सात महीने पहले शुरु हुआ हादसा, शोर अब मचा आदमखोर भेड़िए का

देश के सबसे गरीब जिलों में शामिल बहराइच के महसी क्षेत्र में अत्यंत गरीबी है, घर-बार न होने के कारण वे वन्यजीवों के आसान शिकार बनते हैं
महसी क्षेत्र का पीड़ित परिवार,  फोटो : संजय सिंह
महसी क्षेत्र का पीड़ित परिवार, फोटो : संजय सिंह
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यह अभी तक वैज्ञानिक तौर पर साफ नहीं हो सका है कि उत्तर प्रदेश के बहराइच जनपद में महसी क्षेत्र में बच्चों और महिलाओं पर देर रात हो रहे हमले किसी आदमखोर भेड़ियों के ही थे या उसकी प्रजाति के किसी अन्य जानवर के थे। भुक्तभोगी परिवार के सदस्यों ने भी रात के अंधेरों में जानवर देखने की बातें कहीं है लेकिन हमला करने वाला भेड़िया ही था इस बात पर वह भी आत्मविश्वास में नहीं हैं।  

घाघरा के कछारों में ऐसी मांदे बहुत हैं जहां भेड़िए का प्राकृतिक वास है। हालांकि, महसी क्षेत्र में कभी भी भेड़ियों की तरफ से किसी व्यक्ति को घायल नहीं किया गया। 2024 में भेड़ियों के आदमखोर हो जाने का शोर भले ही जुलाई और अगस्त में मचा लेकिन जानवर के आबादी में पहुंचने और बच्चों को मारने का सिलसिला सात महीने पहले से शुरू हो गया था।   

महसी क्षेत्र में अपनी बेटी को खोने वाले 30 वर्षीय राकेश कुमार गौतम गौतम के घर से कुछ ही दूर एक दूसरे गांव मिश्रनपुरवा में 10 मार्च, 2024 को इस प्रभावित क्षेत्र का सबसे पहला हादसा हुआ था। हालांकि, तब किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं गया।

ऐसा दावा किया गया कि उस दिन 3 साल की सायरा को आदमखोर भेड़िया उठा ले गया और उसकी भी मौत हो गई, फिर 23 मार्च को नजदीक के ही एक गांव नयापुरवा में एक 2 साल के बच्चे को मौत हुई।

सायरा बीते दो साल से अपने मां के साथ ननिहाल में ही रहती थी क्योंकि उसके पिता की मृत्यु एक गंभीर बीमारी के चलते हो गई। सायरा के मामा कलीम बताते हैं कि “10 मार्च की रात को सायरा अपने कच्चे घर के बाहर मां आयशा बानो के साथ सो रही थी। नजदीक में ही घर के भीतर उसके बूढे नाना और नानी मौजूद थे। रात में गांव में बिजली नहीं थी और 12 बजे के पास एक जानवर उसे उठाकर ले गया। शोर मचने के बाद उसकी तलाश की गई लेकिन गन्ने के खेत में खून से सने कपड़ों के सिवा कुछ नहीं मिला।” कलीम मुंबई में ड्राइवरी का काम करते हैं और वह हादसे के वक्त गांव में नहीं थे।

कलीम बताते हैं “ हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नजदीक के प्रभावित गांव सिसैया चूड़ामड़ि में पीड़ितों से मिलने आए थे, सायरा की मां भी गांव के प्रधान के साथ वहां गई थी। हालांकि, उसे बैरन लौटा दिया गया क्योंकि उसके बेटी की लाश नहीं मिली इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि भेड़िए ने ही उसे मारा।”

महसी के प्रभावित गांवों में भेड़िए से जिन बच्चों की मौत हुई है और उनकी लाशें मिली हैं, उन लोगों को सरकार की तरफ से पांच लाख रुपए की मुआवजा राशि दी गई है। कलीम के मुताबिक सायरा के परिवार को कुछ भी नहीं मिला क्योंकि अधिकारियों ने कहा कि उसकी लाश नहीं मिल सकी है।  

छह लाख से ज्यादा की आबादी वाले बाढ़ प्रभावित महसी तहसील में एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इनमें कुछ लोगों को 5,600 रुपए की मुआवजा राशि दी गई है। हालांकि, वन विभाग के अधिकारियों और घायल पीड़ितों के बीच मुआवजे के लिए इस बात के लिए झगड़े भी हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 सितंबर, 2024 को महसी क्षेत्र का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात भी की थी। हालांकि उनके जाते ही अगले दिन 16 सितंबर, 2024 को पिपरी मोहन गांव में छत पर परिवार के साथ सो रहे 13 वर्षीय अरमान अली पर भी एक जानवर ने हमला कर दिया। गांव और परिवार वालों का दावा था कि यह आदमखोर भेड़िया ही था।  

