एसओई 2021: पर्यावरण संबंधी 50,000 से ज्यादा मामले अदालतों में लंबित

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट रिपोर्ट (एसओई) कहती है- पर्यावरणीय अपराध के मामले बढ़ रहे हैं, निपटारों की प्रक्रिया सुस्त है
2019 में, पर्यावरण संबंधी 34,671 अपराध दर्ज किए गए थे। फोटो: विकास चौधरी
2019 में, पर्यावरण संबंधी 34,671 अपराध दर्ज किए गए थे। फोटो: विकास चौधरी
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देश में 2019 और 2020 के बीच वन्यजीव अपराधों की संख्या में गिरावट होने पर भी  भारत में रोजाना दो मामले दर्ज होते हैं। डाउन टू अर्थ पत्रिका की ओर से सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के सहयोग से लाया जाने वाला एक सालाना प्रकाशन, स्टेट ऑफ इंडिया'ज एनवायरमेंट (एसओई) रिपोर्ट कहती है कि अदालतें नए दर्ज होने वाले मामलों की तुलना में बहुत कम दर से मामलों को निपटा रही हैं, जिससे लंबित मामलों का जखीरा और देरी बढ़ रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में, पर्यावरण संबंधी 34,671 अपराध दर्ज किए गए थे। 7,000 से ज्यादा मामले पुलिस जांच में और लगभग 50,000 मामले अदालतों में लंबित थे।

2019 में भारत के कुल वन्यजीव अपराधों के 77 प्रतिशत मामले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में दर्ज किए गए। 2018 और 2019 के बीच, कुछ राज्यों में वन्यजीव अपराधों में बढ़ोतरी देखी गई: इनमें गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के सभी राज्य शामिल थे।

डाउन टू अर्थ के वाइल्ड लाइफ एंड फॉरेस्ट रिपोर्टर ईशान कुकरेती कहते हैं, “हमें बहुत ज्यादा मेहनत करनी होगी, तब जाकर पर्यावरणीय अपराधों से निपट पाना संभव हो पाएगा।” “हम जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं, अदालतों को मौजूदा बैकलॉग एक वर्ष में खत्म करने के लिए रोजाना 137 मामलों को निपटाने की जरूरत होगी।”

स्पष्ट है कि अदालतें दबाव में हैं। 2019 में, वे रोजाना औसतन जितने मामलों (सभी पर्यावरण और प्रदूषण संबंधित कानूनों के तहत) को निपटा पायी, उनकी संख्या लगभग 86 थी।

एसओई का विश्लेषण दिखाता है कि 2019 के सभी मामलों में, ईपीए (पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम) के तहत प्रतिदिन सिर्फ 0.13 मामलों को ही निपटाया जा सका - इस रफ्तार पर, इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों के बैकलॉग को निपटाने में अदालतों को 20 साल से ज्यादा वक्त लग जाएगा। इसी तरह, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (2019 में प्रतिदिन महज 0.66 मामलों का निपटारा हुआ) के तहत लंबित मामलों को निपटाने में 13 साल लग जाएंगे।

डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा कहते हैं: “वर्तमान में अदालतें जिन मामलों को निपटा पा रही हैं, उनमें ज्यादातर मामले सिगरेट व अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम और ध्वनि प्रदूषण अधिनियम के तहत आते हैं। हमें दूसरे कानूनों के तहत लंबित मामलों को भी निपटाने की जरूरत है। पर्यावरणीय अपराध - जैसा कि संयुक्त राष्ट्र ने कहा है –राष्ट्रों की सुरक्षा और सतत विकास को खतरे में डालने की क्षमता रखते हैं, निश्चित तौर पर सख्ती से निपट जाना चाहिए।”

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