बिचौलियों से बचने के लिए आदिवासियों ने अपनाया 'अपना रास्ता'

जंगलों से केंदु पत्ता इकट्ठा कर गुजर बसर करने वाले आदिवासियों ने मिलकर अपना एक समूह बनाया, जिसमें 100 से अधिक ग्रामसभाएं शामिल हैं
ओडिशा में आदिवासी केंदू के पत्ते इकट्ठा कर बेचते हैं। फोटो: विद्युत मोहंती/स्प्रेड
ओडिशा में आदिवासी केंदू के पत्ते इकट्ठा कर बेचते हैं। फोटो: विद्युत मोहंती/स्प्रेड
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दक्षिणी ओडिशा में 100 से अधिक ग्राम सभाओं ने अपने सामुदायिक वन अधिकारों का लाभ उठाते हुए सीधे केंदू पत्ते बेचने की तैयारी कर ली है। इससे वे जहां बिचौलियों से बच जाएंगे, वहीं स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने की दिशा भी तय करेंगे।

केंदू पत्ते, जिन्हें देश के कुछ हिस्सों में तेंदू पत्ते के रूप में भी जाना जाता है, का उपयोग तंबाकू को बीड़ी में रोल करने के लिए किया जाता है और इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। इसे राज्य में आमतौर पर "हरा सोना" के रूप में जाना जाता है। यह राज्य का प्रमुख गैर-लकड़ी वन उत्पाद (एनटीएफपी) है, जो क्षेत्र में आदिवासी समुदायों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

ओडिशा के कोरापुट जिले के बैपरिगुडा ब्लॉक की 103 ग्राम सभाओं ने कुछ समय पहले अपने सामुदायिक वन अधिकारों का प्रयोग करने का निर्णय लिया है। यह अधिकारा उन्हें अपनी आजीविका के लिए वन उत्पादों का उपयोग करने की अनुमति देता है।

अब तक की व्यवस्था में बिचौलियों की कई परतें शामिल थीं, जो अक्सर कम कीमत पर पत्तियां खरीदती थीं। 

इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए ग्राम सभाओं ने बैपरिगुडा ग्राम सभा महासंघ का गठन किया। इस महासंघ के के पास केंदू पत्तों के परिवहन के लिए व्यापारियों को पारगमन परमिट जारी करने का अधिकार है।

क्षेत्र में आदिवासी अधिकारों की वकालत करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था स्प्रेड के सचिव बिद्युत मोहंती ने कहा कि ग्रामीणों ने वन अधिकार अधिनियम के तहत मिले अधिकारों को दावा प्रस्तुत किया है। यह अधिकार उन्हें वन उत्पादों को इकट्ठा करने और विपणन करने की अनुमति देता है।

कलथजोड़ी गांव के निवासी भक्तराम माझी ने बताया कि ग्रामीण अपनी उपज वन विभाग द्वारा नियुक्त व्यापारी को बेचते थे। व्यापरियों से हमें प्रति बंडल केवल 3.2 रुपये मिले थे। इसके अलावा एक और समस्या का हमें अकसर सामना करना पड़ा, वह थी कि उपज हमसे नियमित रूप से नहीं ली जाती थी। यानी कि हमारी आय की निश्चित गारंटी नहीं थी। 

नई पहल के तहत ग्रामीण अब प्रति बंडल 4 रुपए तक कमा रहे हैं। 

माझी ने यह भी कहा कि व्यापारी उतना ही केंदु पत्ता खरीदते हैं, जितने की उन्हें जरूरत होती है, उससे ज्यादा पत्ता नहीं खरीदते, जबकि हम चाहते हैं कि हमारा पास जितना केंदु पत्ता है, उसकी नियमित खरीददारी हो। 

यही वजह है कि अब, ग्रामीणों ने मिलकर तय किया है कि उन क्षेत्रों से भी केंदू पत्तों का संग्रह सुनिश्चित किया जाएगा, जहां वन विभाग या व्यापारी नहीं करते हैं। इस कदम से इन गांवों के 6,000 लोगों को सीधे तौर पर फायदा हुआ है.

कल्याजोड़ी गांव के डोला गोविंद फिलो ने कहा कि वह केंदू पत्ता बेचकर प्रति माह 5,000 से 10,000 रुपए कमाते थे, लेकिन ग्राम सभा द्वारा दी गई बेहतर दरों से उनकी आय 10,000 से 15,000 रुपए प्रति माह के बीच पहुंच गई है।

ग्राम सभा महा संघ के सचिव सुकरा क्रिसानी ने कहा कि समुदायों ने दो सप्ताह के भीतर केंदू पत्तों के कम से कम सात लाख बंडल इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा है।

उन्होंने कहा, “इस कदम से ब्लॉक की वंचित जनजातियों के पास काफी पैसा आएगा। ग्राम सभाओं का इरादा  पत्तियों को संसाधित करने और उन्हें विपणन करने के लिए पैकेज करने और ओडिशा के भीतर और बाहर दोनों व्यापारियों के साथ गठबंधन करना है।  

क्रिसानी ने कहा कि एक साथ काम करने से ग्रामीणों की आय क्षमता में वृद्धि होगी और समुदाय की समग्र भलाई में वृद्धि होगी।

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