अप्रैल की गर्मी से बढ़ गए हिमाचल प्रदेश में जंगलों में आग के मामले

सूखे की स्थिति के चलते अकेले अप्रैल माह में रिकार्ड 1012 वनों में आग के मामले देखे गए। वन संपदा और वन्य प्राणियों को भारी नुकसान हुआ है
हिमाचल प्रदेश में वनों में लगी आग की घटनाएं, इस बार ये घटनाएं शहरी क्षेत्रों में अधिक देखी जा रही हैं। फोटो: रोहित पराशर
हिमाचल प्रदेश में वनों में लगी आग की घटनाएं, इस बार ये घटनाएं शहरी क्षेत्रों में अधिक देखी जा रही हैं। फोटो: रोहित पराशर
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इस बार अप्रैल माह में हिमाचल प्रदेश में जंगलों में आग की 1 हजार से अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं। जो पिछले कई सालों के मुकाबले में कहीं अधिक हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च और अप्रैल माह में हिमाचल प्रदेश में नाममात्र की बारिश हुई और इस बार तापमान में हुई अचानक बढ़ोतरी के कारण वनों में आग की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई।

वन विभाग के आंकडों के अनुसार इस बार 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक वनों में आग की 1012 घटनाएं हुई। जिसमें 8400 हैक्टेयर वन भूमि को नुकसान पहुंचा। जबकि इसका पिछले वर्ष से तुलना करें तो पिछले साल पूरी गर्मी और सर्दी के मौसम में 1145 वनों की आग की घटनाएं दर्ज की गई थी। 

हिमाचल प्रदेश में 37,033 वर्ग किलोमिटर वन क्षेत्र है, जिसमें से 15 प्रतिशत पर चीड़ वन हैं जो आग के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। प्रदेश में वन विभाग की कुल 2026 बीटें हैं जिनमें से 339 अति संवेदनशील श्रेणी में आती हैं।

इसके अलावा 667 मघ्यम और 1020 बीटें कम संवेदनशील की श्रेणी में आती हैं। ऐसे में इन संवेदनशील बीटों में आग की घटनाओं पर नजर रखने के लिए वन विभाग को ज्यादा मुस्तैदी बरतने की जरूरत है।

यदि पिछले 15 सालों में वनों की आग के आंकडों को देखें तो वर्ष 2008-09 में कुल 572, 2009-10 में 1906, 2010-11 में 870, 2011-12 में 168, 2012-13 में 1798, 2013-14 में 397, 2014-15 में 725, 2015-16 में 672, 2016-17 में 1832, 2017-18 में 1164, 2018-19 में 2544, 2019-20 में 1445, 2020-21 में 1045, 2021-22 में 1140 वनो में आग की घटनाएं रिकॉर्ड की गई। जबकि इस बार केवल अप्रैल माह में ही एक हजार से अधिक आग की घटनाएं देखी गई।

हिमाचल के मुख्य अरण्यपाल , वन संरक्षण एवं अग्नि नियंत्रण अनिल शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस बार तापमान में बढ़ोतरी के कारण वनों की आग की अधिक घटनाएं अप्रैल माह में देखी हैं, जबकि पहले यह मई और जून माह में देखने को मिलती थी।

उन्होंने बताया कि आग से धरती की नमी खत्म हो जाती है और मिट्टी शुष्क होने से पेड़ पौधे जोखिम में आ जाते हैं। ऋतु चक्र बदल जाता है और आग वाले क्षेत्रों में बारिश भी कम हो जाती है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से भीषण और लंबे समय तक रहने वाली आग का खतरा बढ़ जाता है।

वन संरक्षण और अन्य सामाजिक सरोकार के काम करने वाली संस्था उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो अजय श्रीवास्तव ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस बार मौसम में आए अचानक बदलावों के कारण आग की घटनाओं में बेतहाशा बढोतरी हुई। 

हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के वन संरक्षण प्रभाग के प्रमुख डॉ पवन राणा ने कहा कि आग की वजह से पौधों, वन्य प्राणियों और मिट्टी की गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर होता है। जिन वनों में आग की घटनाएं होती है वहां नई प्लांटेशन में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमें वनों को आग से बचाने के लिए एक वृहद कार्ययोजना पर काम करना चाहिए और अब पर्यावरण में आ रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए पुख्ता इंतजाम करने की जरूरत है।

प्रदेश में वनों में आग की घटनाओं का असर यहां की वायु की गुणवता के खराब के होने के रूप में भी देखा गया है। मार्च के पहले पखवाड़े में पहाड़ों की रानी शिमला का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई)  औसत 50 माइक्रो ग्राम से कम था, लेकिन अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक यह बढ़कर 92 माइक्रो ग्राम तक पहुंच गया। इसके अलावा मनाली का एक्यूआई भी मार्च के पहले पखवाड़े में 50 माइक्रो ग्राम से कम था जो अप्रैल के अंत तक 87 माइक्रो ग्राम तक पहुंच गया था। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वनों की आग की घटनाओं की वजह से है। वन अग्नि के कारण वातावरण में धुंआ घुल रहा है। इसका असर वायु की गुणवता पर पड़ता दिख रहा है। 

विेशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में हर तीसरे चौथे साल में वनों की आग की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी जाती है इसलिए वन विभाग को इसके लिए पहले से ही तैयारी करते हुए अधिक संख्या में फायर वॉचर और वॉलंटियर की तैनाती करनी चाहिए। साथ ही लोग वनों में आग न लगाए इसके लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।

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