उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक प्राकृतिक आपदा का रूप लेता जा रहा है। पिछले वर्ष यहां प्राकृतिक आपदा में 80 लोगों की मौत हुई जबकि जंगली जानवरों के हमले में 58 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 259 लोग घायल हुए। ये आंकड़ा बताता है कि इस टकराव को रोकने के लिए इस दिशा में और अधिक कोशिश की जरूरत है। यहां बजट और स्टाफ की कमी उत्तराखंड वन विभाग की सबसे बड़ी समस्या नज़र आती है।
वन्यजीवों के हमले
वन्यजीवों के हमले में जान गंवाने वाले सबसे अधिक 8 लोग पिथौरागढ़ के हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व में 6, पश्चिमी सर्कल के पूर्वी हिस्से में 6, गढ़वाल वन क्षेत्र में 6 और हरिद्वार में 6 लोग मरे हैं। इसके अलावा कार्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़ रेंज में 3, रामनगर में 1, नंदादेवी में 2, केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में 1, नैनीताल में 1, अल्मोड़ा में 4, बागेश्वर में 1, हल्द्वानी में 1, पश्चिमी सर्कल के पूर्वी हिस्से को छोड़ अन्य में 7, देहरादून में 1, टिहरी में 1, बद्रीनाथ में 1 और रुद्रप्रयाग में 3 मौतें हुई।
घायलों की संख्या
कार्बेट टाइगर रिजर्व में कुल 7 लोग वन्यजीव हमले में घायल हुए। नंदा देवी बायोस्फेयर में 3, केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में 12, गोविंद वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में 3, नैनीताल में 17, अल्मोड़ा में 21, बागेश्वर में 8, चंपावत में 1 और पिथौरागढ़ में 42 लोग घायल हुए। पश्चिमी सर्कल की बात करें तो यहां हल्द्वानी, रामनगर और अन्य क्षेत्रों को मिलाकर 36 लोग घायल हुए। यमुना घाटी में 4, शिवालिक वन क्षेत्र में 11, भागीरथी क्षेत्र के नरेंद्रनगर में 2, टिहरी में 9, उत्तरकाशी में 11 लोग घायल हुए। वहीं, बद्रीनाथ में 14, गढ़वाल वन रेंज में 43 और रुद्रप्रयाग में 15 लोग घायल हुए।
सांप-गुलदार से हुईं सर्वाधिक मौतें
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष में सबसे ज्यादा मुश्किल गुलदार को लेकर है। इसके हमले में 18 लोगों की मौत हुई। जबकि सांप के काटने से 19 मौते हुईं। वहीं हाथी के हमले में 12 लोग मारे गए। बाघ के हमले में 3, भालू के हमले में 4, जंगली सूअर से एक और मगरमच्छ का एक शिकार हुआ। घायलों में सांप का डंक सबसे खतरनाक साबित हुआ। इससे 78 लोग घायल हुए। भालू के हमले में 76 घायल हुए, गुलदार के हमले में 61, जंगली सूअर से 32, हाथी के हमले में 10, बाघ और मगरमच्छ के हमले में एक-एक व्यक्ति घायल हुआ।
राज्य में वन्यजीवों की मौत
पिछले वर्ष राज्य में 11 बाघ, 21 हाथी और 94 गुलदार की मौत हुई। वन विभाग के मुताबिक 5 बाघ आपसी संघर्ष में मारे गए, 4 की प्राकृतिक मौत हुई और 2 अज्ञात कारणों से। इस अवधि में 21 हाथियों की मौत हुई। गुलदार की मौत की विस्तृत रिपोर्ट अभी तैयार हो रही है। मानव जीवन के लिए खतरा घोषित करते हुए भी पिछले वर्ष गुलदारों को मारा गया। मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग के सामने सबसे बड़ी बाधा स्टाफ और संसाधनों की कमी है। इसे रोकने का कोई एक फॉर्मुला पूरे राज्य के लिए लागू नहीं हो सकता। पिथौरागढ़ गुलदार को लेकर संवेदनशील है तो वहां अलग तरह के उपाय करने होंगे। रामनगर-मुहान, हल्द्वानी के तराई सेंट्रल डिवीजन, कोटद्वार, दुगड्डा, पाथरो हाथी के लिहाज से संवेदनशील हॉटस्पॉट हैं। यहां अलग रणनीति अपनानी होगी।
राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी बताते हैं कि इंडो-जर्मन अंतर्राष्ट्रीय कोऑपरेशन (जीआईजेड) के साथ इस दिशा में कोशिश की जा रही है। जीआईजेड ने वन विभाग को एक जिप्सी, हाथियों के लिए 10 रेडियो कॉलर, गुलदारों के लिए 15 रेडियो कॉलर दिए हैं। साथ ही राजाजी नेशनल पार्क में कुछ अन्य आधुनिक उपकरण भी दिए हैं। देहरादून, हरिद्वार और राजाजी टाइगर रिजर्व में तीन रैपिड रिस्पॉन्स टीम भी बनाई गई है, ताकि अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को दुरुस्त किया जा सके। इसके साथ ही मोतीचूर रेंज और हरिद्वार में आईटी हब भी बनाया जा रहा है। जहां रेडियो कॉलर से मिले डाटा का आंकलन करने, एसएमएस अलर्ट भेजने सरीखे कार्य किये जाएंगे।
इसके अलावा राज्य के 400 गांवों में वालंटरी विलेज प्रोटेक्शन फोर्स बनाने का लक्ष्य रखा गया है। अभी हरिद्वार और देहरादून के 60 गांवों में प्रशिक्षण चल रहा है। राजीव भरतरी कहते हैं कि इस संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग के साथ पुलिस, शिक्षा, कृषि, आपदा प्रबंधन जैसे विभागों को साथ आना होगा। इसके लिए भी शासनस्तर पर बात की जा रही है।