छत्तीसगढ़ के सूरजपुर और बलरामपुर जिले में तीन दिन में तीन हथिनियों के शव मिले हैं। संदिग्ध परिस्थितियों में हुई इन माैतों से न केवल पशु प्रेमी दुखी हैं बल्कि हाथियों में भी उसी प्रकार का क्षोभ देखा जा रहा है। 24 से अधिक घंटे गुजर जाने के बाद भी हाथियों का दल हथिनी के शव को घेरे हुए है।
सूरजपुर में दो दिनों में दो हथिनियों की मौत के बाद तीसरी हाथिनी का शव बलरामपुर के अतोरी के जंगल में मिला है। सूचना के उपरांत घटनास्थल पर पहुंचे वन विभाग के अमले के मुताबिक हथिनी की मौत 3 से 4 दिन पहले हुई थी। वह प्रतापपुर फाॅरेस्ट सर्कल में मृत मिले हाथियों के ही दल की सदस्य थी। एडिशनल प्रिंसिपल चीफ वाईल्ड लाईफ कंजर्वेटर अरुण कुमार पांडे के मुताबिक, तीनों हथिनियों की मौत प्राकृतिक कारणों से ही हुई है, ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। उन्होंने बताया कि असल कारण का खुलासा पोस्टमाॅर्टम रिपोर्ट के बाद ही हो पाएगा।
आपको बता दें बुधवार को प्रतापपुर वन परिक्षेत्र के गणेशपुर जंगल में हथिनी का शव मिला था जबकि एक दिन पहले भी एक अन्य हथिनी की मौत इसी जंगल में हुई थी। दो दिनों में दो हथिनियों की मौत ने विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग गया है।
सरगुजा के जंगलों में पिछले कुछ वर्षों से जंगली हाथियों की उपस्थिति में काफी तेजी देखी गई है और इस जंगल में करीब 240 हाथी तक देखे गए हैं। कोयला खदानों और जंगलों के कटान से लगातार हाथियों के रहवासी क्षेत्र कम हुए हैं और हाथी- मानव संघर्ष में वृद्धि हुई है। वे रिहायसी क्षेत्रों की ओर कूच करने लगे हैं। 3 मई को 20 से अधिक जंगली हाथियों का दल राजधानी रायपुर से 40 किलोमीटर दूर चंपारण में देखा गया था। उन्होंने किसानों के फसल को नुकसान पहुंचाया था।
सरगुजा एवं कोरबा क्षेत्र में तो हाथियों द्वारा फसल और जानमाल की नुकसान पहुंचाने की खबरें आम है। इसी वर्ष अप्रैल में सूरजपुर जिले के प्रतापगढ़ थाना क्षेत्र में हाथियों के एक दल ने कोटेया गांव निवासी 28 साल की विमला को महुआ बीनते वक्त जंगल में कुचल दिया था। 21 मई को कोरबा में एक बुजुर्ग की मौत हाथियों ने कुचलकर कर दी थी। इससे आक्रोशित लोगों ने कई बार हाथियों को मारने की कोशिश की है। हथिनियों के मौत के पीछे इस प्रकार की साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 2013-18 के बीच छत्तीसगढ़ में 250 लोगों को जान हाथियों के कारण गई जबकि 100 हाथियों के मौत का रिकाॅर्ड भी इसी राज्य के नाम है। हालांकि भूपेश बघेल सरकार ने मानव-हाथी संघर्ष में कमी लाने के लिए लेमरू एलिफेंट रिजर्व बनाने की घोषणा की थी लेकिन उससे कोई खास फायदा होता दिख नहीं रहा है।