदिवासियों के जमीनों को संरक्षित करने वाले दो कानूनों - छोटा नागपुर टीनेन्सी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना टीनेन्सी एक्ट (एसपीटी एक्ट) को रेक्टिफाई करने की मांग करने वाली याचिका के वकील राम लाल रॉय ने यह बातें डाउन टू अर्थ से कहीं। उन्होंने कहा कि संभव है कि 20 जून के बाद ही यह मामला विचार के लिए अदालत के सामने आएगा। इस बीच याचिका की निर्णायक मांग में कई बदलाव हो सकते हैं। इसलिए इस मामले पर अभी अधिक नहीं बोल सकता।

संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में आदिवासी समाज की मांग या अगुवाई को लेकर उन्होंने कहा कि इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। दरअसल यह याचिका 88 वर्षीय श्याम प्रसाद सिन्हा की ओर से दाखिल की गई है, जिनके बारे में याचिका में जिक्र है कि वह आदिवासी समाज का विकास चाहते हैं। 

क्या है सीएनटी और एसपीटी एक्ट

सीएनटी एक्ट को 1908 में और एसपीटी एक्ट को 1949 में ब्रितानिया हुकूमत के जरिए लाया गया था। इन दोनों एक्ट का मकसद था कि इससे आदिवासियों और अन्य पिछड़ी जातियों की जमीनें संरक्षित और सुरक्षित होगी। इस एक्ट में यह भी प्रावधान है कि संबंधित क्षेत्र में किसी आदिवासी की जमीन को कोई व्यवसायी अपने हित के लिए नहीं खरीद सकता। 

इन कानूनों में यह भी प्रावधान है कि समान जाति के लोगों को छोड़कर अन्य जाति या समुदाय के लोग यह जमीन नहीं खरीद सकते। केवल वह किसान जो उन्हीं के समुदाय या जाति से आता है वही उस जमीन को खरीद सकता है वह भी तब जब उसने ऐसा पहले कभी न किया हो। समान जाति के किसान जमीन को आपस में खरीद और बेच सकते हैं लेकिन उसके लिए उन्हें जिला अधिकारी से अनुमति लेनी होगी। इस अनुमति का का प्रावधान एक्ट के 46वें धारा में है।

इसके अलावा एक्ट के तहत जमीन को छह वर्ष से अधिक लीज पर भी नहीं दिया जा सकता है। यह लीज भी सीमित छूट के लिए है, जिसका मतलब है कि लीज की जमीन पर किसी भी तरह का व्यावसायिक काम नहीं किया जा सकता है।

यह एक्ट झारखंड के सभी जिलों में सिवाय संथाल परगना को छोड़कर लागू हैं। संथाल परगना में महिलाओं के जरिए रैयत नाम से जमीनों का नामकरण है हालांकि वह भी बिक्री नहीं की जा सकती।  

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका में एक्ट के इन प्रावधानों को लेकर कहा गया है कि इसके चलते बैंकों के जरिए इन जमीनों पर किसी भी तरह का ऋण नहीं दिया जा सकता है। और 70 से ज्यादा फीसदी जमीनें एक्ट के विरुद्ध अवैध तरीके से खरीदी और बेची जा रही हैं। इसकी रोकथाम के लिए भी कोई प्राधिकरण नहीं है। 

याचिका में कहा गया है कि ब्रितानिया कानून को खत्म कर देना चाहिए। यह गुलामी का प्रतीक है। संबंधित क्षेत्रों के लोग खुद की आजादी नहीं महसूस करते हैं। विकास कार्यों के लिए सरकरी योजनाएं इन क्षेत्रों में लागू नहीं हो सकती, जिसके कारण यह क्षेत्र अविकसित औऱ गरीब बने हुए हैं। सरकार ने रांची को एक स्मार्ट सिटी घोषित किया है ऐसे में जब तक एक्ट को रेक्टिफाई नहीं किया जाता तब तक यह सब कार्य नहीं हो सकते। 

कम से कम सरकार को जमीन अधिग्रहित करने का अधिकार होना चाहिए, ताकि वह विकास कार्य कर सके। 

क्या है छूट से डर

इस मामले के वकील राम लाल राय खुद मानते हैं कि यदि एक्ट खत्म करके पूरी तरह से खरीद-फरोख्त शुरु कर दिया जाए तो व्यावसायिक हित वाले बाहरी लोग इन जमीनों को खरीद लेंगे। यह ज्यादा विनाशकारी होगा। ऐसे में सीमित छूट का प्रावधान एक विकल्प है, जिसकी हम मांग करेंगे। 

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