
हिमाचल प्रदेश के ऊना शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर नगनौली गांव के सुनसान जंगल में मजदूरों का झुंड टेंट लगाए हुए है। वे लोग यहां फैले बक्सों की देखभाल कर रहे हैं। इन बक्सों में मधुमक्खियां बंद हैं। दरअसल ये मजूदर मधुमक्खी पालने का काम करते हैं। इन बक्सों को कॉलोनी कहा जाता है और जिस जगह ये मजदूर काम करते हैं, उसे एक फार्म कहा जाता है, जो किसी खेत जैसा नहीं है, बल्कि जंगल के बीच की खाली जगह है। जहां लगभग 250 कॉलोनियां (बक्से) बिछी हुई हैं। इस फार्म के मालिक हैं अरुण चौधरी। अरुण चौधरी के ऐसे चार फार्म यहां आसपास के जंगल में हैं।
मजदूर यहां से रोजाना दो से तीन बाल्टियां (20 किलोग्राम की एक बाल्टी शहद) निकाल लेते हैं। इस जंगल में इन दिनों शीशम, कड़ी पत्ता, तुलसी, नीम, सफेद फूल, फ्लाई, ब्लैकेंट आदि पर फूल आ रहे हैं। मधुमक्खियां जंगल में लगे फूलों का रस चूसकर लाती और अपनी कॉलोनियों में लौटती। बाद में मजदूर यहां से शहद निकालकर बाल्टियों में भर देते। शाम ढलते-ढलते मजदूर इन बक्सों को अच्छे से बंद कर देते।
इन मजदूरों में शामिल सुधीर बिहार के रहने वाले हैं और लगभग आठ साल से मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं। वह आठ साल पहले काम के सिलसिले में ऊना आए थे। उन्होंने मधुमक्खी पालन का काम सीखा और अब वह पूरी तरह प्रशिक्षित हैं और अरुण चौधरी की शहद बनाने वाली कंपनी में काम करते हैं। सुधीर दो सप्ताह पहले ही यहां पहुंचे हैं।
वह इससे पहले हरियाणा के भिवानी जिले में थे और वहां सरसों की फसल के खेत में अपने ये बक्से लगाए बैठे रहे। उनके साथ उनके साथी मजदूर भी थे। वहां से उन्होंने सरसों के फूल से शहद इकट्ठा किया। हालांकि भिवानी में भी ये मजदूर ज्यादा समय तक नहीं रुके। बल्कि उनका सबसे लंबा प्रवास राजस्थान के भरतपुर जिले में था। भरतपुर जिले में वे सरसों के खेत के पास मधुमक्खियों का फार्म लगाए रहे।
अरुण चौधरी कहते हैं कि शहद उद्योग में इसे बी माइग्रेशन (मधुमक्खियों का प्रवास) कहा जाता है। मधुमक्खी पालक साल भर अपनी मधुमक्खियों के साथ सफर करते हैं, क्योंकि पूरे देश में फूलों के खिलने का समय अलग-अलग होता है। मधुमक्खी पालकों को पता होता है कि किस समय किस जगह फूल खिलते हैं। उसी समय मधुमक्खी पालक वहां पहुंच जाते हैं। इससे जहां फूलों में परागण होता है, वहीं फूलों के रस से शहद बनाया जाता है। उनके मुताबिक अप्रैल के बाद उनके मजदूर कश्मीर या हिमाचल के उच्च पहाड़ी क्षेत्र में चले जाएंगे, जहां न केवल मधुमक्खियों के अनुकूल मौसम मिलेगा, बल्कि जंगली फूलों का भी शहद मिलेगा।
भारत में मधुमक्खियों का प्रवास विभिन्न प्रजातियों, फूलों की उपलब्धता और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उत्तर भारत के ज्यादातर मधुमक्खी पालक दिसंबर से मार्च तक अलवर और भरतपुर (राजस्थान) में सरसों के फूलों से शहद इकट्ठा करते हैं। इसके बाद ये मधुमक्खी पालक अलग-अलग दिशाओं में निकल जाते हैं। जैसे कि बहुत से मधुमक्खी पालक मार्च से अप्रैल तक हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर (राजस्थान) में शीशम के फूलों से शहद इकट्ठा करने के लिए अपने बक्से लेकर पहुंच जाते हैं।
वहीं कुछ मधुमक्खी पालक साबलगढ़ (मध्य प्रदेश) में बर्सीम और श्रीनगर और अनंतनाग (कश्मीर) में कश्मीर एकेसिया से शहद इकट्ठा करने चले जाते हैं। जून में मध्य प्रदेश और कासगंज (उत्तर प्रदेश) में जामुन से शहद इकट्ठा करते हैं। सितंबर में हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर (राजस्थान) में बेरी या सिद्र से शहद प्राप्त करते हैं। अक्टूबर में चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ (राजस्थान) में अजवाइन और तुलसी के फूलों से शहद इकट्ठे करते हैं। वहीं नवंबर में उत्तर प्रदेश में यूकेलिप्टस और मध्य प्रदेश के शिवपुरी और उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट से शहद प्राप्त करते हैं।
पढ़ें, मधुमक्खियों के प्रवास की एक ओर कहानी-