झारखंड में बाघों के रहने की एकमात्र जगह पलामू टाइगर रिजर्व है। इस बार बाघों की आबादी के आंकड़ों में यहां एक भी बाघ के न होने की पुष्टि की गई है। हालांकि, इस आंकड़े पर अब संदेह पैदा हो गया है। अब दावा किया जा रहा है कि पलामू में फरवरी से अप्रैल के बीच में कैमरे में बाघ की तस्वीर दर्ज की गई है। कैमरा टैपिंग की तस्वीरों का विश्लेषण भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के जरिए किया जाता है। इसलिए टैपिंग की तस्वीरों पर बाघों की संख्या का विश्लेषण डब्ल्यूएआईआई करेगा।
पलामू टाइगर रिजर्व के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताया कि बाघों का पर्यावास अब भी बहुत ही बेहतर है। मार्च-अप्रैल के बीच कैमरा टैपिंग में बाघ दिखा है। पग मार्क के जरिए भी बाघ के होने की पुष्टि को लेकर तलाश जारी है। उन्होंने कहा कि आंकड़ों के संबंध में कुछ भ्रम हुआ है। अब निदेशक इस संबंध में आगे की प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं।
पलामू टाइगर रिजर्व 1129.93 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। 1974 में जब प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कुल नौ टाइगर रिजर्व अधिसूचित किए गए थे। पलामू उनमें से एक है। उस वक्त बाघों की संख्या करीब 22 थी। 2010 में इसकी संख्या 10 हो गई। वहीं, 2014 की गणना में बाघों की संख्या 3 तक पहुंच गई। हालांकि, उस वक्त नक्सल गतिविधि को प्रमुख वजह बताकर बाघों की संख्या कम होने का हवाला दिया गया था।
पलामू टाइगर रिजर्व के संबंधित अधिकारी ने बाघों की संख्या कम होने को लेकर बताया कि इसकी प्रमुख वजह बायोटिक प्रेशर है। यह बायोटिक प्रेशर तेजी से बढ़ती मानव गतिविधियों के कारण तैयार हुआ है। वहीं, डब्ल्यूआईआई के वीवाई झाला ने डाउन टू अर्थ को पलामू से बाघों के गायब होने के पीछे की वजह नक्सल गतिविधियों को बताया। उन्होंने कहा कि पहले लॉ एंड ऑर्डर के हिसाब से स्थिति काबू में आए उसके बाद ही संरक्षण की कोशिशें हो सकती हैं।
29 जुलाई,2019 को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर भारत ने बाघों की गिनती (2014-2018) का आंकड़ा जारी किया है। 2014 में भारत में 2,226 बाघ थे। जबकि 2018 में 2,967 बाघ गिने गए हैं। यानी बीते चार वर्षों में करीब 741 बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। जबकि 2006 में बाघों की संख्या 1,411 थी। इस वक्त दुनिया में कुल बाघों की 70 फीसदी आबादी भारत में है। बाघों की गिनती का आंकड़ा हर चार वर्ष पर जारी किया जाता है। इस बार बाघों की गिनती के लिए 3,81,400 वर्ग किलोमीटर सर्वे किया गया है। वहीं, अब पग पग मार्क की विधि को नहीं अपनाया जाता। जबकि कैमरा टैपिंग और अन्य वैज्ञानिक विधि के जरिए बाघों की गिनती की जा रही है। इस बार बाघों की तस्वीरों को कैद करने के लिए हर दो वर्ग किलोमीटर पर कैमरे लगाए गए थे।