घायल के परिवार से सलीम ने डाउन टू अर्थ को बताया कि मकान की सीढ़ी बाहर से है और रात के करीब 3 बजे भेड़िया आया और उसने बच्चे के गर्दन को दबोच लिया। हालांकि, परिवार के जब अन्य लोगों ने जानवर को देखा तो शोर मचाया और वह भाग गया। सलीम शिकायत करते हैं कि चारो तरफ भेड़िए देखे जा रहे हैं और हमले कर रहे हैं लेकिन वन अधिकारी उनके घर पर बने पगमार्क को देखकर कह रहे हैं कि वह भेड़िया नहीं है। वहीं, कई विशेषज्ञ पगमार्क के स्पष्ट न होने और उसे भेड़िया या किसी अन्य जीव का बताने पर सवाल उठा रहे हैं।

महसी क्षेत्र के ही एक और गांव मुकेरिया में 18 सितंबर की सुबह एक भेड़िये ने गांव में एक भैंस और बकरी को अपना शिकार बनाया। इसके बाद ग्रामीणों ने भेड़िए को बकरी का मांस खाते हुए भेड़िए को देखा भी। आक्रोशित गांव वालों ने लाठी डंडो के साथ उसे खेतों में खदेड़ा भी। हालांकि वह भागने में कामयाब रहा। गांव में दहशत का माहौल है। ग्रामीण राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि हम लोगों ने वीडियो में उसे कैद करने की कोशिश भी की और भागते हुए उसकी वीडियो भी बनाई। फिलहाल गांव में ड्रोन के जरिए उसकी सर्चिंग जारी है।

भेड़िए का बकरी या किसी मवेशी को शिकार बनाना सामान्य बात है। हालांकि, उसकी प्रकृति इंसानों पर हमला करने की नहीं है। ऐसे में मुकेरिया में जो हुआ वह असमान्य नहीं था। न हीं यह साफ था कि यह वही भेड़िया है जिसकी तलाश वन विभाग को थी। गौर करने वाली बात यह भी है कि इस घटना के बाद से भेड़िए ने किसी व्यक्ति पर भी हमला नहीं किया।

वन्यजीवों का हमला नया नहीं

महसी क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि वन्यजीवों का हमला नया नहीं है। बल्कि बीते वर्ष महसी क्षेत्र के औराही और आस-पास के गांव में तेंदुए ने हमला करके तीन लोगों को घायल किया था।

औराही गांव के 58 वर्षीय सैयद अली बताते हैं कि बीते साल गर्मी के दिनों में उनकी बहु तबस्सुम को तेंदुए ने काफी घायल कर दिया था, इसके बाद महीनों उनका इलाज हुआ और फिर जाकर वह बच पाईं।

महसी क्षेत्र के कई अन्य ग्रामीण यह बताते हैं कि वन्यजीवों के हमले यहां कुछ वर्षों से बढ़ गए हैं। खेती और आबादी के बढ़ते दबाव ने आस-पास के जंगल और प्राकृतिक वासों को नुकसान पहुंचाना शुरू किया है। साथ ही फसलों की बदली हुई प्रवृत्ति ने इन वन्यजीवों को छिपने और भागने व शिकार करने के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बना दिया है। महसी क्षेत्र में काफी गरीबी के बीच लोग अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। कई इलाकों में बिजली नहीं है। न ही घरों में दरवाजे हैं और ज्यादातर कच्चे मकान हैं।

भेड़िए के हमलों में जो मारे गए और जो घायल हुए उनमें ज्यादातर परिवार बेहद गरीब हैं। उनके घर कच्चे हैं और परिवार में लोग दूर-दराज शहरों में काम करने के लिए जाते हैं। इससे घरों में या खेतों में बच्चे व महिलाएं असुरक्षित हैं और वन्यजीवों के लिए आसान शिकार बन जाते हैं।

ग्रामीणों में कई ऐसे परिवार हैं जिनको न ही कोई सरकारी आवास की मदद मिली और न ही शौचालय मिला। इसलिए अब भी ग्रामीण खुले में शौच के लिए विवश हैं, जिससे उनके आसार शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है।

सात महीनों में दस मौतें

 

10 मार्च – मिश्रनपुरवा गांव – 3 वर्षीय सायरा की मौत

23 मार्च – नयापुरवा गांव - 2 वर्षीय छोटू की मौत

17 जुलाई – मक्कापुरवा - गांव – डेढ़ वर्षीय अख्तर रजा की मौत

27 जुलाई – नकवा गांव – 2 वर्षीय प्रतिभा की मौत

3 अगस्त – कौलैला गांव – 07 वर्षीय किशन की मौत

18 अगस्त – सिंगिया नसीरपुर गांव – 04 वर्षीय संध्या की मौत

22 अगस्त – भटौली गांव – 04 वर्षीय खुशबू की मौत

25 अगस्त – कुम्हारनपुरवा – 52 वर्षीय रीता देवी की मौत

26 अगस्त – दिवानपुरवा – 05 वर्षीय अयांश की मौत

01 सितंबर – नउव्वन गरेठी – 02 वर्षीय अंजली की मौत

अगली कड़ी में जानिए कैसे कमाऊ फसल बन गई है बहराइच की नई मुसीबत...

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