जंगल से भरपूर बहराइच के गन्ना खेत अब बन रहे वन्यजीवों का ब्रीडिंग ग्राउंड

दो दशक पहले बहराइच में कुल फसल क्षेत्र का महज 3 फीसदी ही गन्ना क्षेत्र था, जो कि अब बढ़कर 35 फीसदी हो गया है
गन्ने के खेत में आमदखोर हुए वन्यजीव के पगमार्क तलाशते वन्यअधिकारी, फोटो : सीएसई
गन्ने के खेत में आमदखोर हुए वन्यजीव के पगमार्क तलाशते वन्यअधिकारी, फोटो : सीएसई
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उत्तर प्रदेश में बहराइच जिले के महसी क्षेत्र में जिन आदमखोर जानवरों की तलाश गांव और वन विभाग मिलजुल कर कर रहा है। उसके पंजों के निशान गन्ने के खेतों में तलाशे जा रहे हैं। हालांकि, इंसानी हलचल ने वन्य क्षेत्रों और नदी के कछारों पर जो व्यावसायिक खेती के निशान छोड़े हैं वह अब उन्हीं के लिए घातक होने लगे हैं।  

महसी क्षेत्र गंगा की प्रमुख सहायक नदी घाघरा के बाढ़ से भी प्रभावित है और आबादी का दबाव नदी के डूब क्षेत्र तक है। नदी के किनारों पर कई वर्षों से खेती की जा रही है। खासतौर से गन्ने की खेती का विस्तार काफी तेजी से होता जा रहा है। गन्ने के खेत न सिर्फ वन्यजीवों के लिए ब्रीडिंग ग्राउंग बन रहे हैं बल्कि वह वन्यजीवो के लिए शिकार के बाद छिपने के लिए सर्वोत्तम ठिकाना भी बन रहा है। 

डाउन टू अर्थ ने अपने विश्लेषण में पाया बहराइच में बीते दो दशक में गन्ने के रकबे में 350 फीसदी तक बढोत्तरी हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बहराइच में 2003-2004 में गन्ने की खेती का रकबा 18989 हेक्टेयर था जो कि कुल फसल क्षेत्र का 3.4 फीसदी था। अब दो दशक बाद 2023-24 में गन्ने का रकबा करीब 80 से 85 हजार हेक्टेयर क्षेत्र तक पहुंच चुका है।

बहराइच किसान विज्ञान केंद्र के इंचार्ज डॉ शैलेंद्र सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया “बहराइच में गन्ने की खेती कुल फसल क्षेत्र का 30 से 35 फीसदी तक हिस्सेदारी करती है।”

दो दशक में करीब 4 गुना से ज्यादा की बढोत्तरी करने वाली गन्ने की फसल पहले इलाकों में नहीं थी। सिंह के मुताबिक यह एक बड़ा कारण है वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष के बढ़ने का। वह बताते हैं कि किसान नगदी के कारण इस फसल के आकर्षण में रहता है, यहां 4 से ज्यादा चीनी मिलें भी हैं जिससे किसान इस फसल को नहीं छोड़ना चाहता। हालांकि, गन्ने की खेती का दबाव उन नाजुक स्थानों पर पहुंच गया है जहां वन्यजीव आसानी से आबादी में घुस जाते हैं।

महसी के औराही गांव के 58 वर्षीय सैयद अली बताते हैं कि कोई 20 साल पहले इलाके में इतना गन्ने की खेती नहीं होती थी। लोगों ने नदी के कछार तक गन्ना बोना शुरु कर दिया है। गन्ने के कछार में भेड़िए की मांदे हैं। इसलिए वह अक्सर खेतों में दिखाई देते हैं। मैने खुद कई बार भेड़िए को खेत में देखा है। इससे पहले वे बकरी और आवारा पशुओं को अपना शिकार बनाते रहे हैं।

महसी क्षेत्र के ही मुकेरिया गांव में सितंबर महीने में भेड़िए ने एक बकरी और एक भैंस को अपना शिकार बनाया। भेड़िए जब ऐसे जानवरों पर हमला करते हैं तो वह उनके लीवर और अन्य ऑर्गन को खा जाते हैं। गांव वालों ने वीडियो में भी खेतों के बीच भागते हुए भेड़िए की तस्वीर देखी है।

गांव के ही सदस्य राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि यूं तो गांव में भेड़ियो को लेकर न ही कोई चर्चा कभी होती थी और न ही ग्रामीण उसे दुश्मन मानते थे। यह डर जरूर बनी रहती थी कि उनके पशुधन को नुकसान न पहुंचे। हालांकि, अब ग्रामीण भी आक्रोशित हैं और वह भेड़िए या उसके जैसे दिखने वाले जानवरों पर हमालवर हो रहे हैं। यह वन्यजीव के लिए खतरनाक है।

राकेश कुमार गौतम बताते हैं कि वन्यजीव को खेतों के बीच पकड़ने के लिए वन विभाग इसलिए ही मना करते हैं क्योंकि ऐसे उन जीवों को नुकसान हो सकता है। हालांकि, अब ग्रामीण इस बात को शायद ही मानेंगे।  

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