सांप के काटने से लाखों जिंदगियां बचा सकता है यह मॉडल

यह मॉडल अलग-अलग क्षेत्रों और अलग-अलग मौसमों में सांप के काटने के पैटर्न का अनुमान लगाने में बहुत सटीक साबित हुआ है।
Photo : Wikimedia Commons, King Cobra
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दुनिया भर में हर साल लगभग 18 लाख लोग सांप के काटने के शिकार होते हैं, जिसमें से लगभग 94 हजार लोग मारे जाते हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, विशेष रूप से दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में, सांपों के काटने को मृत्यु का एक प्रमुख कारण माना जाता है। इनमें विशेषकर किसान होते हैं जो अपने खेतों में अक्सर सांपों का सामना करते हैं।  

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक सांपों के काटने को 50 फीसदी कम करने के लिए एक रणनीतिक योजना शुरू की है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण आधार तथा इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक शोधों को बढ़ावा देना है।

तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं सहित एक अंतरराष्ट्रीय शोध समूह ने हाल ही में सांपों के काटने के अनुमान लगाने के लिए एक अनूठा सिमुलेशन मॉडल बनाया है, जो समय और स्थान दोनों में किसानों और सांपों के परस्पर प्रभाव की बेहतर समझ पर आधारित है।

मॉडल का उद्देश्य विभिन्न स्थानों पर सांप के काटे जाने की आशंका को निर्धारित करना है, जिनमें चावल के खेतों से लेकर चाय के बागान तक शामिल हैं, इसनें अलग-अलग समय पर होने वाली घटनाओं जिनमें वर्ष के महीनों और दिनों के घंटे तक हैं।

अध्ययन श्रीलंका में व्यापक शोध और आंकड़ों के आधार पर किया गया है, जहां हर साल लगभग 30 हजार लोग सांप के काटने के शिकार होते हैं, जिसमें से लगभग 400 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।

अध्ययन में 6 प्रकार के सांपों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो दुनिया के सबसे विषैले सांपों में शामिल हैं जिनमें कोबरा, रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर, हंप-नोज सांप, कॉमन क्रेट और सीलोन क्रेट शामिल हैं। इन सबसे उन किसानों का सामना होता है जो तीन सबसे आम फसलें उगाते हैं जिनमें चावल, चाय और रबड़ की फसल शामिल है।

मॉडल इस बात का अनुमान लगाता है कि रसेल वाइपर फरवरी और अगस्त के दौरान चावल के खेतों में होते हैं जहां ये लोगों को अक्सर काटते हैं, जबकि हंप-नोज सांप अप्रैल और मई में जब रबर का वृक्षारोपण होता है ये उस जगह पर पाए जाते हैं।

मॉडल यह भी निर्धारित करता है कि अध्ययन किए गए क्षेत्र के दक्षिणपूर्वी हिस्से में, सांप के काटने की सबसे अधिक घटनाओं के लिए रसेल वाइपर को जिम्मेदार माना जाता है। यह  दुनिया के सबसे खतरनाक सांपों में से एक माना जाता है, जबकि इस क्षेत्र के अन्य हिस्सों में कम घातक हंप-नोज सांपों के काटने की घटनाएं सबसे आम हैं। 

ईयाल गोल्डस्टीन बताते हैं हमने यह पहला अनूठा मॉडल बनाया है, जिसमें दोनों पक्षों सांपों और मनुष्यों के व्यवहार पैटर्न को शामिल किया गया है। विभिन्न समय और स्थानों पर खतरों की पहचान करना और उनके बारे में चेतावनी देना इस मॉडल का उद्देश्य है।

उदाहरण के लिए, मॉडल कम खतरे और अधिक खतरे वाले क्षेत्रों के बीच अंतर कर सकते हैं, अंतर जो प्रति 1 लाख लोगों पर सांपों के काटने की संख्या से दोगुना हो सकता है। यह शोध प्लोस नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

डॉ. मर्रे बताते हैं कि सांप और लोग दोनों अपने काम के लिए दिन के अलग-अलग समय पर, अलग-अलग मौसमों और विभिन्न प्रकार की जगहों में जाते हैं। मॉडल उन सभी को कैप्चर करता है जो उन क्षेत्रों में लोगों और सांपों के बीच सामना होने की आशंका होती है।

डॉ. इवामुरा जोर देकर कहते हैं कि हमारा दृष्टिकोण गणितीय रूप से सांपों और मनुष्यों के परस्पर प्रभाव का विश्लेषण करना है। यह तंत्र को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण है जो सांपों के काटने का कारण बनता है।

सामाजिक और आर्थिक खतरे वाले कारकों पर, हमने पारिस्थितिक पहलुओं को चुना है - जैसे कि सांपों की गतिविधि और निवास स्थान, जलवायु और वर्षा का प्रभाव और किसानों और सांपों के संबंधित व्यवहार, जिसमें एक दूसरे से सामना होने का अनुमान सरलता से लगाया जा सकता है।

श्रीलंका में मौजूदा आंकड़ों के विरुद्ध, मॉडल अलग-अलग क्षेत्रों और अलग-अलग मौसमों में सांप के काटने के पैटर्न का अनुमान लगाने में बहुत सटीक साबित हुआ है। अब शोधकर्ता उन जगहों पर मॉडल को लागू करने की सोच रहे हैं जहां अभी तक सांपों के काटने के बारे में सटीक आंकड़े नहीं हैं।

साथ ही इसका उपयोग जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगाने के लिए करेंगे - जैसे बढ़ती वर्षा, सांपों की अधिक गतिविधि के लिए, साथ ही साथ भूमि उपयोग में परिवर्तन और सांपों के आवास आदि।

डॉ. इवामुरा ने निष्कर्ष में कहा कि हमारा मॉडल सांपों के काटने की घटनाओं को कम करने की नीतियों के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने और चेतावनी के लिए एक उपकरण के रूप में काम करने, जागरूकता बढ़ाने और मानव जीवन को बचाने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, हम इस अध्ययन को एक व्यापक परियोजना में पहले चरण के रूप में मानते हैं।

भविष्य में हम वास्तविक दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्रकृति संरक्षण नीतियों दोनों का समर्थन करने के लिए मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष के लिए अधिक जटिल मॉडल विकसित करेंगे।

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