खास रिपोर्ट: कोयले का काला कारोबार-अंतिम

कोविड-19 लॉकडाउन के बावजूद जून 2020 में कोयले की खानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन इसके पीछे पूरी कहानी क्या है?
File Photo: Agnimirh Basu
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जून में जब नए कोयला ब्लॉकाें की नीलामी शुरू हुई, तब प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे कोयला क्षेत्र को कई वर्षों के लॉकडाउन से बाहर आने में मदद मिलेगी। लेकिन समस्या यह है कि कोयले के भंडार घने जंगलों में दबे पड़े हैं और इन जंगलों में शताब्दियों से सबसे गरीब आदिवासी बसते हैं। कोयले के लिए नए क्षेत्रों का जब खनन शुरू होगा, तब आदिवासियों और आबाद जंगलों पर अनिश्चितकालीन लॉकडाउन थोप दिया जाएगा। डाउन टू अर्थ ने इसकी पड़ताल की। पहली कड़ी पढ़ने के लिए क्लिक करें, दूसरी कड़ी पढ़ने के लिए क्लिक करें। प्रस्तुत है इस पड़ताल करती रिपोर्ट की अंतिम कड़ी-


वर्धा घाटी में आवंटित खदानें चालू नहीं: 2020 की सूची में नीलामी के लिए महाराष्ट्र में दो कोलफील्ड्स-वर्धा वैली और बानदेड़ से तीन ब्लॉक थे। वर्धा घाटी में मरकी मंगली-2 कोयला ब्लॉक को पहले नो-गो के रूप में चिन्हित किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि 2015 और 2019 के बीच आवंटित किए गए 82 ब्लॉकों में वर्धा घाटी से 10 ब्लॉक थे और ये सभी गो क्षेत्र के थे। इनमें से 8 चालू नहीं हैं। इस बार नीलामी के लिए तैयार ब्लॉक से सटे मरकी मंगली-3 अभी तक चालू नहीं हैं। 21 जुलाई, 2020 को नीलामी सूची से बानदेड़ को तब हटा दिया गया था जब मुख्यमंत्री ने इस क्षेत्र के वन्यजीव गलियारे में होने के कारण आपत्ति जताई थी।

छत्तीसगढ़ में, राज्य के पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि नीलाम किए जाने वाले पांच ब्लॉक पारिस्थितिक रूप से नाजुक थे। छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या और मानव-हाथी संघर्षों की घटना के मद्देनजर यह सहमति बनी है कि हसदेव-अरण्य से सटे 1,995 वर्ग किलोमीटर का नाम लेमरू हाथी रिजर्व होगा। अकबर ने यह बात एक प्रेस बयान में कही। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि जुलाई के अंत में पांच ब्लॉकों को तीन अन्य ब्लॉकों से बदल दिया जाएगा। हालांकि, इस संबंध में कोई आधिकारिक अधिसूचना नहीं आई है। झारखंड ने भी नीलामी का विरोध किया है और कोविड -19 महामारी के कारण नीलामी के स्थगन की मांग की है। लेकिन सरकार ने इन्हें सूची से नहीं हटाया है।

बस हां कहने भर की देर है और जंगल साफ

डाउन टू अर्थ ने 17 नवंबर, 2015 को पर्यावरण व कोयला मंत्रालयों के बीच हुई एक बैठक के मिनट्स की जानकारी ली है। यह दिखाता है कि कैसे कोयला मंत्रालय के अधिकारियों को भारत के वन सर्वेक्षण में “प्रतिनियुक्त” किया गया था ताकि उनके वन क्षेत्रों का फिर से आकलन किया जा सके और फिर उनके आकलन के लिए मापदंडों को कमजोर किया जा सके। कुछ मुख्य जानकारियां:

हाइड्रोलॉजिकल परत से प्रभावित 216 आंशिक अखंडित ब्लॉक में से 58 में पहले से ही खनन चालू है, इनके लिए वन मंजूरी मिल चुकी है। इन ब्लॉकों में खनन जारी रखने के लिए उन्हें अखंडित स्थिति से बाहर निकालने की आवश्यकता है। 113 कोयला ब्लॉकों में सीमा संशोधन संभव है, अतः वे संशोधित सीमाओं के बाद अखंडित श्रेणी से बाहर आ सकते हैं। 45 कोयला ब्लॉक के मामले में सीमा संशोधन संभव नहीं है।

73 कोयला ब्लॉक, अखंडित श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। जिनमें से 12 पहले से ही खनन के अधीन हैं। इन पर वन मंजूरी दी गई थी। इसलिए उन्हें अखंडित श्रेणी से बाहर रखा जाना चाहिए। 49 निर्णय नियम (केवल बहुत घने जंगल के कारण, 29 ब्लॉक) से प्रभावित हैं, 6 निर्णय नियम-II से प्रभावित हैं, 6 पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से स्थिति को समेटने के बाद कोयला मंत्रालय द्वारा पहले आवंटित किया गया। अब इनवॉयलेट श्रेणी में आते हैं, जिन्हें इनवॉयलेट लिस्ट से बाहर करने की आवश्यकता है। अन्य 6: पहले आवंटित किए गए ये ब्लॉक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से समझौते के बाद,अब अखंडित श्रेणी में आते हैं। जिन्हें इस लिस्ट से बाहर करने की आवश्यकता है। ये ब्लॉक हैं: हसदेव-अरण्य में पटुरिया, हसदेव-अरण्य में पिंडराक्षी, हसदेव-अरण्य में केंट इक्स्टेन्शन, हसदेव अरण्य में परसा पूर्व, मंड-रायगढ़ में तालापल्ली और सिंगरौली में अमेलिया नॉर्थ।

बहुत घने जंगल के कारण प्रभावित 29 कोयला ब्लॉकों में से 19 ब्लॉकों में 1 वर्ग किलोमीटर की सीमा में संशोधन संभव है, ताकि वे अखंडित श्रेणी से बाहर हो सकें।

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, यह देखा गया कि ब्लॉक में पड़ने वाले घने जंगल के क्षेत्र का एक छोटा सा हिस्सा भी नियम-एक के तहत पूरे ब्लॉक को अखंडित बना देता है। इस पैरामीटर के कारण पंद्रह ब्लॉक प्रभावित होते हैं, जिन्हें कि अखंडित श्रेणी के बाहर रखा जाना है।

भारित वन आच्छादन की गणना करते समय, खुले जंगल x 0.25 + मध्यम घने जंगल का क्षेत्र x 0.55 + बहुत घने जंगल x 0.85 के नियम का ध्यान रखा गया है । इसलिए, निर्णय नियम-एक के तहत बहुत घने जंगल के पैरामीटर पर विचार करने से पैरामीटर की नकल होती है। इसलिए, निर्णय नियम-दो में बहुत घने जंगल पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

नोट: निर्णय नियम-एक में वे क्षेत्र शामिल हैं जिनमें बहुत घने जंगल, संरक्षित वन और नदी के जलग्रहण क्षेत्र इत्यादि हैं, जिसके कारण वे अखंडित श्रेणी में आते हैं । निर्णय नियम- II में ऐसे क्षेत्र शामिल हैं जो निर्णय नियम- I के अनुसार अखंडित नहीं हैं, लेकिन इनमें पर्याप्त वन कवर, जैव विविधता और वन्यजीव की उपस्थिति है।

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