मध्यप्रदेश सरकार बना रही है वन्यप्राणी अभयारण्य, आदिवासियों के विस्थापन का खतरा

मध्यप्रदेश वन विभाग पश्चिम मंडला वनमंडल के जबलपुर से लगे चार रेंज बरेला, बीजाडांडी, काल्पी और टिकारिया के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर 35 हजार किमी जंगल को अभयारण्य बना रहा है
जबलपुर के पास प्रस्तावित वन्य जीव अभ्यारण्य की वजह से आदिवासियों को विस्थापन का डर सता रहा है। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
जबलपुर के पास प्रस्तावित वन्य जीव अभ्यारण्य की वजह से आदिवासियों को विस्थापन का डर सता रहा है। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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मध्यप्रदेश का वन विभाग जबलपुर के नजदीक पश्चिम मंडला वनमंडल के जंगल में एक अभयारण्य बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इसके संबंध में वन विभाग ने वन मुख्यालय भोपाल को प्रस्ताव भेजा है। इस अभयारण्य का नाम राजा दलपत शाह वन्यप्राणी अभ्यारण्य रखने की योजना है। यहां अन्य जंगली जानवरों के अलावा बाघों का संरक्षण किया जाएगा। भोपाल मुख्यालय ने गांवों की शिफ्टिंग, लकड़ी और लघु वनोपज के उत्पादन के आर्थिक अनुमान की रिपोर्ट मांगी है, लेकिन इस क्षेत्र में रहने वाले वनवासियों को योजना की वजह से विस्थापन का खतरा पैदा हो गया है। खतरे को भांपते हुए इलाके के आदिवासियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। मंडला जिले के बीजाडांडी में आदिवासियों ने इसके विरोध में विचार किया। यहां आसपास के गांव के सरपंच, नागरिक और जागरूक आदिवासी शामिल हुए। प्रस्तावित अभ्यारण्य क्षेत्र में 55 राजस्व और 15 वनग्राम शामिल हैं।

एक और विस्थापन की तैयारी

प्रभाविक इलाके की लाबर चरगांव की सरपंच गीता तेकाम ने बताया कि वन विभाग के कर्मचारी आसपास के गांव के सरपंचों को रोजगार का झांसा देकर उनके सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करा रहे हैं। निवास विधानसभा के विधायक अशोक मर्सकोले के पास भी वन मंडल के अधिकारियों ने सहमति के लिए पत्र लिखा था। हालांकि उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और वन विभाग के अधिकारियों को पत्र लिखकर सहमति देने से साफ इनकार कर दिया। 

इलाके में बरगी बांध के विस्थापितों के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता राज कुमार सिन्हा ने बताया कि राज्य में 10 राष्ट्रीय पार्क और 25 अभयारण्य हैं और इस वजह से 94 गांव के 5 हजार 460 परिवारों बहुत पहले विस्थापित किये जा चुके हैं। इस राष्ट्रीय पार्क में अब में कोर एरिया बढ़ाने के नाम पर 109 गांव के 10 हजार 438 परिवारों को हटाए जाने की कार्यवाही जारी है। विस्थापन से आदिवासी अपनी आजीविका औऱ वन उपजों से दूर हो जाएंगे जिससे उनका चौतरफा नुकसान होगा। 

आदिवासी कह रहे, तकलीफ देते समय ही याद आते हमारे पूर्वज

नारायणगंज के जनपद उपाध्यक्ष भूपेन्द्र बरकङे कहते हैं कि सरकार ने कभी उनके पुरखा और शहीदों को सम्मान नहीं दिय़ा, लेकिन जब विस्थापन, मौत और तकलीफ देना है तो राजा दलपत शाह के नाम पर अभ्यारण्य बनाने की योजना बव रही है। बरकड़े ने सवाल उठाया कि  क्या आदिवासी समुदाय विस्थापित होने के लिए जन्म लिया है? तिनसई गांव के सरपंच मदन सिंह बरकङे ने बताया कि आदिवासी इस फैसले के खिलाफ हैं और गांव-गांव में में इस अभ्यारण्य की जानकारी देकर, इसके विरोध में विरोध में प्रस्ताव पारित कराया जाएगा। आदिवासियों ने फैसला किया है कि सभी गांवों में जाकर इसके विरोध में सभाएं की जाएंगी और 18 सितम्बर से अभयारण्य के खिलाफ विरोध तेज होगा।

कौन थे दलपत शाह?

दलपतशाह गोंड राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े पुत्र थे। इनका विवाह रानी दुर्गावती से हुआ था। 1540 ई. में संग्राम शाह की मृत्यु के पश्चात् दलपतशाह राजा हुए। दलपतशाह की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने गद्दी संभाली थी।

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