केदारनाथ मंदिर प्रांगण में आतिशबाजी और पटाखों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इन तस्वीरों में लोग मंदिर के बाहर पटाखे फोड़ रहे हैं। मंदिर की घंटियों की गूंज के बीच पटाखों की तेज आवाज, रोशनी और धुएं का गुबार देखा-सुना जा सकता है।
भौगोलिक तौर पर बेहद संवेदनशील ग्लेशियर क्षेत्र में इस तरह की आतिशबाजी की तस्वीरें विचलित करती हैं। नवंबर के पहले हफ्ते में केदारनाथ भ्रमण कर लौटे भू-वैज्ञानिक डॉ. एसपी सती बताते हैं “स्थानीय लोगों में केदारनाथ धाम में बदले माहौल को लेकर बहुत निराशा है। चाहे बेतरतीब निर्माण कार्य हों या शोर मचाते हुए उडने वाले हेलिकॉप्टर हों, स्थानीय लोगों में गुस्सा भी है। केदारनाथ में अब तीर्थयात्री नहीं जा रहे हैं बल्कि पर्यटक जा रहे हैं। केदारनाथ में आतिशबाजी हर तरह से नुकसानदेह है। वन्यजीव, तितलियां, पक्षी, पौधों, जड़ी बूटियों सभी पर यह प्रतिकूल असर डालने वाला है। यह बात कहने के लिए हमें वैज्ञानिक होने की भी जरूरत नहीं है”।
रुद्रप्रयाग में केदारनाथ और चमोली में बद्रीनाथ के बीच 975 वर्ग किमी क्षेत्र में उत्तराखंड का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य बसा हुआ है। आईयूसीएन की सूची के लिहाज से खतरे की जद में आए कई प्राणियों का यह प्रवास स्थल है। हिम तेंदुए से लेकर हिमालयन थार, कस्तूरी मृग, रेड फॉक्स, हिमालयन सेही, काला भालू, हिमालयन मर्मोट, मोनाल, ग्रिफॉन गिद्ध समेत कई वन्यजीव यहां रहते हैं। अभयारण्य में स्तनधारियों की 30 प्रजातियाँ, पक्षियों की 240 प्रजातियाँ, तितलियों की 147 प्रजातियां, सांपों की नौ और मछलियों की 10 प्रजातियां दर्ज की गईं।
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के विशेषज्ञ केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य में वर्तमान में पाए जाने वाले वन्यजीवों के साथ विलुप्त हो चुके वन्य जीवों का अध्ययन कर रहे हैं। संस्थान के उत्तरी क्षेत्र के प्रभारी और अध्ययनकर्ता डॉ. गौरव शर्मा कहते हैं कि केदारनाथ में लोगों की आवाजाही वाले क्षेत्रों से वन्यजीव दूर चले गए हैं। हमने केदारनाथ ट्रैक पर दस दिनों तक अध्ययन किया और पाया कि ट्रैक के आसपास वन्यजीवों की हलचल नहीं है।
कस्तूरी मृग जैसे बेहद संवेदनशील जानवर मानवीय मौजूदगी के ईद गिर्द आते ही नहीं है, इंसानी गतिविधियों को भांपकर वह बहुत तेजी से भागते हैं और छिप जाते हैं।
शर्मा मानते हैं कि आतिशबाजी या हेलिकॉप्टर उडने से होने वाले शोर का सीधे तौर पर अभ्यारण्य में रहने वाले जीवों पर कोई खास असर नहीं पडता। केदारनाथ मंदिर के आसपास की हलचल वहां सुनाई नहीं देगी। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण अपने अध्ययन में ये देखेगा कि अभ्यारण्य में मौजूदा समय में कितने जीव हैं, कितने जीवों ने पलायन किया है या विलुप्त हुए हैं।
हालांकि अभ्यारण्य को लेकर किए गए एक शोध में स्पष्ट किया गया है कि कई प्राकृतिक और मानवीय दबावों के चलते केदारघाटी में वन्यजीवों की कमी हो रही है। यहां संचालित हेलीकॉप्टर सेवाएं जंगली जानवरों के व्यवहार, विचरण और उनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर रही हैं। इसलिए यहां उपचारात्मक उपाय किए जाने की तत्काल आवश्यकता है।
वहीं स्थानीय समुदाय परंपरागत तौर पर वनों के ईद गिर्द तेज आवाज में बोलने से भी बचता रहा है। प्रसिद्द पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट एक बार बातचीत में बताते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में वनों के नजदीक से गुजरते हुए हम स्वेच्छा से ऊंची आवाज में नहीं बोलते थे। दबे पांव चलते थे। ताकि जंगल के जानवरों, चिड़िया, पेड़ पौधों को कोई दिक्कत न हो।
रुद्रप्रयाग निवासी और पूर्व विधायक मनोज रावत भी भट्ट की बात पर सहमति जताते हैं। वह कहते हैं “केदारनाथ की संवेदनशीलता को देखते हुए हमारे पूर्वज वहां कभी शोर नहीं करते थे। भेड़-बकरी चराने वाले चरवाहे वहां बात भी धीमी आवाज में करते हैं। केदारनाथ मंदिर के पास आतिशबाजी नई परंपरा है। मंदिर को अपने नियम कडे करने की जरूरत है। ऐसी जगहों पर अनुशासन जरूरी है”।
ग्लेशियर के लिहाज से भी इस तरह की आतिशबाजी सही नहीं है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता कहते हैं कि चौराबाडी और कम्पेनियन ग्लेशियर केदारनाथ के ठीक पीछे हैं। यहां हेलीकॉप्टर का शोर पहले ही गूंजता है। पटाखों से होने वाला प्रदूषण इस क्षेत्र के लिए नई चुनौती होगी। ऐसी गतिविधियों को हम किसी भी तरह सही नहीं ठहरा सकते। इस विरासत की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।