चुटका परमाणु विद्युत परियोजना के खिलाफ एकजुट हुए आदिवासी, 20 अक्टूबर को प्रदर्शन

चुटका परमाणु विद्युत परियोजना की वजह से 54 आदिवासी गांवों के लगभग 60 हजार लोगों पर परमाणु विकिरण का खतरा बन सकता है
चुटका परमाणु विद्युत परियोजना के खिलाफ बैठक करते आदिवासी। फाइल फोटो: राजकुमार सिन्हा
चुटका परमाणु विद्युत परियोजना के खिलाफ बैठक करते आदिवासी। फाइल फोटो: राजकुमार सिन्हा
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मध्य प्रदेश के मंडला और सिवनी जिले में चुटका सहित 54 आदिवासी गांवों के लगभग 60 हजार लोगों पर परमाणु विकिरण का खतरा पैदा हो सकता है। यह खतरा प्रस्तावित 14 सौ मेगावाट की चुटका परमाणु विद्युत परियोजना के कारण बढ़ गया है। आशंका है कि इस रेडिएशन का असर चुटका गांव के आसपास के 30 किलोमीटर दायरे तक हो सकता है। यही नहीं, इन 54 गांवों में से चार गांव चुटका, टाटीघाट, कुंडा गांव और मानेगांव 1990 में नर्मदा नदी पर बने बरगी बांध के कारण पहले ही विस्थापित हो चुके हैं। अब ये दूसरी बार विस्थापित होने के कगार पर खड़े हैं। विस्थापन के साथ-साथ इन 54 गांवों के ग्रामीणों पर परमाणु रेडिएशन का भी खतरा मंडराएगा।

इस खतरे से अगाह करने के लिए आगामी 20 अक्टूबर को चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति ने राज्य भर में चल रही आदिवासी अधिकार हुंकार यात्रा के तहत एक दिन का विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है। ध्यान रहे यह मामला अदालत में लंबित है और आगामी 26 नवंबर को इसकी सुनवाई होनी है। इसके अलावा आगामी 17 नवंबर को आदिवासी आधिकार हुंकार यात्रा के अंतर्गत एक विशाल विरोध प्रदर्शन का आयोजन प्रदेश की राजधानी में होगा। इसमें राज्य भर के अब तक विस्थापित आदिवासी शामिल होंगे।

इस संबंध में जानकारी देते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता और इस हुंकार यात्रा से जुड़े कार्यकर्ता राजकुमार सिन्हा ने बताया कि चुटका विद्युत परमाणु परियोजना से प्रभावित आदिवासी बरगी बांध से पूर्व में ही विस्थापित हो चुके हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश की पुनर्वास नीति 2002 में दी गई व्यवस्था जिसमें बार-बार के विस्थापन पर रोक लगाने का प्रावधान है, इसका खुले आम सरकार उल्लंघन कर रही है। इतना ही नहीं, नियम के मुताबिक, परियोजना से विस्थापित एवं प्रभावित होने वाले सभी ग्राम सभाओं की अनुमित लेना अनिवार्य होता है। ध्यान रहे कि ग्राम चुटका, टाटीघाट, कुंडा और मानेगांव ग्राम  संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं। पंचायत अधिनियम 1996 (पेसा कानून) में विस्थापन पूर्व ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य है। लेकिन इन सभी चारों गांव की ग्राम सभाओं ने इस परियोजना को लगाने की आपत्ति दर्ज की है। यही नहीं राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड जबलपुर द्वारा पर्यावरणीय जनसुनवाई के दौरान हजारों आदिवासियों द्वारा इसके खिलाफ आपत्तियां दर्ज कराई गई है। इस परियोजना को अब तक मंत्रालय से पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली है।

चुटका परियोजना के लिए मंडला जिले की 231 और सिवनी की 29 यानी कुल 260 हैक्टेयर भूमि को मध्य प्रदेश मंत्रीमंडल ने देने का निर्णय लिया है लेकिन ध्यान देने की बात है इस जमीन पर बरगी बांध के विस्थापित अपना अब जीवनयापान चला रहे हैं यानी एक बार फिर से ये विस्थपित होंगे। प्रदेश सरकार ने इस परियोजना के लिए 54.46 हेक्टेयर आरक्षित वन, 65 हैक्टेयर राजस्व वन यानी कुल 119.46 हैक्टेयर भूमि परिवर्तित करवाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की आंकलन समिति के सामने आई। लेकिन इसी समय इन गावों के हजारों लोगों ने अपनी आपत्ति ई-मेल के माध्यम से पर्यावरण मंत्रालय में दर्ज कराई लेकिन मंत्रालय ने 25 अगस्त, 2017 को वन भूमि को परिवर्तित करने संबंधी अपनी मंजूरी सभी आपत्तियों को दरकिनार करते दे दी।

इन परियोजना का विरोध प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है कि नर्मदा नदी यहां के आदिवासियों के जीने का एक आधार है। ऐसी स्थिति में यहां परमाणु विद्युत परियोजना को स्थापित करना न केवल नर्मदाखंड की जैव विविधता को समाप्त करेगा बल्कि समूचि नर्मदा नदी के लिए एक विनाशकारी साबित हो सकता है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा  है कि परमाणु परियोजना को ठंडा रखने के लिए भारी मात्रा में पानी की जरूरत होगी और यह जरूरत नर्मदा से पूरी की जाएगी ऐसे में इस क्षेत्र में जल संकट की स्थिति पैदा होगी। मंडला जिला जबलपुर के निकट स्थित है और यह इलाका सिस्मिक जोन में होने की वजह से यहां भूकंप का खतरा बना रहता है। ऐसे में भविष्य में परमाण विकिरण की वजह से एक बड़े क्षेत्र में विनाश कारण बन सकता है। ऐसे में इस परियोजना पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। 

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