10 हजार साल पहले विलुप्त हो चुके भेड़ियों के पुनर्जन्म का सच!

डेयर वूल्फ भेड़ियों की एक प्रजाति थी, जो मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका में, लगभग 1,25,000 से 10,000 साल पहले पाए जाते थे और विलुप्त हो चुके हैं

यह आवाज 10,000 सालों बाद इंसानों द्वारा सुनी गई है! मिलिए पहले डेयर वूल्फ यानी ऐसे खतरनाक भेड़िया से, जो 10,000 सालों के बाद जीवित हुआ है। वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसा करके उन्होंने विलुप्त हो रही प्रजातियों को वापस लाने में सफलता हासिल की है।

रोमुलस और रेमस, वीडियो में दिखाए गए दो डेयर वूल्फ को कोलॉसल नामक बायोटेक कंपनी द्वारा पुनर्जीवित किया गया है। यह कंपनी विलुप्त होने वाली प्रजातियों को फिर से जीवित करने का दावा करती है।

लेकिन उन्होंने एक विलुप्त प्रजाति को 10,000 सालों बाद फिर से कैसे जीवित किया? क्या यह सच में डेयर वूल्फ है? और क्या ऐसा करना नैतिक है? आइए जानते हैं -

डेयर वूल्फ क्या हैं?

डेयर वूल्फ भेड़ियों की एक प्रजाति थी, जो मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका में, लगभग 1,25,000 से 10,000 साल पहले पाए जाते थे और विलुप्त हो चुके हैं।

ये शिकारी थे, जो दूसरे प्लेस्टोसीन युग के कनीड्स जैसे कुत्ते और उनकी समकक्ष प्रजाति से ज्यादा  मजबूत थे।

हालांकि, डेयर वूल्फ की अपनी अलग वंशावली थी और यह ग्रे वुल्फ से अलग थे। ग्रे वुल्फ और डेयर वूल्फ के बीच आखिरी सीधा संपर्क 6 मिलियन साल पहले था!

तो, यह कैसे हुआ कि यह विलुप्त जानवर फिर से जीवित हो गया?

आइए सबसे पहले कोलॉसल के बारे में जानते हैं। कोलॉसल, एक बायोटेक कंपनी है, जो अमेरिका के टेक्सास के शहर डलास में स्थित है, जिसने 1 अक्टूबर 2024 को विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को डि-एक्सटिंक्शन के विज्ञान के माध्यम से वापस जीवन में लाने में सफलता हासिल की। डि-एक्सटिंक्शन एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा वैज्ञानिकों का प्रयास है कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को वापस लाया जाए।

लेकिन उन्होंने ऐसा कैसे किया?

डि-एक्सटिंक्शन के 8 कदम:

1. डेयर वूल्फ के दांत और 72,000 साल पुराने खोपड़ी के नमूनों से डीएनए का संग्रह और पृथक्करण।

2. दोनों नमूनों से पूरे जीनोम अनुक्रम ( यानी डीएनए की पूरी लिस्ट) जनरेट करना।

3. डेयर वूल्फ के सबसे करीबी जीवित रिश्तेदार, ग्रे वुल्फ के जीनोम से जीनोम अनुक्रम को मिलाना।

4. ग्रे वुल्फ से खून निकालना, फिर विशिष्ट कोशिकाओं को पृथक करना और क्लोनिंग करना।

5. ग्रे वुल्फ के जीनोम को डायरे वुल्फ के जीनोम के साथ मिलाना और उनके बीच अंतर को नोट करना।

6. इन अंतर को छांटना।

7. जीनोम इंजीनियरिंग करके ग्रे वुल्फ के जीनोम के हिस्से को बदलना, इसमें ग्रे वुल्फ के डीएनए के हिस्से को निकाल कर डेयर वुल्फ का डीएनए डालना।

8. डायरे वुल्फ की कोशिका को एक भेड़िया के अंडाणु में डालना, जिसमें से उस भेड़िया का डीएनए निकाल दिया गया हो।

यह कोशिका एक भ्रूण बन जाती है, जो डेयर वूल्फ है।

क्या यह डेयर वूल्फ है या नहीं?

हालांकि ये सभी कदम सफल रहे हैं, फिर भी डेयर वूल्फ की वास्तविकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। न्यू साइंटिस्ट नामक पत्रिका में एक लेख इसे सिर्फ एक समानता बताया गया है। कोलॉसल की प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी बेत शैपिरो ने न्यू साइंटिस्ट से कहा कि ग्रे वुल्फ और डेयर वूल्फ का डीएनए 99.5% समान है। और, "चूंकि ग्रे वुल्फ का जीनोम लगभग 2.4 बिलियन बेस पेयर्स लंबा है, फिर भी लाखों बेस पेयर्स का अंतर बाकी रहता है।" डीएनए के बेस पेयर का मतलब है डीएनए की दोहरी संरचना में दो पूरक नाइट्रोजनस बेस (एडेनिन, थाइमिन, गुआनिन और साइटोसिन) का एक जोड़ा।

डि-एक्सटिंक्शन का नैतिक पक्ष

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस में प्रकाशित "फिलॉसफी और एथिक्स ऑफ डि-एक्सटिंक्शन" नामक निबंध में लेखक जे ओडेनबॉघ ने दोनों पक्षों का तर्क दिया है।

डि-एक्सटिंक्शन के पक्ष में पहला तर्क देते हुए वह  लिखते हैं, "जब एक नैतिक एजेंट किसी नैतिक विषय को नुकसान पहुंचाता है, तो पूर्व को बाद में मुआवजा देना चाहिए।" वह विलुप्त हो चुकी वूल्ली मैमथ का उदाहरण देते हैं।

इसके खिलाफ तर्क यह है कि "हम विलुप्त प्रजातियों को मुआवजा नहीं देते क्योंकि हमने उन्हें विलुप्त नहीं किया।"

डि-एक्सटिंक्शन के खिलाफ एक गंभीर तर्क पशुओं के कल्याण से जुड़ा है। "डि-एक्सटिंक्शन अनावश्यक पीड़ा का कारण बनेगा, इसलिए यह नैतिक रूप से गलत है।" लेखक ने 2003 में क्लोन किए गए बुकार्डो  का उदाहरण दिया, जो अपनी विकृत फेफड़ों के कारण बहुत कम समय तक पीड़ा में जीता रहा।

निष्कर्ष

डेयर वूल्फ का मामला बुकार्डो से अलग है। वे स्वस्थ हैं और एक 2000 एकड़ के गुप्त क्षेत्र में निरंतर निगरानी में हैं। उनका उज्जवल भविष्य लगता है और कोलॉसल ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। लेकिन क्या यह कंपनी के लिए वूल्ली मैमथ, डोडो और तस्मानियाई टाइगर के मामले में भी सफल साबित होगा? यह समय ही बताएगा।

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