तिब्बती हिरणों ने ऊंचे पहाड़ों में जीवित रहने के लिए विकसित किया अनूठा तरीका

1990 के दशक में अवैध शिकार के कारण तिब्बती हिरण लुप्तप्राय श्रेणी में आ गए थे, लेकिन आज इनकी संख्या में अच्छी- खासी वृद्धि हुई है
Photo: wikimedia commons
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यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि तिब्बती हिरणों ने पहाड़ों में जीवित रहने के लिए अनोखे तरीके विकसित किए हैं। तिब्बती हिरण या चिरु एक मध्यम आकार का जानवर है, इसका वैज्ञानिक नामपैंथेलोप्स हॉजसोनी’ है। 1980 और 1990 के दशक में, अवैध शिकार के कारण ये लुप्तप्राय श्रेणी में गए थे, लेकिन आज इनकी संख्या में अच्छी- खासी वृद्धि हुई है। साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित पेपर में, टीम ने अधिक-ऊंचाई वाले तिब्बती हिरणों के उनके आनुवंशिक विश्लेषण का वर्णन किया है और इनके क्रमागत आनुवंशिक विकास ने इन्हें किस तरह ढ़लना सिखाया, इस बारे में बताया है।

तिब्बती हिरण, जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, तिब्बती पठार जो हिमालय पर्वत श्रृंखला और टकलामकान रेगिस्तान के बीच स्थित है वे वहां रहते हैं। समुद्र तल से यहां की ऊंचाई 3,600 से 5,500 मीटर हैं। इतनी ऊंचाई पर, ऑक्सीजन का दबाव समुद्र तल से दो गुना कम होता है। ऐसी ऊंचाई पर रहने वाले जानवर कम ऑक्सीजन पर जीवित रहने के लिए विकसित हुए हैं। तिब्बती हिरण ऐसे वातावरण में पनपने के लिए स्पष्ट रूप से विकसित हुआ है। कुछ हिरणों को बहुत कम हवा के दबाव में 70 किलोमीटर / घंटे से अधिक तेजी से दौड़ते हुए 100 किलोमीटर की दूरी तक तय करते हुए देखा गया है। इस नए प्रयास में, शोधकर्ताओं ने इस बारे में और जानने की कोशिश की, कि ऐसे वातावरण में रहने के लिए तिब्बती हिरण कैसे विकसित हुए हैं।

तिब्बती हिरणों में बीटा -ग्लोबिन जीन को पहचाना गया है। उल्लेखनीय है ग्लोबिन्स बहुत अधिक मात्रा में, रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन को शरीर में ले जाने का काम करता है। जीन के पहचान से, उनमें दो अंतर लिखाई दिए जो गायों के समान थे। लेकिन जब दोनों प्रजातियों की तुलना की गई, तो शोधकर्ताओं ने पाया कि हिरण अपने विकासवादी इतिहास के दौरान बीटा-ए अंतर (स्तनधारियों में सबसे आम) को लुप्त कर देता है। तिब्बती हिरण अब एकमात्र स्तनपायी है जो अधिक ऊंचाई में भी जीवित रहने के साधन के रूप में ग्लोबिन जीन (बीटा एफ) का उपयोग करने के लिए जाना जाता है।

शोधकर्ताओं ने परीक्षण किया कि तिब्बती हिरण में ग्लोबिन जीन (बीटा एफ) कितनी अच्छी तरह से काम करता है। उन्होंने पाया कि यह किसी भी अन्य जानवर की तुलना में ऑक्सीजन की अधिक कमी को सहन कर सकते हैं, जो यह भी बताता है कि कैसे हिरण इतनी अधिक ऊंचाई पर जीवित रहने में सक्षम है।

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