ऋषिकेश के खांड गांव की लक्ष्मी धनै गले के पास लगे गुलदार के पंजों के निशान दिखाती हैं। वे कुछ अन्य महिलाओं के साथ जंगल से घास लाने गई थीं, जब घात लगाकर बैठे गुलदार ने अचानक गले पर झपट्टा मारा। बीते वर्ष दिसंबर की बात है। लक्ष्मी कहती है कि उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया था। साथ की महिलाओं ने शोर मचाया और तालियां बजायी। उनके हाथों में दराती भी थी। लक्ष्मी कहती है, शायद मेरी तकदीर अच्छी थी कि तालियों की आवाज़ से गुलदार भाग गया। मां का ये किस्सा उसके दो छोटे बच्चे परदे की ओट से सुन रहे थे।
राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर रेंज में रायवाला क्षेत्र का ये गांव जंगली जानवरों, ख़ासतौर पर गुलदार के हमले से प्रभावित है। लक्ष्मी कहती है कि उस दिन के बाद उन्होंने घास के लिए जंगल जाना छोड़ दिया। उन महिलाओं ने भी, जो लक्ष्मी के साथ उस रोज जंगल से मौत के मुंह से बचकर आईं। लेकिन ऐसा नहीं है कि गांव की सारी महिलाओं ने जंगल जाना छोड़ दिया हो। मवेशियों के चारे का इंतजाम करने जंगल जाना ही पड़ता है। बाजार से लाया गया चारा उनके घर के बजट पर भारी पड़ता है। सिर्फ रायवाला क्षेत्र के गांवों में ही गुलदार के हमले में पिछले पांच वर्षों में करीब 25 लोगों की जान जा चुकी है। घायलों की संख्या इससे कहीं अधिक है।
जंगल से सटे गांवों में वन्य जीवों का खतरा कई तरह से होता है। कभी व्यक्ति की जान पर बन आती है। कभी खेत का नुकसान होता है। तो कभी जंगली जानवर भी खतरे की जद में आ जाता है।
ऋषिकेश के ग्राम सभा खदरी खड़क माफ में धान की फसल लहलहा रही है। इसी फसल से किसान परिवारों के कुछ महीनों का खर्च चलेगा। फसल की सुरक्षा को लेकर खेत में जगह-जगह जुगाड़ से बने नाइट लैंप दिखाई देते हैं। जिन्हें रात भर रोशन किया जाएगा। बारिश से लैंप बुझ न जाए, इसलिए कुछ जगह इन पर छतरियां भी तनी दिखाई देती हैं।
जंगली जानवर फसल को नुकसान न पहुंचाए इसलिए किसान और पर्यावरण कार्यकर्ता विनोद जुगलान खेत में पेड़ पर बनाए मचान पर ही रात गुजारते हैं। खेतों की बीच बनी पगडंडियों पर संभल कर चलते हुए वे हाथी के पांवों के निशान दिखाते हैं। जिनमें पानी भरा है। रात के समय गजराज ने उनके खेतों में प्रवेश किया, कुछ फसल रौंद दी, कुछ चट कर गए। थोड़ी ही दूरी पर सूअरों के झुंड से तहस-नहस फसल भी है। किसान की कई दिक्कतें हैं। बिजली गिरने से पूरी तरह जल गई धान भी है। जिसमें एक भी दाना नहीं बचा। जानवरों के आतंक से बचने के लिए समय से पहले ही धान की कटाई भी कर दी है। वे कहते हैं कि वन्यजीवों के आतंक के चलते खेती हमारे लिए मुनाफे का सौदा नहीं बन पाती।
मुंबई समेत कई जगह नौकरी के बाद रिवर्स माइग्रेशन करने वाले विनोद जुगलान किसान होने के साथ-साथ पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर भी सक्रिय रहते हैं। ग्रामसभा खदरी खड़कमाफ में हाथियों का आतंक है। वन विभाग के साथ मिलकर गांव के मुहाने पर इन्होंने “वाइल्ड लाइफ एंटी डिस-एमिनेटर” मशीन लगाई। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक द्वारा तैयार की गई ये मशीन सौर ऊर्जा से चलती है। इसमें लगे सेंसर रात के समय जानवर की आहट पाते हैं तो हूटर बज जाता है। हूटर से निकलती तेज़ आवाज़ से जानवर डर जाते हैं। अभी ये मशीन 30 मीटर की दूरी तक जानवर को मौजूदगी भांप लेती है। हूटर के साथ ही मशीन के दोनों ओर लगी बल्ब से रोशनी निकलने लगती है। जिससे जानवर चौंक जाता है और वापस चला जाता है। आवाज़ और रोशनी जानवर को आगे बढ़ने से रोकने के लिए साइकोलॉजिकल बैरियर जैसा काम करते हैं।
विनोद बताते हैं कि गांव के बाहर इस मशीन को लगाने का प्रयास सफल रहा। हाथियों ने गांव की ओर रुख़ नहीं किया। लेकिन वे खेतों की ओर आ धमके। इसके बाद मशीन को गांव से हटाकर खेत में हाथियों के प्रवेश के रास्ते में लगा दिया। ये खेत गंगा और सौंग नदी के संगम पर हैं। पानी पीने आए हाथी अक्सर ही इस ओर बढ़ आते थे।
करीब 16-17 हजार रुपये की लागत से तैयार हुई ये सोलर मशीन करीब एक महीना पहले वन विभाग के डीएफओ राजीव धीमान ने लगवाई है। प्रदेश में इस तरह का ये पहला प्रयोग है। इस दौरान ये भी देखा जा रहा है कि जानवर को रोकने के लिए मशीन की क्षमता और तकनीक कैसे बढ़ाई जा सकती है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक मशीन के नतीजों का परीक्षण करेंगे और इसे बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे।
उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश में मानव-वन्यजीव संघर्ष चिंता की वजह बना हुआ है। इससे निपटने के लिए नेशनल एक्शन प्लान लाने की तैयारी भी की जा रही है। 18 और 19 सितंबर को इस सिलसिले में ऋषिकेश में देशभर के वनाधिकारियों की बैठक हुई। इसके साथ ही राज्य के छह वनाधिकारियों का एक दल मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के इंतजामों को देखने-समझने कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के दौरे पर भी है। ताकि वन्यजीव और इंसानों के बीच संबंध बेहतर हो सकें।