जैसा नाम, वैसा काम। यह कहावत राजस्थान के जोधपुर जिले में फलौदी के पास बसे छोटे-से गांव खीचन में एकदम सटीक बैठती है। यह गांव परिंदों को लुभाने और उनसे दोस्ती के लिए मशहूर है। पौ फटने के साथ ही कुरजां (डेमोइसेल क्रेन) की आवाज गांव में गूंजने लगती है और इसी चहचहाहट से गांव वालों की आंख खुलती है। ये पक्षी गांव में बने चुग्गा घर में दाना चुगने आते हैं। मध्य एशिया से लगभग 5,000 किलोमीटर की दूरी तय करके ठंड में प्रवास (सितंबर से मार्च) के लिए गुजरात और राजस्थान पहुंचने वाले इन विदेशी मेहमानों के लिए चुग्गा घर में सैकड़ों किलो दाना डाला जाता है। गांव के लोगों का पक्षियों से यह आत्मीय रिश्ता चार दशक पहले बना और समय के साथ प्रगाढ़ होता गया है। 1979 में इसकी शुरुआत स्थानीय निवासी रतन लाल मालू ने कौवों और कबूतरों को खुले मैदान में दाना डालकर की थी। तब से दाने और पक्षियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ग्रामीणों ने 1983 तक पक्षियों को कुत्तों के हमले से बचाने के लिए चुग्गा घर की चारदीवारी और दाना रखने के लिए भंडारगृह बना दिया। तभी से गांव में स्थानीय जैन समुदाय की मदद से पक्षियों को दाना डालने की परंपरा जारी है। डाउन टू अर्थ के फोटो पत्रकार विकास चौधरी ने इस अनोखी परंपरा को तस्वीरों में कैद किया
खीचन गांव में करीब 5,000 वर्गमीटर के मैदान को चुग्गा घर में तब्दील किया गया है। करीब चार दशकों से यहां परिंदों के आने का सिलसिला जारी है। पक्षी यहां बड़े ही अनुशासनात्मक ढंग से दाना चुगते हैं। पक्षियों का एक झुंड दान चुगने बाद उड़ जाता है। इसके तुरंत बाद दूसरा झुंड पहुंच जाता है
कुरजां मध्य एशिया की कड़ाके की ठंड से बचने के लिए इस मौसम में भारत और अफ्रीका में प्रवास के लिए रुख करते हैं। राजस्थान और गुजरात का दलदली क्षेत्र उनकी पसंदीदा जगह है। हालांकि मध्य एशिया की तरह यहां ये अंड़े नहीं देते। दुनियाभर में इस पक्षी की आबादी करीब ढाई लाख है। सर्दियों के मौसम में ये बड़ी संख्या में भारत में डेरा डालते हैं
खीचन भले ही कुरजां पक्षियों के लिए जाना जाता हो लेकिन ग्रामीणों का प्यार केवल इस पक्षी तक ही सीमित नहीं है। यहां पूरे साल पक्षियों को दाना डाला जाता है। पानी और दाने की उपलब्धता के कारण पूरे साल यहां पक्षियों का तांता लगा रहता है। ठंड में तो दाने की खपत अधिकतम प्रतिदिन 1,000 किलो तक पहुंच जाती है
कुरजां सूर्य की पहली किरण के साथ अपने शीतकालीन प्रवास स्थल से खीचन की उड़ान भरते हैं। इन पक्षियों को देखने के लिए सितंबर से मार्च के दौरान यहां स्थानीय पक्षी प्रेमियों, विदेशी पर्यटकों और वन्यजीव फोटोग्राफरों का जमघट लगा रहता है
गांव के पश्चिमी सीमा पर बना तालाब कुरजां की प्यास बुझाता है। दाना चुगने के बाद पक्षी अलग-अलग झुंडों में यहां पहुंचते हैं और सर्दियों की गुनगुनी ध्ूप का आनंद लेने के बाद शाम तक रात्रि प्रवास के लिए अपने-अपने ठिकानों में पहुंचने लगते हैं
खीचन निवासी सेवाराम माली परिहार पिछले 25 वर्षों से चुग्गा घर की देखरेख में लगे हैं। उनका घर चुग्गा घर के नजदीक ही है। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले सेवाराम को पक्षियों की सेवा करने में आनंद मिलता है। उनका कहना है कि गांव में बिजली के खुले तार पक्षियों के लिए खतरा बन गए हैं। इनमें उलझकर बहुत से पक्षी घायल हो रहे हैं और लगातार मारे जा रहे हैं। पक्षियों को बचाने के लिए वह तारों को भूमिगत करने के प्रयासों में जुटे हैं। बिजली विभाग ने 2021 में उन्हें एक एंबुलेंस भेंट की थी। इसकी मदद से वह करीब 2,500 पक्षियों का इलाज कर चुके हैं