अपने घोंसलों से ज्यादा दूर नहीं जाते छोटे पंख वाले पक्षी, झेलते हैं दिक्कतें

उष्णकटिबंध में रहने वाले जंगली पक्षी आइबिस, नीले और सुनहरे मकोव, हरे हनीक्रीपर तथा कई अन्य प्रजातियां, रहने की जगहों के नुकसान होने से दूसरे जगहों पर आसानी से नहीं रह सकते हैं
हरी हनीक्रीपर पक्षी,  फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, चार्ली जैक्सन
हरी हनीक्रीपर पक्षी, फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, चार्ली जैक्सन
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एक नए शोध के अनुसार, उष्णकटिबंधीय जंगली पक्षी, जिनके पंख उनके शरीर की लंबाई, आकार की अपेक्षा छोटे और गोल होते हैं। इन पक्षियों पर उनके रहने वाली जगहों के नुकसान का गहरा प्रभाव पड़ता है।

वहीं समशीतोष्ण जंगलों में रहने वाली पक्षियों की प्रजातियां आम तौर पर लंबे, पतले पंखों वाली होती हैं। इन पक्षियों पर उनके रहने की जगहों के नुकसान का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता है। यह शोध ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया है।

ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के मैट बेट्स और क्रिस्टोफर वुल्फ ने 14 अन्य शोधकर्ताओं के साथ मिलकर दुनिया भर में 1,000 से अधिक पक्षी प्रजातियों के पंखों का विश्लेषण किया।

शोध 2019 के एक अध्ययन पर आधारित है जिसका नेतृत्व बेट्स और वुल्फ ने किया था। उस अध्ययन में दिखाया गया था कि एक जंगली प्रजाति जो भूमध्य रेखा के करीब रहती है। यहां जानवर ऐसे वातावरण में विकसित होते हैं जहां आग लगने और तूफान जैसी घटनाओं की वजह से वहां रहने की जगहों में बड़े पैमाने पर बदलाव नहीं होता। लेकिन यहां की प्रजातियां वर्तमान में मानवजनित कारणों से जंगलों को नष्ट किए जाने से प्रभावित हो रही हैं

बेट्स ने कहा कि, पंखों के इस अध्ययन में इस विचार के लिए ठोस सबूत प्रदान किए है कि उष्णकटिबंध में रहने वाले जंगली पक्षी आइबिस, नीले और सुनहरे मकोव, हरे हनीक्रीपर, मलेशियाई रेल बब्बलर तथा कई अन्य प्रजातियां, रहने की जगहों के नुकसान होने से दूसरे जगहों पर आसानी से नहीं रह सकते हैं। क्योंकि उनमें कभी ऐसे तरीके विकसित करने की जरूरत नहीं पड़ी, जिससे नए क्षेत्रों में जाना आसान हो जाए।

ओएसयू कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री में लैंडस्केप इकोलॉजी के प्रोफेसर बेट्स ने कहा, नया शोध बताता है कि इन पक्षियों के जिंदा रहने के लिए एक नई जगहें खोजना उनकी आदत में नहीं होता है। ध्रुवों की ओर जाने वाले पक्षी दूसरी जगहों पर आसानी से ढल जाती हैं, इनके लंबे, संकरे पंखों की मदद से ये लंबी दूरी तक उड़ान भर सकते हैं।

वुल्फ ने कहा कि पहले, उष्णकटिबंधीय पक्षियों के दूर-दूर तक रहने के कौशल की तुलनात्मक कमी के पीछे का कारण अच्छी तरह से समझा नहीं गया था। कुछ सवाल भी थे कि क्या एक जंगली प्रजाति के चारों ओर घूमने की क्षमता रहने की जगहों के नष्ट होने से निपटने के मामले में महत्वपूर्ण थी।

कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के एक पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता वुल्फ ने कहा, पहले यह तर्क दिया गया था कि जो प्रजातियां ज्यादा हिलती-डुलती नहीं हैं, वे सिर्फ इसलिए रहती हैं क्योंकि वे अपने रहने की जगहों के नुकसान होने की परवाह नहीं करती हैं।

शोधकर्ता ने बताया, कि उन्होंने एक विशाल डेटासेट का उपयोग किया जिसमें विश्व स्तर पर 1,000 से अधिक पक्षियों को शामिल किया गया था, ताकि जांचा जा सके कि क्या छोटे, ठूंठदार पंखों वाले पक्षी उनके रहने की जगहों के नुकसान का उन पर गहरा असर पड़ता है। अंत में, इस विचार को सही माना गया कि, अच्छे बड़े पंखों के फैलाव वाले पक्षियों पर उनके रहने की जगहों के नष्ट होने का कम प्रभाव पड़ता है।

अधिक लंबे पंखों वाले समशीतोष्ण जंगली पक्षियों के उदाहरणों में कठफोड़वा, रॉबिन, जैस, कार्डिनल, उल्लू, टर्की, बाज और चील शामिल हैं। यह शोध नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

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