मेलोकैना बेसीफेरा, मेलोकैना वंश से संबंधित बांस की दो प्रजातियों में से एक है। यह 10 से 25 मीटर तक लंबी होती है। यह प्रजाति भारत, बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड में मूल रूप से उगती है। बांस की मेलोकैना बेसीफेरा प्रजाति के फूलों पर 13 वर्षों तक किए गए एक अध्ययन में दिलचस्प बात निकल कर आई है, जो पूर्वोत्तर भारत में बांस के नष्ट होने, चूहों की आबादी को बढ़ाने और अकाल जैसी घटना से जुड़ी है।
अन्य बातों के अलावा, शोधकर्ताओं ने मेलोकैना बेसीफेरा के फल में मीठी सामग्री और 'माउताम' के दौरान चूहों के लिए उन्मादी भोजन और उनकी आबादी में उछाल के बीच एक संबंध का पता लगाया। बांस के बड़े पैमाने पर फूलने की घटना 48 से 50 वर्षों में एक बार होती है।
यहां बताते चलें कि 'माउताम' एक चक्रीय पारिस्थितिकी घटना है जो पूर्वोत्तर भारत के मिजोरम और मणिपुर राज्यों में हर 48 से 50 साल में होती है और जिसके कारण अकाल जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने इस बांस के फल और फूलों की ओर आकर्षित होने वाले पशुओं दर्शकों, शिकारियों की बड़ी संख्या को देखा और उन्हें सूचीबद्ध किया। उन्होंने बांस के झुरमुट में 456.67 किलोग्राम जो कि अब तक का सबसे अधिक फल उत्पादन है, को भी दर्ज किया।
तिरुवनंतपुरम के जवाहरलाल नेहरू ट्रॉपिकल बोटैनिकल गार्डन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (जेएनटीबीजीआरआई) ने 2009 से 2022 के बीच अपने बंबूसेटम में अध्ययन किया, जहां 1988 से 1996 के दौरान प्रजातियों को लगाया गया था।
मेलोकैना बेसीफेरा सबसे बड़ा फल पैदा करने वाला बांस है, इस फल को पूर्वोत्तर भारत में 'मूली' कहा जाता है और यह पूर्वोत्तर भारत-म्यांमार क्षेत्र में उगता है। यह अपने सामूहिक तौर पर फूलने के दौरान, बांस बड़े फल पैदा करता है जो पशुओं, शिकारियों को आकर्षित करता है। इनमें से काले चूहे, बेर जैसे फल को बहुत पसंद करते हैं।
इस अवधि के दौरान उनकी संख्या तेजी से बढ़ती है, इस घटना को जिसे 'चूहों की बाढ़ आना' भी कहा जाता है। एक बार जब फल खत्म हो जाते हैं, तो वे खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचना शुरू कर देते हैं, जिससे अकाल पड़ता है, हजारों लोगों का जीवन दाव पर लग जाता है।
पहले यह माना जाता था कि 'फलों में बहुत अधिक प्रोटीन' होता है जो चूहों को अपनी ओर आकर्षित करता है। हालांकि 2016 में एक जेएनटीबीजीआरआई के अध्ययन में पाया गया कि फल में वास्तव में बहुत कम प्रोटीन होता है। फलों के बहुत अधिक मीठे होने से उसकी ओर जानवर अधिक आकर्षित होते हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि फलों के स्वाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि विभिन्न विकास चरणों में फलों के मीठे स्वाद के आधार पर जानवरों द्वारा फलों को खाया जाता है।
बांस के फल और फूल की किस्में आगंतुकों जानवरों को लुभाते हैं। इनमें पराग परभक्षी (शहद की मक्खियां), फल परभक्षी (मिलीपीड, स्लग और घोंघे, फलों में छेद करने वाले, बंदर, चूहे, साही, जंगली सूअर और ताड़ के बिलाव), खरगोश, हिरण और कीट/कीट परभक्षी चींटियां आदि शामिल हैं।
जेएनटीबीजीआरआई के शोधकर्ताओं ने कहा कि इस अध्ययन के द्वारा पता चला कि फूल फेनोलॉजी और फल उत्पादन गतिशीलता वनवासियों और इस बांस के संरक्षण में शामिल लोगों के लिए सहायक हैं।
इसके अलावा, फलों का स्वाद और इसका सेवन करने वाले और 'चूहों की संख्या में भारी बढ़ोतरी करने' से जुड़े अध्ययन से चिकित्सा अनुसंधान में उपयोगी बायोमोलेक्यूल्स की पहचान करने में मदद मिल सकती है। यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका पीएलओएस वन में प्रकाशित हुआ है।