नेपाल में भी वन्यजीवों पर मंडराया बढ़ते प्लास्टिक का खतरा, गैंडों की लीद में मिले प्लास्टिक के अंश

वैज्ञानिकों को नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में एक सींग वाले गैंडों की लीद में प्लास्टिक कचरे के अंश मिले हैं। जो उनके स्वास्थ्य और अस्तित्व को नुकसान पहुंचा सकते हैं
नेपाल के बर्दिया राष्ट्रीय उद्यान में विचरता एक सींग वाला गैंडा; फोटो: आईस्टॉक
नेपाल के बर्दिया राष्ट्रीय उद्यान में विचरता एक सींग वाला गैंडा; फोटो: आईस्टॉक
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दुनियाभर के लिए प्लास्टिक एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। सिर्फ इंसानों में ही नहीं, बल्कि वन्यजीवों में आए हर दिन इसके पाए जाने के सबूत सामने आ रहे हैं। ऐसा ही कुछ नेपाल में भी सामने आया है। वैज्ञानिकों को नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में एक सींग वाले गैंडों की लीद में प्लास्टिक कचरे के अंश मिले हैं। जो उनके स्वास्थ्य और अस्तित्व को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

गौरतलब है कि एक सींग वाले गैंडों को भारतीय गैंडे (राइनोसेरस यूनिकॉर्निस) के नाम से भी जाना जाता है। गेंडों की यह विशाल प्रजाति केवल पूर्वोत्तर भारत और नेपाल के तराई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती है।

इन गैंडों की पहचान लगभग 8 से 25 इंच लंबे काले मजबूत सींग और सिलवटों से भरी भूरी त्वचा से होती है। आईयूसीएन के मुताबिक आज दुनिया में इस प्रजाति के केवल 2,100 से 2,200 वयस्क ही शेष बचे हैं। इस प्रजाति के एक व्यस्क की लम्बाई करीब 10 से 12.5 फीट और वजन 1,800 से 2,700 किलोग्राम होता है।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान जोकि इन एक सींग वाले गैंडों का घर भी है हर साल मानसून के मौसम में बाढ़ से जूझ रहा होता है। जून से अगस्त के बीच होती बारिश के चलते यहां बहने वाली नदियों में बाढ़ आ जाती है। इस बाढ़ की वजह से यह उद्यान पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए वर्जित क्षेत्र बन जाता है।

लेकिन साथ ही यह बाढ़ अपने साथ एक अनचाहा मेहमान भी लाती है, जो इस पार्क में बढ़ते प्रदूषण की वजह बनता हैं। यह मेहमान और कोई नहीं प्लास्टिक कचरा है। जब बाढ़ का पानी उतरता है तो प्लास्टिक की बोतलें, थैलियां और पाउच नदी के किनारों को ढंक लेते हैं, जहां यह गैंडे घास चरने आते हैं। इसके साथ ही इस उद्यान में आने वाले पर्यटक भी कचरा फैलाते हैं जो बढ़ते प्लास्टिक कचरे की वजह बन रहा है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चितवन राष्ट्रीय उद्यान में 2020, 2021 और 2022 में लगातार तीन वर्षों तक मानसून के दौरान और उसके बाद में इससे जुड़े आंकड़े एकत्र किए हैं। शोध के दौरान वैज्ञानिकों को गैंडों की लीद के 258 ढेरों में से 10.1 फीसदी में प्लास्टिक के अंश मिले हैं।

जर्नल ग्लोबल इकोलॉजी एंड कंजर्वेशन में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि गैंडों की लीद के सबसे ज्यादा नमूनों में प्लास्टिक 2021 के दौरान पाया गया था। वहीं 2020 में केवल सात फीसदी और 2022 में दस फीसदी नमूनों में प्लास्टिक के अंश मिले थे।

इसी तरह उद्यान के मुख्य क्षेत्र से लिए कहीं ज्यादा नमूनों में प्लास्टिक मिला था। जहां करीब 18 फीसदी नमूनों में प्लास्टिक के कण मिले थे जबकि उसकी तुलना में फ्रिंज जोन में केवल छह फीसदी नमूनों में प्लास्टिक के अंश मिले थे।

वैज्ञानिकों को लीद में कम से कम आठ तरह के प्लास्टिक के अंश मिले हैं, वहीं दो की पहचान नहीं हो पाई है। इनमें कोला की बोतल का ऊपरी हिस्सा, प्लास्टिक की गेंदें, तंबाकू के पाउच, प्लास्टिक बैग, बिस्किट के पैकेट, रबर बैंड, चॉकलेट के पैकेट और शैम्पू के पैकेट जैसे प्लास्टिक के हिस्से मिले हैं।

उत्तराखंड में हाथी की लीद में भी मिल चुके हैं प्लास्टिक के अंश

गौरतलब है कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब वैज्ञानिकों को इन बड़े वन्यजीवों की लीद में प्लास्टिक के अंश मिले हैं। इससे पहले वैज्ञानिकों को उत्तराखंड के जंगलों और उसके आसपास के क्षेत्रों में हाथी (एलिफस मैक्सिमस इंडिकस) की लीद के करीब एक तिहाई नमूनों में इंसानी कचरे की उपस्थिति के सबूत मिले थे, जिनमें प्लास्टिक के अंश भी शामिल थे।

ऐसा ही कुछ हाल में वैज्ञानिकों को बांग्लादेश में भी देखने को मिला था जब सुंदरबन के डेल्टा में पाए जाने वाले 90 फीसदी मेंढकों में माइक्रोप्लास्टिक के सबूत मिले  थे। यह इस बात का पुख्ता सबूत है कि वातावरण में बढ़ता प्लास्टिक ने केवल शहरों में बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले जीवों के शरीर में भी अपनी पैठ बना चुका है।

वैज्ञानिकों को कुछ समय पहले समुद्री पक्षियों में एक नई बीमारी का पता चला था, जिसकी वजह वायरस या बैक्टीरिया न होकर प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह पहला मौका है जब किसी जंगली जीव में विशेष तौर पर प्लास्टिक से होने वाले फाइब्रोसिस का पता चला था। इस बीमारी को ‘प्लास्टिकोसिस’ नाम दिया गया है।

वातावरण और जीवों में मिलते प्लास्टिक के यह अंश इस बात का पुख्ता सबूत हैं कि आज प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक अब उसके कचरे और बेतहाशा होते उपयोग के उचित प्रबंधन न किए जाने के कारण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में यदि इस पर गंभीरता से ध्यान न दिया गया तो यह समस्या आने वाले समय में विकराल रूप ले लेगी।

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