उत्तराखंड में बारिश की शुरुआत के साथ ही जंगल और वन्यजीवों पर से आग का खतरा टल गया है। लेकिन ये सवाल भी रह गया है कि क्या बारिश ही जंगल की आग से निपटने का एक मात्र उपाय है। जंगल में आग लगने की घटनाओं में लगातार क्यों इजाफा हो रहा है। जंगल और उसके अंदर रहने वाले जीवों का संसार क्या हर वर्ष इस आग से झुलसता रहेगा और बारिश का इंतज़ार करता रहेगा। क्योंकि राज्य सरकार ने जंगल को आग से बचाने के लिए जो उपाय किये, वो पूरी तरह नाकाफी साबित हुए।
उत्तराखंड में बारिश की बौछार ने जंगल की आग को बुझाने का कार्य किया। इस वर्ष की आग नुकसान के लिहाज़ से राज्य के लिए दूसरी सबसे बड़ी जंगल की आग रही। वन विभाग के मुताबिक 19 जून तक गढ़वाल और कुमाऊं के जंगलों में आगजनी की कुल 1636 घटनाएं हुईं। जिसमें 2972.3 हेक्टेअर जंगल चपेट में आया। साथ ही 35 हेक्टेअर पौधरोपण क्षेत्र भी जंगल की आग से प्रभावित हुआ। जिससे 55,7,774.5 रुपये का नुकसान हुआ। जबकि पिछले वर्ष 2018 में जंगल की आग से 4480.04हेक्टेअर में 86.05 लाख रुपये नुकसान का आंकलन किया गया था।
राज्य के जंगल में हर साल लगने वाली आग ने सुप्रीम कोर्ट को भी ये कहने पर मजबूर कर दिया कि जल्द बारिश हो जाए। ताकि जंगल-पर्यावरण के साथ उनमें रहने वाले वन्य जीवों पर से आग का खतरा टले। जंगल की आग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस मामले से जुड़े और दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा है।
मूल रूप से टिहरी के रहने वाले, दिल्ली हाईकोर्ट के वकील ऋतुपर्ण उनियाल ने 18 जून को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि उत्तराखंड के जंगल की आग से वन्यजीवों पर खतरा आ जाता है। इसलिए उन्होंने वन्य जीवों को जीवित प्राणी का दर्जा देने, जीवित प्राणी जैसे अधिकार देने के साथ ही राज्य सरकार से जंगल की आग रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर किया और जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि जब तक याचिका पर सुनवाई होती है, इस दौरान सिर्फ बारिश की प्रार्थना की जा सकती है, जंगल की आग का यही समाधान है, कोर्ट के निर्देश भी मदद नहीं कर सकते हैं।
याचिकाकर्ता ऋतुपर्ण उनियाल का कहना है कि उत्तराखंड के वनों में दशकों से लग रही या कहें लगाई जा रही आग और उसके दुष्प्रभाव के खिलाफ केंद्र, राज्य सरकार और प्रमुख वन संरक्षक को अविलंब वनाग्नि रोकने और भविष्य में लगने वाली आग के लिए पूर्व व्यवस्था के लिए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। इसमें वन्यजीवों को वैधानिक दर्जा देने और उन्हें जीवित व्यक्ति का दर्जा देकर उनके अधिकारों की सुरक्षा की माँग की है। ऋतुपर्ण को अपनी याचिका के समर्थन में सर्वोच्च अदालत में और दस्तावेज़ उपलब्ध कराने होंगे।
साथ ही राज्य सरकार के लिए भी यही समय है कि अगले वर्ष फायर सीजन की शुरुआत से पहले जरूरी इंतज़ाम किये जाएं। जंगल में फायर लाइन की सफ़ाई सबसे ज्यादा जरूरी है। साथ ही जंगल के आसपास रहने वाले लोगों को वन कानून के ज़रिये दूर न करके, उनका जंगल से नाता मज़बूत करें।