भोपाल में विधायक आवास बनने की योजना का विरोध बढ़ता ही जा रहा है। इसकी वजह है आवास बनाने के लिए प्रस्तावित जमीन जहां तकरीबन 8 एकड़ में कुदरती जंगल पसरा हुआ है। डाउन टू अर्थ ने हाल ही में इस स्थान पर सैकड़ो पेड़ कटने का मुद्दा उठाया था। भोपाल में विधायक आवास के इस प्रस्ताव का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है।
शहर के पर्यावरणप्रेमियों को इस बात की चिंता सता रही है कि भोपाल के बीचोबीच इस तरह का कुदरती जंगल भविष्य में बनना मुश्किल है। जानकार बताते हैं कि वर्ष 1961 तक यह इलाका जंगल के दायरे में आता था और घने पेड़ के अलावा यहां बाघ जैसे जानवर भी रहते थे। धीरे-धीरे विकास होता गया लेकिन उस समय के कई पुराने पेड़ यहां अभी भी मौजूद हैं। विधानसभा के ठीक पीछे स्थित इस जंगल पर पहली बार वर्ष 2016 में आवासीय भवन बनाने की योजना बनी और उस वक्त एक हजार से अधिक पेड़ काट दिए गए।
इस निर्माण को लेकर विधानसभा के अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने डाउन टू अर्थ सा बातचीत में इसे नियम के अनुसार बताया था, हालांकि शहर के पर्यावरणविद् और पर्यावरणप्रेमी इस फैसले को पर्यावरण की दृष्टि से गंभीर बता रहे हैं। शहर के वरिष्ठ आर्किटेक्ट अजय कटारिया के मुताबिक भोपाल अब और पेड़ों की कटाई नहीं झेल सकता है। शहर में अब सिर्फ 11 प्रतिशत हरियाली बची है और आने वाले समय में यह घटेगा ही।
विधायक आवास से होगा मास्टर प्लान का उल्लंघन
मास्टर प्लान 2008 में तत्काली कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में यह नियम बना था कि 8 प्रतिशत से अधिक ढलान होने की स्थिति में निर्माण कार्य नहीं किया जा सकेगा। इस प्लान में शहर के 11 पहाड़ियों का जिक्र है जिसमें विधानसभा के पीछे का हिस्सा जो कि अरेरा हिल्स पर स्थित है आता है। अजय कटारिया बताते हैं कि सिर्फ मास्टर प्लान ही नहीं, इस निर्माण से हरियाली और शहर के ट्रैफिक पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। यह इलाका पुराने और नए शहर के बीच में है और विधायकों की आवाजाही से रोज जाम लगा करेगा।
खराब हो रही भोपाल की हवा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एयर क्वालिटी इंडेक्स में 22 अक्टूबर को शहर का एक्यूआई 241 तक पहुंच गया था और यह देश में शीर्ष 11 शहरों में शामिल था। शहर में इस दिन पीएम 2.5 की मात्रा अधिकतम 308 तक पहुंची थी।
आम नागरिक, पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व मुख्यमंत्री तक विरोध में
जंगल काटने की बात सामने आने पर आम नागरिक सोशल मीडिया के जरिए अपना विरोध जता रहे हैं। पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच ने विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति को एक पत्र लिखकर इस प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की। श्रीमति बुच ने सुझाव दिया कि छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद विधानसभा के पास 30 आवास हमेशा बच जाते हैं। शहर में अन्य जगह भी विधायक आवास बने हैं लेकिन उनमें कोई रहता नहीं, बल्कि कई स्थानों पर व्यवसायिक गतिविधियां हो रही है। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंगलुरु के रिसर्च का हवाला देते हुए भोपाल की हरियाली पर संकट बताया और पत्र में लिखा कि समुचित प्रबंधन से अभी उपलब्ध आवास से ही विधायकों की जरूरत पूरी हो जाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि पर्यावरण को संभावित नुकसान देखते हुए उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से बात कर इस प्रोजेक्ट को आगे न बढ़ाने का आग्रह किया था। शिवराज सुझाते हैं कि मौजूद विधायक विश्राम गृह का रिडेवलपमेंट और बहुमंजिला भवन बनाकर पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए विधायकों की सुविधा भी बेहतर की जा सकती है।
भोपाल अब पहले जितना हरा-भरा नहीं रहा
शहर के पर्यावरण प्रेमी और वरिष्ठ नागरिक राजेंद्र कोठारी ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में भोपाल के भविष्य पर चिंता जाहिर की। वे कहते हैं कि इस शहर को एक समय ग्रीन कैपिटल के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की रिपोर्ट बता रही है कि 2030 तक शहर में केवल 4 फीसदी हरियाली रह जाएगी। वे कहते हैं कि जिन्हें सांस लेने में दिक्कत नहीं हो रही उन्हें अभी यह बात समझ नहीं आ रही है। दिल्ली में जो इसे झेल रहे हैं वे अब विदेश जाने की तैयारी भी करने लगे हैं। भोपाल के नागरिक होने के नाते हम ये चाहते हैं कि पेड़ों को बचाया जाए, क्योंकि मकान को कहीं भी खड़े हो सकते हैं लेकिन पेड़ रातोंरात नहीं तैयार किए जा सकते। नए पेड़ लगाने के 50 साल बाद फायदा होगा।
हालांकि मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवानदास ईसरानी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वे 2016 में जब प्रोजेक्ट बंद किया गया था, तब इस पद पर थे। उन्होंने इस प्रोजेक्ट का काफी करीब से जाना है। वे कहते हैं कि उसी वक्त सारे पेड़ कट गए थे और इस समय वहां खाली जमीन है। अगर यह प्रोजेक्ट बनता है तो इसके तहत ग्रीन बिल्डिंग बनेगी जिसमें 52 फीसदी हरियाली होगी। ईसरानी बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट से हरियाली बढ़ेगी न कि घटेगी और इस पर विवाद बेमतलब का है।